एक अलग तरह की कमीशनखोरी

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने डीलिंग अफसरों का भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए वंदेभारत ट्रेनों के प्रोडक्शन में निजी क्षेत्र की कंपनियों को शामिल किया है, जिससे सामान और कल-पुर्जों की खरीद में होने वाली अफसरों की कमीशनखोरी को समाप्त किया जा सके।

मोदी जी डाल-डाल, तो रेल अधिकारी पात-पात!👇

मगर कुछ चंट अफसरों ने इसमें भी कमीशनखोरी का रास्ता खोज लिया है। अब वे टेंडर पाने वाली कंपनी को उसकी ड्राइंग पास करने या अन्य तरीकों से मजबूर या ब्लैकमेल करके उसे अपनी पसंद के अप्रूव्ड वेंडर से ही मटीरियल की खरीद करने के लिए बाध्य कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए मान लें कि ABC कंपनी को रेलवे बोर्ड से 50 वंदेभारत ट्रेन सेट बनाने का टेंडर मिला। अब कंपनी को इसमें से ₹200 करोड़ के ब्रेक सिस्टम की खरीद करनी है।

कंपनी ने देखा कि इस आइटम – ब्रेक सिस्टम – में आरडीएसओ द्वारा अप्रूव्ड केवल दो ही सोर्स – अप्रूव्ड वेंडर – A और B – हैं। कंपनी ने दोनों अप्रूव्ड वेंडर्स के ब्रेक सिस्टम का अध्ययन किया और पाया कि अप्रूव्ड वेंडर B का ब्रेक सिस्टम थोड़ा महँगा मगर अच्छा और गुणवत्तापूर्ण है। कंपनी ने वेंडर B का ब्रेक सिस्टम परचेज करने का निश्चय कर लिया।

अब कंपनी अपनी ड्राइंग पास करने के लिए संबंधित अधिकारी – ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी – के पास प्रस्तुत करती है। सारा पेंच यहीं फँसता है, क्योंकि रेलवे बोर्ड ने केवल यही एक काम रेल अधिकारियों के पास छोड़ा है और जो भी अधिकारी ड्राइंग पास करने के इस काम लगा है, वह यहाँ अपने इसी विशेषाधिकार का प्रयोग करके अपने पद और अधिकार का फायदा उठा रहा है।

हालाँकि प्रोडक्शन-क्वालिटी आदि से इस ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी का कोई संबंध नहीं होता, तथापि कंपनी जब अपनी ड्राइंग पास करने के लिए उसे उसके पास सब्मिट करती है, तब वह अधिकारी उससे पूछता है कि “वह मटीरियल किस वेंडर से खरीद रही है!”

कंपनी कहती है कि “उसने वेंडर B को इसके लिए सेलेक्ट किया है।”

तब ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी रखने वाला अधिकारी कंपनी से कहता है कि “वेंडर B के मटीरियल की क्वालिटी ठीक नहीं है, इसलिए वह यह मटीरियल वेंडर B से नहीं, बल्कि वेंडर A से खरीदे, उसका ही मटीरियल ट्रेन सेट में लगाया जाएगा।”

इस पर कंपनी कहती है कि “वेंडर A का मटीरियल क्वालिटी वाइज अच्छा नहीं है, जबकि वेंडर B का मटीरियल (ब्रेक सिस्टम) न केवल क्वालिटी वाइज अच्छा है, बल्कि वेंडर A के मटीरियल की अपेक्षा थोड़ा महँगा भी है, वह सबसे बेस्ट मटीरियल (ब्रेक सिस्टम) लगा रही है।”

इस पर अधिकारी कहता है कि “नहीं, उसे तो वेंडर A का ही मटीरियल चाहिए, उसकी क्वालिटी वेंडर B से अच्छी है, और वह (कंपनी) केवल वेंडर A से ही यह मटीरियल खरीदे, तभी उसकी ड्राइंग पास होगी।”

अब मजबूरी में “मरता क्या न करता” वाली स्थिति में कंपनी को वेंडर B को दिया गया ऑर्डर कैंसल करके वेंडर A को ही मटीरियल (ब्रेक सिस्टम) की ₹200 करोड़ की खरीद का ऑर्डर देना पड़ता है।

इस तरह, एक तरफ वेंडर A को बिना कुछ किए घर बैठे एक बहुत बड़ा ऑर्डर मिल जाता है, तो दूसरी तरफ ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी को 2% के हिसाब से बड़ी आसानी से ₹2 करोड़ का कमीशन प्राप्त हो जाता है।

सूत्रों का कहना है कि इस तरह अब तक ब्रेक सिस्टम की खरीद के लगभग 90% ऑर्डर केवल वेंडर A को मिले हैं। उनका कहना है कि रेलवे की प्रोडक्शन यूनिट्स में कमीशनखोरी का यह एक बहुत बड़ा रैकेट चल रहा है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि वेंडर A की ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी के साथ पहले से सेटिंग है। हालाँकि ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी का मटीरियल की क्वालिटी से कोई लेना-देना नहीं है। मटीरियल अभी तक सप्लाई नहीं हुआ है, सप्लाई होगा तब क्वालिटी चेक होगी, और सप्लाई तब होगा, जब ऑर्डर दिया जाएगा, ऑर्डर तब दिया जाएगा जब ड्राइंग पास होगी, और ड्राइंग तब पास होगी जब ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी के कहने पर उसकी पसंद के वेंडर से मटीरियल खरीदने के लिए कंपनी तैयार होगी।

अब समस्या ये है कि वंदेभारत ट्रेन सेट के ब्रेक सिस्टम के लिए फिलहाल आरडीएसओ से दो ही अप्रूव्ड वेंडर – A और B – हैं। इंटीग्रल कोच फैक्टरी, पेरंबूर, चेन्नई में सेटिंग वाले वेंडर को घर बैठे बिजनेस दिलाने और इस तरह कमीशनखोरी करने की जानकारी मिली है। सूत्रों का कहना है कि ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी द्वारा वेंडर A से मटीरियल (ब्रेक सिस्टम) की खरीद का दबाव बनाया जा रहा है।

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि यह दबाव उन सभी कंपनियों पर आईसीएफ की ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी द्वारा बनाया जाता है, जिन्हें वंदेभारत ट्रेन सेट के प्रोडक्शन का काम मिला है, जबकि क्वालिटी का विषय ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी का नहीं, बल्कि यह विषय क्वालिटी प्रकोष्ठ का होता है, और क्वालिटी तब चेक होती है जब मटीरियल की सप्लाई होती है।

ड्राइंग पासिंग अथॉरिटी, वेंडर A से ही ब्रेक सिस्टम खरीदने का दबाव कंपनी पर बना रहा है। जबकि वेंडर A, वही वेंडर है जिस पर रेलवे बोर्ड ने हाल ही में कई सौ करोड़ रुपये की रिकवरी का आदेश जारी किया है।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध “न खाऊँगा, न खाने दूँगा” का अभियान चलाने वाले मोदी जी अगर डाल-डाल हैं, तो उनके कुछ रेल अधिकारी पात-पात हैं। ये जहाँ जिस भी पद पर बैठते हैं, वहीं लहरें गिनने से भी पैसे बनाने लगते हैं।