लचर तंत्र और लाचार मंत्री
जब बंदर को अंगरक्षक बनाएँगे, तो नाक तो कटेगी ही!
Wrong choices of leaders will get wrong results-it is very clear!
#Note: इस आर्टिकल में किसी को शर्मसार करने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है, परंतु रेल में जो हो रहा है, उससे जनसामान्य को, सरकार को, अवगत कराना हमारा कर्म, कर्तव्य और दायित्व है।
तो शर्तिया तौर पर मंत्री की #फजीहत कराने वाले लोग पकड़-पकड़कर रेल भवन में लाए जा रहे हैं। थोड़ी उम्मीद बढ़ी थी कि पुराने रेलवीर रेल भवन से निकल चुके हैं, लेकिन #जीतूभाई के आने से ये तो समझ में आ गया कि रेल के “डीप स्टेट” के सामने मंत्री बेबस और लाचार हैं। कोई कारण तो नहीं कि राजनैतिक नेतृत्व को ऐसे लोगों की आवश्यकता हो।
प्रश्न यह है कि, क्या अलग हुआ नई व्यवस्था में? आधे दर्जन गजट निकालकर, पूरी प्रशासनिक और तकनीकी कमांड तोड़कर, रेल का पूरा “डीप स्टेट” केवल यही करा पाया कि सर्विसेज के नाम ही बदल पाए। इसीलिए प्रबुद्धजन कहते हैं, “प्रशासनिक तोड़फोड़—रिफॉर्म नहीं होता है!”
March 15, 2025: “The Gazeteers”
March 13, 2025: “The Act of Relabelling”
हाँ, सरकार ने पैसा पूरा दिया, तो इसमें रेल प्रशासन का क्या योगदान! यह तो प्रधानमंत्री और उनके निर्देशों पर वित्त मंत्रालय ने किया। रेल के सुधार तो हर तरह से औंधे ही पड़े हैं। रेल के सारे काम तो वेंडर ही कर रहे हैं। #ICF या दाहोद वर्कशॉप का नाम लेकर इस बात को अब और नहीं छिपाया जा सकता, बल्कि छिपाने के प्रयास से और अधिक उघड़ रहे हैं, इससे सरकार की ही किरकिरी हो रही है। रिफार्म के नाम पर #RDSO की रीढ़ तोड़ दी गई, जिसे रेल पर R&D की एक प्रतिष्ठित संस्था बनाया जाना चाहिए था। आवश्यकता थी निष्ठावान और समर्पित अधिकारियों को लाने की, लेकिन खान मार्केटियों (#KMG) ने रिफार्म की मोदी जी की मंशा के नाम पूरा सिस्टम चुनिंदा वेंडरों के हाथ में दे दिया। और ये वेंडर आज नहीं तो कल, उनके लिए ही काल बनेंगे। रेल का “डीप स्टेट” कभी भी अच्छे और कमिटेड अधिकारियों को आगे नहीं आने देगा, क्या इतनी सी भी बात रेल के राजनीतिक नेतृत्व को नहीं समझ आई?

जब-जब रेल को काम करने के लिए पैसा मिला, तब-तब हमेशा काम हुआ है, इसीलिए कोई मंत्री या उसका कोई अदना सा संतरी इस भ्रम में न रहे कि सब काम हमने ही कराया और 2014 से पहले कुछ हुआ ही नहीं था!
मजे की बात यह है कि लगभग सत्रह लाख करोड़ खर्च करने के बाद भी #सेफ्टी-ड्राइव और उसके ऊपर #मीडिया-ड्राइव करवानी पड़ रही है, क्योंकि गाड़ियाँ आज भी गिर रही हैं। और तो और, बात यह भी है कि कवच पर लाखों करोड़ खर्च करने के बाद जो एक्सीडेंट होंगे, उनका जवाब इसी सरकार को देना होगा! क्योंकि किसी ‘यस सर’नुमा खान मार्केटिये सूरमा ने सरकार को यह समझा दिया कि, “कवच—रेल के एक्सीडेंट बंद करवा देगा—कवच ही सारी समस्याओं की एकमात्र दवा है।” कवच में स्टॉक मार्केट के बड़े निवेशक और इसे बनाने वाले परिवार तो मस्त हो गए इस निर्णय के बाद, जब जवाबदेही तय होगी, तो बहुत कठिन परिस्थिति होगी! यह ध्यान में रहना चाहिए!
March 12, 2025: “The Ask : Part-I” why not strengthen the foundation – why no money put in improving your failure prone #track-circuits and #axle-counters? Why no money put on improving your goods sidings, where you earn?
