भारतीय रेल : जड़ में लगी दीमक

पहलगाम में हिंदू पर्यटकों पर 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की दर्दनाक खबर ने देश को झकझोर दिया!

जब से रेल बनी है इस देश में, इसे भारतीय सेना से तुलनात्मक रूप से हमेशा जोड़कर देखा गया!

इससे हमेशा हुई तुलना से हम कुछ प्रशासनिक और प्रबंधन के पहलुओं पर दृष्टिपात करते हैं।

सेना और 1962 का युद्ध

‘हमें सब पता है’, ‘आपको क्या मालूम?’, से प्रेरित राजनीतिज्ञों ने द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी रही भारतीय सेना की कमांड को पूरा खोखला कर दिया। ब्रिगेडियर जे. पी. दलवी की ये पुस्तक – Himalayan Blunder – The curtain-raiser to the Sino-Indian War of 1962 – हर सरकारी अधिकारी को पढ़नी चाहिए।

फ्रैंक मोरेस इस पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं:

Major mistakes, like minor diseases, are often preventible. If so, why are they not prevented?

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This is the question which Dalvi poses and asks. He is deeply concerned that these mistakes, exposed and analysed, should not be repeated, for it is obvious that he realises the basic reason why history repeats itself. History repeats itself because men repeat their mistakes.

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What is the use of the past if it has no lessons for the future? Experience, as Oscar Wilde observed, is the name men give to their mistakes.

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Wise men and wise nations profit by their mistakes. Humility is the beginning of wisdom for progress starts with the thought that perhaps one might oneself be mistaken.

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इस युद्ध के मूल में राजनैतिक नेतृत्व की वैश्विक स्थिति की गलत समझ को माना गया है। फिर हायर डायरेक्शन ऑफ वॉर में वरिष्ठ अधिकारियों के गलत आकलन को। सेना के नेतृत्व के चुनाव में राजनीतिक हस्तक्षेप था, फिर उस नेतृत्व से कैसे प्रोफेशनल लीडरशिप आ सकती थी? कैसे इस कंप्रोमाइज्ड लीडरशिप की प्रामाणिकता रहती?

लेकिन इस युद्ध के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई शर्मिंदगी और बेबसी ने सेना का नेतृत्व पुनः सैनिकों के हाथ में दे दिया।

कश्मीर के एक ऑपरेशन की ऊपर दी गई (साभार सोशल मीडिया) फोटो 1962 के बाद हुए परिवर्तन को दिखाती है। भारत की सेना आज विश्व स्तर पर अपने प्रोफेशनल कैरेक्टर के लिए जानी जाती है।

क्या है ये प्रोफेशनल करैक्टर?

क्या आपने कभी यह देखा है कि कोई सैन्य अधिकारी बिना फील्ड पोस्टिंग के कमांड पोजीशन पा सकता है?

क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि एक अधिकारी, चाहे जिस किसी स्तर का हो, कितने बड़े अधिकारी का दामाद हो, दसियों साल तक एक ही शहर में रहा हो?

भारतीय सेना और भारतीय रेल में तकरीबन बारह लाख ऑन रोल हैं। लेकिन भारतीय रेल के बराबर बड़े इस संगठन में ऐसा एक भी अपवाद नहीं मिलेगा, जो निर्धारित कार्यकाल के बाद एक ही स्थान पर रहा हो। वहीं भारतीय रेल में आज हर किसी की कुछ ऐसी समस्या है कि दिल्ली-मुंबई नहीं छोड़ सकते। पति या पत्नी की नौकरी से चालू होती है, फिर बच्चों की पढ़ाई पर आती है और फिर माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं। और इस तरह पूरी नौकरी एक ही स्थान पर कम्प्लीट हो जाती है। हाँ, लेकिन जब डीआरएम बनने का नंबर आता है, तो पति-पत्नी-बच्चे-बीमारी और माँ-बाप सब का रोना छोड़कर कूदते-फाँदते कहीं भी चले जाते हैं।

ये है रेल का नेतृत्व है। और ये है उसका चरित्र है!

भारतीय रेल में चेयरमैन-जनरल मैनेजर जो परिपक्व उम्र में बनते हैं, वह भी बड़े शहरों में अपने बड़े-बड़े सरकारी आवास रखते हैं। आज यदि सत्रह लाख करोड़ खर्च करके भी सरकार को ट्रेन में एटीएम लगाकर और मंत्री के ट्विटर हैंडल से उसे सस्ती पब्लिसिटी देने की आवश्यकता लग रही है, पूरे देश में रेल की मीडिया ड्राइव चलाकर दैनंदिन हो रहे अनुरक्षण का प्रचार करने की आवश्यकता पड़े, तो प्रधानमंत्री और देश को सोचना पड़ेगा कि रेल का नेतृत्व इतना अनप्रोफेशनल कैसे हो गया?

एक टेस्ट केस

हाल ही में हुआ मध्य रेल का एक पोस्टिंग ऑर्डर रेल के नेतृत्व के इस अनप्रोफेशनल कैरेक्टर को दर्शाता है-दस साल जूनियर स्केल ग्रुप ‘बी’ में लगातार एक ही जगह रखकर सीनियर स्केल में अगला प्रमोशन उसी जगह देना कैसे कोई जस्टिफाई कर सकता है? वहीं मध्य रेल और पूर्व मध्य रेलवे के सतर्कता विभाग में डिप्टी स्तर के अधिकारी अपने टेन्योर से ज्यादा लंबा रह रहे हैं। रेल प्रशासन का ये चरित्र #SDGM और #GM के ऊपर सवाल खड़े करता है।

वहीं हाल में निकले हुए डीआरएम भी उसी जोन के सेफ्टी या सतर्कता में लगा दिए गए हैं, एसडीजीएम को उठाकर उसी रेलवे में प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर बना दिया गया है। ये निर्णय या ऑर्डर रेल भवन की पंचमूर्ति की प्रशासनिक समझ, क्षमता और शुचिता और एमआर सेल की देखरेख पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। जब एसडीजीएम वहीं उसी रेल से है, तो क्या वह निष्पक्ष और कड़े प्रशासनिक निर्णय ले पाएंगे? अथवा जब पीसीई या अन्य कोई पीएचओडी उसी रेल में बनाया जाएगा, तो क्या वह निष्पक्ष भाव से काम करेगा?

