डीआरएम को “गतिशक्ति” के कार्यों से विलग किया जाए!

डीआरएम्स को “गतिशक्ति” के कार्यों में लगाने से ट्रेन ऑपरेशन, संरक्षा, सुरक्षा, पैसेंजर एमिनिटी और पंक्चुअलिटी बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसका बहुत बड़ा दुष्परिणाम फील्ड में दिखाई दे रहा है। बाकी बची-खुची कसर अनियोजित नॉन-इंटरलॉकिंग के कार्यों ने पूरी कर दी है।

मुख्य कार्य से डिरेल हुए डीआरएम!👇

डीआरएम अपने इन सब दायित्वों को छोड़कर कंस्ट्रक्शन और कमीशन के चक्कर में पड़ गए हैं। टेंडर करने और लगातार रेलवे बोर्ड से मॉनिटरिंग के कारण वे अपने वास्तविक दायित्व को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं।

गतिशक्ति-जिसका उद्देश्य पीएमओ की ओरिजनल गाइडलाइन के अनुसार केंद्र एवं राज्यों के सभी मंत्रालयों/विभागों के साथ समन्वय स्थापित करके किसी भी निर्माण परियोजना को निर्धारित समय पर एकमुश्त पूरा करना था, उस उद्देश्य को रेल मंत्रालय में एक अलग ही स्वरूप दे दिया गया।

यहाँ प्रत्येक जोनल एवं डिवीजनल मुख्यालय में एक अलग “गतिशक्ति प्रकोष्ठ” बना दिया गया और उसे कंस्ट्रक्शन एवं टेंडरिंग का सारा काम सौंप दिया गया। जबकि यह काम जोनल कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशन को सौंपना चाहिए था।

“गतिशक्ति प्रकोष्ठ” के चलते जोनल कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशन के सभी अधिकारी फुर्सत में बैठे हैं। डीआरएम-कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशन के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता चेक करते थे, परंतु अब जब वे स्वयं यह कार्य कर रहे हैं, तब उनकी गुणवत्ता चेक करने वाला कोई नहीं है।

पारंपरिक तरीके से देखा जाए, तो डीआरएम-वह किसी भी कैडर का हो, उसका काम केवल ट्रेन ऑपरेशन, पैसेंजर सेफ्टी, रेल सेफ्टी, पैसेंजर एमिनिटी और पंक्चुअलिटी सुनिश्चित करना था। उन्हें हमेशा कंस्ट्रक्शन से अलग रखा जाता था। इसके लिए ही कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशन बनाए गए थे। अब जो काम डीआरएम कर रहे हैं, वह सब जैसे-तैसे ही हैं-न तो क्वालिटी, न ही मजबूती!

ट्रेन साफ हो, टॉयलेट गंदे न हों, आरक्षित कोचों में भीड़ न हो, आरक्षित कंफर्म टिकट लेकर यात्रा करने वाले यात्रियों को कोई असुविधा न हो, और ढ़ंग का, मनुष्य के खाने लायक खाना उन्हें ट्रेन में मिल जाए, ट्रेनें सही समय पर चलें, पंक्चुअली मेनटेन हो, इन सभी मामलों में रेल प्रशासन फेल है, क्योंकि इन चीजों पर उसका समुचित ध्यान ही नहीं है।

ट्रेनों से स्लीपर कोच, जनरल कोच कम कर दिए गए, हर ट्रेन में एसी कोच बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, मानो भारत-यूरोप अमेरिका बन गया है, परिणाम-एसी और बाकी बचे पाँच -छह रिजर्व/स्लीपर कोचों में अत्यधिक भीड़ है।

कोचों और टॉयलेट्स में उचित साफ-सफाई नहीं है, स्लीपर हो, या एसी-पूरा कोच टॉयलेट्स की दुर्गंध से सराबोर रहता है। इसका बजट रेवेन्यू से आता है। ऐसे में जो अधिकारी कुछ काम करना भी चाहते हैं, वे विजिलेंस के डर से कोई काम नहीं कर पा रहे हैं।

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) और खासतौर पर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को इस प्रशासनिक व्यवस्था पर विशेष ध्यान देकर इसे सुधारने पर तत्काल विचार करना चाहिए!