प्रधानमंत्री कार्यालय को रेल मंत्रालय से केवल यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या विजयनगरम एक्सीडेंट या कामाख्या एक्सप्रेस के एक्सीडेंट, जो हाल ही में हुए हैं, उन्हें कवच रोक सकता था? अथवा बालासोर जैसा भीषण हादसा कवच रोक सकता है?
सेफ्टी ड्राइव से मीडिया ड्राइव तक-प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐसा क्या कहा? (अलग–अलग जोनल रेलवे के पीआर डिपार्टमेंट से आई सूचना पर आधारित)
बात गुड फ्राइडे, 18 अप्रैल की छुट्टी के दिन की है। सभी जोनल रेलों के सभी डीआरएम, सीपीआरओ, पीआर कर्मियों को शाम चार बजे मंत्री के #OSD की वीसी में रहने का निर्देश आया।
जी, आपने सही पढ़ा। मंत्री जी के ओएसडी ने भारतीय रेल के सारे डीआरएम को मीटिंग के लिए बुलाया! #सीआरबी ने नहीं, मंत्री के #ओएसडी ने!
अब ये कैसे माना जाए कि रेल का राजनीतिकरण नहीं हो रहा? जिसके लिए पिछले ग्यारह सालों से पिछली सरकारों को लगातार कोसा जा रहा है! खैर, ओएसडी साहब की यह मीटिंग तीन बार स्थगित हुई। पता चला, “ओएसडी साहब—मंत्री जी के साथ #PMO गए हैं, आने के बाद मीटिंग होगी!”
उधर, सारे डीआरएम यह तय करके प्रतीक्षारत थे कि बात शायद अमृत भारत स्टेशनों के उद्घाटन की होगी-क्योंकि मार्च के अंत में बहुत सारे अमृत भारत स्टेशनों का उद्घाटन प्रधानमंत्री के हाथों होना था।
बहरहाल, बड़े साहब अर्थात ओएसडी साहब आए, और निर्देश यह आया कि चार हफ्ते की एक “मीडिया ड्राइव” होगी। यह ड्राइव अमृत भारत रेलवे स्टेशनों की नहीं, बल्कि उनके नाम पर मीडिया-पब्लिसिटी ड्राइव होगी। यह पब्लिसिटी ड्राइव होगी सेफ्टी पर होने वाले रोजमर्रा के कामों की। सभी पब्लिसिटी इंस्पेक्टर—इंजीनियरिंग विभागों के मैकेनिकल फिटिंग्स, ट्रैक पॉइंट्स एंड क्रॉसिंग, लूप लाइन, अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग, बलास्ट स्क्रीनिंग, सिग्नलिंग, ओएचई आदि के कामों का प्रचार करवाएँगे। यदि ठीक लगे तो मीडिया टीमों को वर्क साइट्स पर लेकर भी जाया जाए। डिवीजन, फिर जोन, और फिर राष्ट्रीय (बोर्ड) स्तर पर इस क्रम में हर हफ्ते एक सेफ्टी मेंटेनेंस पर मीडिया ब्रीफिंग होंगी।
ऐसा क्या हुआ? यह सोचने की बात है कि क्यों अमृत भारत स्टेशनों के उद्घाटन नहीं हुए!
March 30, 2025: “The Ask #3: Is Station Development in current form a good idea? Need for real development” इस आर्टिकल में हमने माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी से आह्वान किया था— “Hon’ble PM #Modi ji must send his trusted officers to see and report on these stations which he would be inaugurating soon”.
वहीं, गिरती-पड़ती रेलगाड़ियाँ, बदहाल यात्रियों की कहानी से ट्विटर अटा पड़ा है। हमने इस स्थिति के बारे में यह लिखा-
April 7, 2025: “5 Days – 8 Derailments: IR’s Darkest Phase”
फिर यह लिखा – April 13, 2025: “Editorial: A Crisis A Day – Loss of Direction & Perhaps Sense”
तो अब बात यह हुई कि रेल को अब रोजमर्रा की मेंटेनेंस को भी पब्लिसिटी देनी है। यानि अब अपने घर की झाड़-बुहार की पब्लिसिटी पूरी बेशर्मी के साथ दुनिया के सामने करनी है। कुछ ऐसा कि जैसे माँ ने बच्चों के लिए आज खाना बनाया, उन्हें खाना खिलाया-इसका प्रचार हो। माँ ने आज घर की साफ-सफाई की-इसका प्रचार हो। ऐसे सभी काम, जो घर-बार और खेतीबाड़ी से संबंधित हों-सबका प्रचार हो। आप ड्यूटी पर जाते हैं, काम करते हैं, और तनख्वाह पाते हैं-उसका प्रचार हो। आज गल्ले पर इतना आया, बड़ी कमाई हुई-इसका प्रचार हो। बाजार गए, बहुत सारा सामान खरीदा, इसमें बड़ा खर्चा हुआ-इसका प्रचार हो। प्रश्न ये हैं कि क्या रेल के पॉइंट और क्रासिंग पहली बार मेंटेन हो रहे हैं? क्या रेल के कोड और मैन्युअल पहली बार बने हैं? क्यों है इतना खर्च करने के बाद इतना डर?
