गुटका खाने के फायदे
व्यंग्य : डॉ रवीन्द्र कुमार
सुनते हैं सरकार गुटका खाने पर बैन लगा रही है। सरकार को और जो गुटका नहीं खाते उनको इसे खाने के फायदे मालूम ही नहीं हैं. अतः प्रस्तुत हैं कुछ “गुटका खाने के फायदे”-
बचपन में एक लघुकथा सुनी थी। आपने भी सुनी होगी। बीड़ी-सिगरेट पीने वालों के घर में कभी चोर नहीं घुसते। उन्हें कुत्ता नहीं काटता और उनको कभी बुढ़ापा नहीं सताता। रात भर खांसते रहते हैं, सो चोर समझ जाता है कि घर में सब जागे हुए हैं। कुत्ता नहीं काटता, क्योंकि कमजोरी और बीमारी के चलते सदैव लाठी के सहारे चलते हैं।
बुढ़ापा नहीं सताता, कारण कि वे जवानी में असमय ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। मैं हतप्रभ रह गया, जब हाल ही में एक परिचित ने मुझे सुदूर राजस्थान से सूचना दी कि वह मुंबई जा रहा है। जहां एक गुटका कंपनी से उसे छिपकलियों का बहुत बड़ा आर्डर मिला है।
आप सभी गुटका प्रेमी भाइयों और बहनों (गुटका प्रेमी माता-पिता तुल्य तो जीवित बचे ही नहीं होंगे) को मेरा सुगंधित और झन्नाटेदार प्रणाम। आप लोगों की तो गुटका रचित मुस्कान ही इतनी भन्नाट होती है कि इस पर कोटि-कोटि कैंसर जीवाणु कुर्बान हैं।
जिस तरह ‘हरिगुन लिखा न जाई’ उसी तरह गुटका खाने के अनेकानेक लाभ हैं। कहीं आप मुझे किसी गुटका कंपनी का मार्केटिंग मैनेजर न समझने लगें, इसलिए यहां केवल कुछ ही ‘गुण’ बता रहा हूं. अन्यथा यूँ तो ‘हरी अनंत… हरी कथा अनंता’!
पहला फायदा तो यह है कि गुटका के चलते समाज में एक समरसता आ गयी है। गुटका अरबपति, करोड़पति, लखपति, कारोबारी, गो कि सिवाय गुटका निर्माताओं के सभी खा रहे हैं। मजदूर, रिक्शाचालक, ट्रक ड्राईवर खा रहे हैं। स्मगलर खा रहे हैं, पुलिसवाला खा रहा है। गुटका नेता खा रहा है, वोटर खा रहा है। अतः गुटका समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाता है।
दूसरे, आप पांच रुपये से लेकर पचास रुपये रोजाना गुटका खाने में खर्च करते हैं। पैसा क्या है, हाथ का मैल है। यह सब माया है। इसे जल्द से जल्द दूसरे को प्रेफ्रेब्ली गुटका निर्माता को सौंपकर भवसागर से निकल लीजिए। अतः गुटका आपको माया-मोह के जंजाल से मुक्ति दिलाता है।
तीसरे, गुटका खाने वाले का मुंह हमेशा बंद.. चबाने में व्यस्त रहता है। उसे फोन का आना.. बात करना.. आगंतुक का आना दुश्मन सा लगता है। कारण कि अभी-अभी तो मुंह में डाला है और ये बैरी कहां से आ गया। अब थूकना पड़ेगा।
लब्बोलुआब यह है कि गुटका खाने से वाणी में संयम रहता है। सभी संयमों में सर्वोपरि वाणी का संयम है। अतः गुटका आपको आपके जीवन में संयम सिखाता है और बाद में आपके जीवन को यम को सौंप देता है।
चौथा, आपने सुना ही होगा कि चाँद में भी दाग है। तो सर जी पान-गुटका खाने वालों की शर्ट-पैंट कुरता-पजामा, रुमाल पर आप सदैव सुंदर-सुंदर मनमोहक दाग पाएंगे। ये आपको प्रकृति के करीब ले जाते हैं। जगत में सभी कुछ ही तो नश्वर है। सब में दाग है। आपके दांत हों, मुंह हो या गला हो। आपके कपड़े हों या फेफड़े हों, दफ्तर के गलियारे हों या फिर सीढ़ियों के कोने। इससे आप संसार को सही ‘पर्सपक्टिव’ में समझ पाते हैं और हर चीज, हर क्षेत्र में आदर्शवाद ढूँढने की मूर्खता से बच सकते हैं। अतः गुटका आपको प्रकृति के करीब लाता है। भले थूकते वक्त ही सही।
पांचवां, ये जो इतने बड़े-बड़े सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों में कैंसर वार्ड बने हुए हैं, इनका क्या फायदा और उपयोग अगर मरीज ही न होंगे। आप नहीं जानते आपके इस गुटका खाने की वजह से कितने उद्योग-धंधे चल रहे हैं। गुटका निर्माता, उसकी फैक्टरी, उसमें काम कर रहे मैनेजर, मजदूर, वितरक, दूकानदार, अस्पताल, डेंटिस्ट, डाक्टर, नर्स, कम्पाॅउंडर, कीमोयोथिरेपी, केमिस्ट, रेडिएशन वाले, सबकी रोजी-रोटी आपके गुटका खाने से चल रही है। आपको पता भी है कि आपके गुटका खाने से अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा और मजबूत सहारा मिल रहा है।
छठा फायदा, लोग कहते हैं कि गुटका खाने से नपुंसकता आ जाती है। अब इसके भी बहुत लाभ हैं। भारत की जनसंख्या दिन दूनी रात आठ गुनी बढ़ रही है। गुटके से इसमें कुछ तो ब्रेक लगेगा। सुना है गुटका प्रमियों का गुटका प्रेम इतना बलवती होता है कि अन्य किसी भी प्रेम के लिए इसमें गुंजायश ही नहीं रहती। ‘प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय’, अतः गुटका शारीरिक संबंधों के लायक आपको छोड़ता नहीं।
पीले-पीले बदबूदार दांत, बदन दर्द, टांगों में दर्द, जोड़ों में दर्द, सो आप जुड़ नहीं पाते। और एक प्रकार की विरक्ति ले लेते हैं। इसी विरक्ति — इश्क-ए-हकीकी के विषय में कबीर और रहीम जैसे संतों ने जोर दिया था। गुटका आपको आसक्ति, सांसारिक प्रेमपाश, सेक्स की भूख (पेट की भूख तो पहले से ही तबाह होती है) से दूर रख आप में संतई की उदात्त भावना का ऐसा विकास करता है.. ऐसा विकास करता है कि आप बरबस ही कह उठते हैं :
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं !
बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं !!
भाइयो और बहनों ! अब आपको मालूम हुआ कि गुटका खाने से खाट पकड़ने तक अनजाने ही आप अपना और जगत का कितना भला कर रहे हैं- वसुधैव कुटुम्बकम।
एक सज्जन बता भी रहे थे कि गुटका मुंह में डालते वक्त आदमी सिर उठाकर आकाश की तरफ क्यों देखता है? दरअसल वह खुदा से कह रहा होता है “हे परवरदिगार ! बस मैं आ ही रहा हूं तेरे पास!”
*कई पुस्तकों के लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ रवीन्द्र कुमार, भारतीय रेल के रिटायर्ड आईआरपीएस अधिकारी हैं।