क्या होते हैं वायरस?
वायरस, डीएनए का एक अति-सूक्ष्म टुकड़ा होता है, जो अपनी सुरक्षा हेतु अपने चारों तरफ प्रोटीन का कवच लपेटे रहता है
अब ये डीएनए क्या होता है?
हमारा शरीर अरबों कोशिकाओं का बना है। हर सेल अपने आप में एक जीव है। सेल या उनके समूह को कुछ विशेष कार्य दिए गए होते हैं। कार्य करने हेतु सेल में शक्ति भरा ग्लूकोज का बॉक्स रक्त वाहनियों द्वारा भेजा जाता है। यह बॉक्स ऑक्सीजन द्वारा ही खोला जासकता है, जिसे हम अपने फेफड़ों में भरते हैं। फिर वहां से ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन नामक सेल के ऊपर चढ़कर प्रत्येक सेल में पहुचता है।
सेल के भीतर छोटे-छोटे ओर्गानेल होते हैं, जिनकी सहायता से सेल कार्य करता है। इसमें एक मुख्य केन्द्रक होता है, जिसमें 42 क्रोमोसोम होते हैं। हर क्रोमोसोम पर लाखों जीन होते हैं। हमारे शरीर में छोटा से छोटा कार्य सेल के केमिकल के जुड़ने या बनने से ही होता है। अलग अलग केमिकल रिएक्सन हेतु अलग-अलग एंजाइम की जरूरत होती है। क्रोमोसोम पर स्थित अलग-अलग जीन अलग-अलग एंजाइम बनाते हैं। कौन सा जीन कब और कितना एंजाइम बनाए, इसके लिए क्रोमोसोम पर ही स्थित कंट्रोलर जीन होते हैं। यह जीन डीएनए का बना होता है।
जीन के दो कार्य होते हैं। एक तो खास एंजाइम बनाना, जिससे रिएक्सन एवं केमिकल बनते हैं। दूसरा स्वयं को द्विगुणित करना, लेकिन ये दोनों कार्य कब और कितना करना है, ये क्रोमोसोम पर स्थित कंट्रोलर जीन निर्धारित करते है।
अब सोचिए जरा, यदि जीन सेल के अंदर ही क्रोमोसोम से नीचे गिर जाए, तब तो कंट्रोलर जीन का उन पर कोई कंट्रोल नहीं हो सकेगा और अलग हुए जीन अपनी आदत के अनुसार निरंतर द्विगुणित होते रहेंगे और एक खास केमिकल बनाते जाएंगे। फिर ये शरीर के दूसरे सेल में पहुंचकर यही दोनो कार्य करेंगे। आगे ये खून की नसों के द्वारा अन्य अंगो में पहुंचकर उनमें वही केमिकल और जीन बनाते जाएंगे। ये केमिकल हमारे शरीर के बिभिन्न सिस्टम – जैसे पाचन में, सांस लेने में, आदि में बाधा डालते हैं और हम बीमार पड़ जाते हैं।
क्या शरीर इन्हें नहीं रोकेगा — जरूर रोकेगा। शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) उन्हें मारने दौड़ती है। लेकिन ये जीन अपने बचाव में अपने ऊपर प्रोटीन का एक कवच बना लेते हैं। दोनों में भयंकर लड़ाई होती है, शरीर में ग्लूकोज की शक्ति कैसे ली जाती है, यह जीन भी जानते हैं। दोनो पक्ष हमारे ही ग्लूकोज से लड़ते हैं। हम थक जाते हैं, बुखार होता है और शरीर का कोई न कोई सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है।
वायरस डीएनए के बने वही जीन हैं, जिन्होंने अपने ऊपर प्रोटीन का कवच ओढ़ रखा है।
वायरस को हम किसी दवा से नहीं मार सकते हैं, क्योंकि तब उससे सेल के सारे डीएनए मरेंगे, यानी हमारे शरीर को ही हानि होगी।
वायरस का खोल छोटी-छोटी प्रोटीन ईंटों की तरह बना होता है, जिसे हम कॉप्सोमिर कहते हैं। हमारी प्रतिरोधक प्रणाली इन जोड़ों का अध्ययन करती है। फिर उन जोड़ों (बांड्स) को खोलकर नष्ट करती है। हम वायरस का टीका बनाकर थोड़े से वायरस शरीर में डालते हैं, ताकि शरीर उनका अध्ययन कर उन्हें नष्ट करने में सक्षम रहे और आगे भी उस वायरस के अधिक आक्रमण को सह सके। लेकिन कभी-कभी शरीर इन बांड्स के नेचर को नहीं समझ पाता और इनकी बढ़ती संख्या से हारने लगता है।
वायरस की प्रोटीन यूनिट (कॉप्सोमिर) बहुत सुंदर ढ़ंग से लगे होते हैं। जब ये यूनिट बाहर स्पाईक की तरह निकले होते हैं, तो ये किसी मुकुट की तरह दिखते हैं। ऐसे ही वायरस को कोरोना वायरस कहा जाता है। कोरोना वायरस का वह ग्रुप, जिसके केमिकल हमारे फेफड़ों और सांसों पर असर डालते हैं, उन्हें सार्स कोरोना कहते हैं। इसी ग्रुप का खतरनाक वायरस नॉवेल कोरोना अथवा कोविद-19 है।
स्पष्ट है कि वायरस केवल जीवित सेल में ही जिंदा रहते हैं। बाहर यह कुछ घंटों तक या कुछ दिन तक ही जीवित रहेंगे। कोविद-19 हमारी लार, थूक आदि से एक हाथ से दूसरे, फिर मुंह, नाक, आंख द्वारा शरीर में पहुंचता है। फिलहाल इससे बचने का उपाय सिर्फ एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखना ही है, क्योंकि अब तक दुनिया में इसका कोई इलाज ईजाद नहीं हुआ है।
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