March 24, 2025: “The Ask, Part-II: Bring Transparency, Ethics & Accountability-on house retention policy”
हमने हाल ही में रेल के बहुत हास्यास्पद निर्णयों पर मंत्री जी के ट्वीट और बाद में उससे शर्मिंदा होकर उसे डिलीट करने का समाचार आप सुधि पाठकों तक पहुँचाया। और यह भी बताया कि प्रीमियम ट्रेन का स्पेड छिपाने वालों, टॉवर वैगन की टक्कर छिपाने वालों, कोच मॉडिफिके़न की अनाधिकार चेष्टा करने वालों, ट्रेन पार्टिंग, इंजन पार्टिंग, पावरकार बर्निंग, ऑनलाइन के सुपरफास्ट टाइम में ऑनबोर्ड एटीएम जैसी बचकानी हरकतें करने वालों, और यहाँ तक कि रेल एक्सीडेंट को सिम्स में रिपोर्ट न करने वालों को किसका समर्थन और संरक्षण प्राप्त है!
April 19, 2025: “फजीहत Part-II”
इस पर रेलवे के एक क्रांतिकारी रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी के दो ट्वीट—हमें एक रिटायर्ड बोर्ड मेंबर ने भेजा:
इन ट्वीट्स के साथ इन रिटायर्ड बोर्ड मेंबर साहब के यह दो कमेंट्स भी आए:
“When we were in service, rule no. 1 was-never cause embarrassment to the government. We acted with heavy hand on any officer if he caused embarrassment to the system. But it looks today-more you embarrass, higher you climb. I fail to understand how DRMs and GMs who presided over major #corruption scandals, #accidents are protected and promoted. What is the message you are sending? What is so precious about them? What happened in #WR and #ECR divisions, makes me hang my head in shame. Young officers perhaps as old as our grandchildren are getting caught by #CBI-that too after their DRM successfully gets him a GM-award. Everyone seems to be okay with it-with #GM and #DRM both getting rewarded. What has government seen in these officers? I and all my friends, who remain in the world today are very sad.”
“No wonder government is so much on backfoot. Wrong choices of leaders will get wrong results-it is very clear. I argued with many officers who were in service then, why is #Shubhranshu pilloried? Who on earth had a doubt on his #integrity? Why they could not handle an upright officer who had courage to call spade a spade? Surely, the #credibility he enjoyed would have brought so many loyal and committed young officers on right side of the #government, creating environment of #trust, #confidence and bring accolades to the government. Government has been calling so many retired officers as advisors, why not officers like Shubhranshu? Is he too inconvenient? Government has lost credibility to marshal and corral upright officers. Why would any upright officer like to work with officers who sell their soul to retain a house in Delhi or Mumbai or are more busy to organise flashy parties than to stand with the men on tracks as you have so vividly described?”
हम इन रिटायर्ड बोर्ड मेंबर साहब के बहुत आभारी हैं, जो इस एज में भी रेल के बारे में इतनी गहराई से सोचते हैं, रेल की चिंता करते हैं, हमें पढ़ते हैं, और हमारा मार्गदर्शन करते हैं। ईश्वर उन्हें लंबी आयु दे, और उन्हें सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त रखे!
तो, बात यह है कि रेल भवन की तीसरी मंजिल बहुत डरी हुई है। रेत मुट्ठी से सरक रही है। अफसरों की मनमानी और भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं है, बल्कि उन्हें समर्थन और संरक्षण मिल रहा है। इसीलिए जनसामान्य का ध्यान भटकाने के लिए अमृत भारत स्टेशनों के उद्घाटन के बजाय रेल के दैनंदिन कामकाज और नियमित अनुरक्षण की मीडिया ड्राइव करनी पड़ रही है। लेकिन यह समझ नहीं आ रहा है कि जब बंदर को अंगरक्षक बनवाएँगे, तो नाक तो कटेगी ही!
