बेपटरी हो रही रेलगाड़ी और ढ़हती हवाई अड्डों की छतें!
मंत्री जी, कई बार #incompetence इतनी बड़ी हो जाती है कि वह क्रिमिनल हो जाती है – जो बोइंग कंपनी के साथ हुआ। भारतीय रेल की हालत भी आपने कुछ ऐसी ही कर दी है। इंस्टाग्राम की रीलें इस पाप को नहीं धो सकतीं!
व्यथित मन से प्रिय पाठको, आज सीधी बात करते हैं-
Picture-1 – इस फोटो से स्पष्ट है कि सुधीर-सेंस से होते खर्चे से रेल मंत्रालय को मासूम रेल यात्रियों की लाशें मिलीं।
चलिए, पिछले कुछ समय में हुए रेल हादसों को रिव्यू करते हैं। सबसे बड़ी दुर्घटनाओं को देखें, तो ये पता चलता है कि एक ही फेलियर मोड से ये हुई हैं। पिछले 20 सालों की चार दुर्घटनाएँ देखें – साबरमती, गोरखधाम, फरक्का, कोरोमंडल एक्सप्रेस।
26 मई 2014 को चुरेब रेल हादसे से मोदी सरकार को रेल मंत्रालय ने चेतावनी देते हुए स्वागत किया था – “40 dead in a train accident in UP” – जब गोरखधाम एक्सप्रेस खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई थी।
फरक्का एक्सप्रेस का डिरेलमेंट 10 अक्टूबर 2018 हुआ – “7 dead, 35 injured as 9 coaches of New Farakka Express derail in UP” – जो 21 अप्रैल 2005 को गुजरात में हुए साबरमती एक्सप्रेस और 2 जून 2023 को कोरोमंडल एक्सप्रेस की तरह से हुआ।
कुल मिलाकर 2014, 2018 और 2023 के ये रेल हादसे एक ही तरह से हुए-
“Coromandel Express Train accident | Chilling details revealed” में सीआरबी जया वर्मा सिन्हा बता रही हैं कि कैसे सिग्नल मेन लाइन का हरा हुआ और पॉइंट लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी की ओर सेट हो गया। मैडम, क्या ये 2005 में साबरमती एक्सप्रेस, 2014 में गोरखधाम एक्सप्रेस और 2018 में फरक्का एक्सप्रेस में नहीं हुआ? क्या यही #SWR के #PCOM ने 2023 में चेताया नहीं था? क्या कोरोमंडल दुर्घटना 2023 के पहले 6 महीनों में छठी घटना नहीं थी? हमारे इस ट्वीट को देखें-
आज रेल भवन और उस पर हावी खान मार्केट गैंग की काली छाया से रेल परिचालन को निम्न फोटो दर्शाती हैं!
अब आते हैं खतौली दुर्घटना पर, जिसके चलते रेलमंत्री सुरेश प्रभु का राजनैतिक कैरियर खत्म हो गया। खतौली के जितने खलनायक थे, उनको सरकार ने पुरस्कृत किया। उत्तर रेलवे के तत्कालीन चीफ ट्रैक इंजीनियर और #DRM/दिल्ली को महाप्रबंधक (जीएम) बना दिया। जैसा हमने अभी 30 जून 2024 को लिखा – “रेल व्यवस्था में दीमक लगाने वालों का समर्थन तो हम कतई नहीं कर सकते!” लेकिन इस 2022 के ट्वीट थ्रेड को देखें-
क्या बदला?
अब चलिए, इन तीन दुर्घटनाओं को देखते हैं:
क्यों हम रेल और हवाई अड्डों की इन घटनाओं को मिलाकर देखते हैं?
एक्सपर्ट ओपिनियन
रेल के सेवनिवृत्त वरिष्ठ इंजीनियर बताते हैं कि सरकार का सारा ध्यान प्रोजेक्ट्स पर है। यही कारण है कि सारे डीआरएम भी कंस्ट्रक्शन के प्रोजेक्ट पर अधिक तवज्जो देने में लगे हैं। हमने इस मुद्दे को 29 जून को, “डीआरएम को “गतिशक्ति” के कार्यों से विलग किया जाए!” में उठाया है। एक बार फिर से देख लें, पढ़ लें, शायद आपकी समझ में कुछ आ जाए!