जब #PHOD पूरा जीवन अर्थात पूरी नौकरी ही एक शहर में निकाल देते हैं, तो क्या उनके “सेवादार” एक शहर में नहीं रहेंगे? या वे अपने इन “सेवादारों” का “फेवर” नहीं करेंगे? यह सब देखने वाले जीएम, मेंबर और सीआरबी का नियंत्रण एवं दायित्व क्या है?

हमने रेल के 100 लीडरशिप – डीआरएम-जीएम-मेंबर – की भूमिका को चिह्नित किया, क्यों राजनीतिक नेतृत्व इन्हें एथिक्स और इंटीग्रिटी के उच्चतम स्तर पर नहीं माप सकता?

क्या देश ऐसी कंप्रोमाइज्ड लीडरशिप वाली भारतीय रेल की परमाणिकता पर भरोसा कर सकता है?

डांस बार-नुमा रेल के ऑफिसर्स क्लबों में झूमते GM, PHOD, DRM-क्या प्रमाणिकता रखते हैं? मोदी जी जैसा नेतृत्व और समर्थन के बाद भी ‘हायर डायरेक्शन ऑफ रेलवे’ की जड़ों में दीमक लग गई है।

पिछले ग्यारह साल में सरकार से मिले हर प्रकार के समर्थन की रेल अधिकारियों ने फजीहत कर दी है।

सेना को अपने काम की मीडिया ड्राइव नहीं करनी पड़ती, आप और हम सुरक्षित सोकर उठते हैं, यही उनका विज्ञापन है। कैसे मंत्री जी को समझाएँ, समय पर चलती, साफ-सुथरी-सुरक्षित रेल अपने आप में एक ऐसा चलता-फिरता विज्ञापन है, जिसे किसी मीडिया ड्राइव की कदापि कभी आवश्यकता नहीं रही।  

Update:

हमें पुणे मंडल के ऑपरेटिंग सीरीज के सीयूजी नंबर से कई कॉल और ह्वाट्सऐप मेसेज आए। अंत में जब समझ नहीं आया कि क्यों बार-बार यह कॉल आ रही है, हमने उन सज्जन से बात की। आप वही संजय कुमार निकले, जो दस साल पुणे मंडल में एसीएम रहे और सोलापुर मंडल से पोस्ट ट्रांसफर करवाकर वहीं प्रमोट होने का आदेश निकलवा लिया। चूंकि नंबर ऑपरेटिंग सीरीज का था (हमारे पास यह #AOM/PA के पदनाम से सेव था), हमने सूत्रों से और जानकारी ली। पता चला कि संजय कुमार ने तो अपने आपको उसी दिन #DOM घोषित कर पहले ही चार्ज ले लिया था जिस दिन उनका ऑर्डर मुख्यालय से जारी हुआ था।

April 10, 2025: “दस साल लगातार एक ही जगह पदस्थ रहे अधिकारी को उसी जगह प्रमोट करने का औचित्य क्या है?

इससे कई मुश्किल सवाल उठे, और हमने एक वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी से बात की, पता चला कि रेवन्यू पोस्ट का स्थानांतरण केवल महाप्रबंधक ही कर सकते हैं और एक रेवन्यू पोस्ट पर एक अधिकारी की ही सैलरी बन सकती है। सनसनीखेज बात ये निकली कि ये रेवन्यू पोस्ट 23 अप्रैल को खाली हुई, लेकिन श्रीमान संजय कुमार को DOM बने कई हफ्ते हो चुके हैं।

पहली बात, बिना पोस्ट कोड खाली हुए, कैसे दूसरा अधिकारी उसी पोस्ट कोड पर प्रमोट हो सकता है। उसे सीनियर स्केल का वेतन कैसे मिल सकता है। और यदि उसे वेतन नहीं मिल सकता, तो सीनियर स्केल की पोस्ट पर वह कैसे बैठ सकता है? और डीआरएम उसे इसकी अनुमति कैसे दे सकते हैं?

हमने इस संबंध में डीआरएम/पुणे से उनके मोबाइल पर बात की और उनसे पूछा कि संजय कुमार को उन्होंने किस दिन डीओएम की पोस्ट पर जॉइन करवाया? इस पर उन्होंने कहा कि वह फिलहाल फील्ड इंस्पेक्शन पर हैं, ऑफिस पहुँचकर रिकॉर्ड देखकर थोड़ी देर बाद बता पाएँगे, मगर देर शाम तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

कुल मिलाकर ये मामला पुणे मंडल प्रशासन पर सवाल उठाता है। क्या मध्य रेल प्रशासन या मुख्यालय इस बारे में कुछ स्पष्टीकरण देगा? क्या #MOBD इसका संज्ञान लेंगे? या GM/CR और MOBD केवल अपनी कमीज की सफेदी के ही कसीदे पढ़ने में ही व्यस्त रहेंगे—प्रशासन की जोड़तोड़ और साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देंगे? Contd..