प्रोजेक्ट पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है, यदि देश को आगे ले जाना है, यह मान्य है, लेकिन साथ ही व्यवस्था को चलाना भी उतना ही अधिक आवश्यक है। हवाई अड्डों का हाल बहुत खराब था और प्रगति करते भारत को इसमें सुधार चाहिए था, जिसकी आवश्यकता #UPA सरकार ने भी समझी। लेकिन क्या बनने के बाद इन प्रोजेक्ट्स का कोई मोल नहीं? रेल में लगभग 10 लाख करोड़ से अधिक निवेश हुआ है 2014 के बाद, जो बहुत आवश्यक था। लेकिन रेल को चलाने में हो रही लचरता पर ध्यान खान मार्केट गैंग (#KMG) ने नहीं आने दिया, क्योंकि इससे #KMG की रेल पर पकड़ कमजोर हो जाती।
रेल व्यवस्था को सुरक्षित चलाने में इंजीनियरों की भूमिका को कम नहीं आंक सकते, लेकिन रेल के विजिलेंस और #KMG के चलते भारतीय रेल, जो इंजीनियरिंग सर्विसेस के टॉपरों को ही लेता था, आज पिछले 5 सालों से इंजीनियरों की भर्ती नहीं कर रहा। रेल चलाने की व्यवस्था कुछ ऐसी बन गई कि इंजीनियरिंग जानने वाले अधिकारी साइड लाइन कर दिए गए-प्रमोशन न देकर जो विश्वनीय नेतृत्व वह दे सकते थे, नहीं दे पाए। वहीं, इंजीनियरों को टेंडर्स की बाबूगीरी में लगाकर रेल को पीडब्ल्यूडी सरीखा बना दिया है। #RDSO, जो सर्विस इंजीनियरिंग और सेफ्टी में काम करता था, उसकी विश्वसनीयता पूरी खत्म कर दी, जबकि यहाँ होने वाले अधिकारियों की पोस्टिंग रेलमंत्री स्वयं करते हैं।
डिरेल्ड रेल मंत्रालय
20 अप्रैल को मंत्री जी ने कहा:
इस पर एक वरिष्ठ रेल अधिकारी का कमेंट आया: “झूठ बोल रहा है ये रेलमंत्री। कलाकुरिची से त्रिची, या सोलापुर से नासिक, या कहीं से कहीं भी 7km रेल लाइन बनने से दिल्ली-गोरखपुर, मुंबई-दरभंगा, मुंबई-हावड़ा, या चेन्नई-छपरा रूट पर भीड़ कैसे कम होगी? अंदर की बात है कि जनरल, सीटिंग या नॉन-एसी स्लीपर कोचों का निर्माण पिछले दो-तीन सालों में आनुपातिक तौर पर कम हुआ है। जिस ट्रेन में तीन-चार अनारक्षित और आठ-दस स्लीपर कोच लगते थे, अब केवल शून्य से दो तक लग रहे हैं। एलीटिस्ट आदमी है।”
मंत्री जी के इस इंटरव्यू में कवच की बात भी रेल के एक्सपर्ट्स को हास्यास्पद लगी। उनका ये कहना है कि आप कोई भी सिग्नलिंग लगा लें, आप बालासोर, और उसके जैसे अन्य एक्सीडेंट कैसे रुक सकते हैं? मंत्री जी सुधीर-सेंस से ऐसे वशीभूत हैं कि उन्हें ये समझ नहीं आ रहा कि मूल इंटरलॉकिंग ठीक कर लेते तो बिना कवच के भी ये सब दुर्घटनाएँ नहीं होतीं। लेकिन उन्हें तो ठेकेदारों और वेंडरों के पाश ने ऐसा जकड़ा है कि कोई भी पोस्टिंग बिना इंडस्ट्री की सहमति के नहीं होती-तो गलतियों का खामियाजा राजनैतिक नेतृत्व को ही भुगतना पड़ेगा।
क्या रेलमंत्री को इतना भी ज्ञान नहीं? रेल की सेफ्टी को दरकिनार कर रेल मंत्रालय की अनुशंसा पर #ACC ने दिया सीमा कुमार को #MOBD का पद! इस पद पर छह महीने से कम रहीं सीमा कुमार के कैरियर को – “Personal Data” – यहाँ देखा जा सकता है!
DRM के कार्यकाल को छोड़ दें, तो सीमा कुमार ने सारा समय दिल्ली में ही निकाला। कभी फील्ड में काम नहीं किया। 5 जनवरी से 30 मई तक इनका #MOBD का कार्यकाल रहा। इनके जाते ही कंचनजंगा एक्सप्रेस का एक्सीडेंट हो गया। लेकिन रिटायरमेंट के कुछ ही घंटों के अंदर इन्हें पीपावाव रेल कॉपोरेशन का एमडी बना दिया गया, जिसमें इनका इंटरव्यू इन्हीं के सबोर्डिनेट अधिकारियों ने लिया। इसमें भी मैडम आपका महती योगदान रहा।
सवाल यह है कि क्यों लेवल 16/17 की पोस्टिंग घंटों और महीनों के हिसाब से हो रही हैं। क्यों ऐसे अधिकारी मेंबर बन रहे हैं, जिन्होंने फील्ड में कोई काम नहीं किया? जिनका रेल में कोई योगदान नहीं रहा? जिन्होंने डीआरएम में कभी काम नहीं किया?
कवच और वंदेभारत का झुनझुना न दिखाए रेल मंत्रालय
16 जुलाई 2023 को “रेल की बदहाली-हँसे या रोयें? मोदी जी, रोटेशन कराएँ, रेल को बदहाली से बचाएं!” में हमने लिखा था कि भगवान को धन्यवाद दीजिये कि कोरोमंडल की जगह कोई वंदेभारत ट्रेन नहीं थी। रेलमंत्री को और उनकी टीम को बराबर हमने चेताया। लेकिन लगता है कि या तो अक्षमता है, या कोई भ्रष्ट सोच। न वंदेभारत एनडीए के लाभार्थियों के लिए है, और न ही कवच रेल सेफ्टी को 100% ठीक कर देगा।
आज मंत्रीजी पूरे रेल सिस्टम पर भी कवच लगा दें, तो भी जो एक्सीडेंट – जिनका इस आर्टिकल में ऊपर उल्लेख है – वह नहीं बच पाते। टेंडरों के हिसाब से ये सब कहना बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जहाँ इंटरलॉकिंग नहीं मैनेज हो पा रही, वहाँ कवच जैसे सिस्टम को कैसे मैनेज करेंगे? रेल सिग्नलिंग वैसे ही ठेकेदारों के हाथ में जा चुकी है, कवच के बाद तो जो बचा-खुचा है, वह भी ठेकों पर चला जाएगा!
प्रधानमंत्री जी – अब रेलमंत्री जी को कहें कि ठेकों पर कम और व्यवस्था चलाने पर अधिक ध्यान दें। इंजीनियरों की भर्ती चालू करवाएँ और पहले की तरह उन्हें यह कॉन्फिडेंस दीजिये कि आपकी लीडरशिप अफसरों को वेंडर्स का एजेंट न बनाए! अफसरों को वेंडर न बनाए!
बोइंग कंपनी पर अमेरिकी सरकार क्रिमिनल केस करने जा रही है, कंपनी द्वारा की गई क्रिमिनल नेग्लिजेंस के लिए यहाँ यह देखें-
बोइंग के #CEO की अमेरिकी सीनेटरों द्वारा की गई इंक्वारी को भी कृपया देख लें-
मंत्री जी, कई बार #incompetence इतनी बड़ी हो जाती है कि वह क्रिमिनल हो जाती है – जो बोइंग कंपनी के साथ हुआ। भारतीय रेल की हालत भी आपने कुछ ऐसी ही कर दी है। इंस्टाग्राम की रीलें इस पाप को नहीं धो सकतीं। देश के प्रधानमंत्री ने आप पर भरोसा कर लाखों करोड़ रुपये दिए, लेकिन आपने रेल को कुछ ऐसा बना दिया: