सुधीर-सेंस में हो रहा रेल संचालन-क्या भारतीय रेल अब ट्रेन चलाना भी भूल गई?

एक बार फिर से अश्विनी वैष्णव को रेल मंत्रालय सौंपा गया है। उन्हें बहुत-बहुत बधाई! पिछले कार्यकाल में रेल का बंटाधार करने के लिए भी उन्हें अलग से ढ़ेर सारी बधाई! और जो कुछ बचा-खुचा रह गया था, अब उसका भी बंटाधार करने के लिए पुनः उन्हें रेल मंत्रालय सौंपे जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अतिरिक्त बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ!

मगर मोदी जी, आपके विशेष तौर पर इस निर्णय से न तो रेल के लगभग साढ़े बारह लाख रेलकर्मी और अधिकारी प्रसन्न नहीं हुए हैं, और न ही रेल में प्रतिदिन चलने वाले लगभग तीन करोड़ रेलयात्रियों को कोई खुशी हुई है। सर्वसामान्य जनता, जिसके पास रेल के सिवा यातायात का कोई विकल्प नहीं है, में इसका बहुत खराब संदेश गया है। आपके चहेते अश्विनी वैष्णव के अंतर्मुखी होकर केवल अपने एजेंडे पर काम करने के तरीके से रेल के जनरल/स्लीपर क्लास में चलने वाले करोड़ों रेलयात्री जानवरों की तरह ट्रीट किए जा रहे हैं। कहने के लिए तो बहुत कुछ है, जो समय-समय पर सामने आता रहेगा-यहाँ वीडियो में भी कुछ तथ्यों पर बात की गई है, इसे भी कृपया आप और हमारे सुधी पाठकगण देख-समझ लें!

इसके साथ ही यहाँ कुछ और उदाहरण दिए जा रहे हैं, इन्हें भी देखें-

आप-बीता सच बनाम ट्विटर (X) पर चलती रेल का सच!

अब पुनः एचडी वीडियो देखने को मिलेंगे!

वर्तमान समय की रेल यात्रा अपने आप में भीषण परेशानियों की अत्यंत कष्टदायी यात्रा बन गई है। जहाँ एक तरफ चौतरफा ट्रेनों की लेट-लतीफी से जनता त्राहिमाम है, वहीं रेल अधिकारियों की लापरवाही से सरकार की चूलें हिल गई हैं, जड़ें खोखली हो गई हैं, मगर न तो रेलवे बोर्ड में बैठे बेशर्म अधिकारियों को इस बात की कोई चिंता है, न ही सरकार को! जिस व्यक्ति के कारण भाजपा इस बार के चुनाव में मोदी जी बैसाखी पर आ गए हैं, उसे फिर से उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया! उनकी ऐसी क्या मजबूरी है, यह तो वही जानें, मगर इस व्यक्ति ने रेल मंत्रालय का पूरा कबाड़ा कर दिया, यह बात सौ प्रतिशत सही है!

रेल अनुरक्षण (#maintenance) के लिए ब्लॉक चाहिए, लेकिन जब ब्लॉक की प्लानिंग और क्रियान्वयन अक्षम-अयोग्य कंट्रोलर्स और अधिकारियों के हाथ में रहेगा, जोनल हेड क्वार्टर्स के अधिकारी और जीएम, क्या देखना है, और क्या प्रश्न करने हैं, से अनभिज्ञ हैं, तो इसकी कीमत सामान्य नागरिक – जिसके पास भारतीय रेल के सिवा यातायात का अन्य कोई विकल्प नहीं – को चुकानी पड़ती है।

एक जागरूक नागरिक ने हमसे कुछ गाड़ियों की लेट-लतीफी साझा की, तत्पश्चात् हमने उत्तर रेलवे के कुछ कर्मठ कर्मियों और अधिकारियों की भी सहायता ली और इस खबर की पुष्टि किया।

बेपटरी रेल परिचालन – उदाहरण #1

गाड़ी संख्या 01105, दानापुर-पुणे समर स्पेशल, स्पेशल फेयर के साथ, पिछले हफ्ते 49 घंटे देरी से चली, दूर-दराज से ट्रेन पकड़ने आए हजारों यात्री पटना-दानापुर स्टेशनों पर पड़े रहे, कभी दो घंटे, तो कभी चार घंटे बताकर ट्रेन के देरी से आने की सूचना देकर यात्रियों को बहलाया जाता रहा। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, कहाँ तक गिनाए जाएँ!

बेपटरी रेल परिचालन – उदाहरण #2

◆ वैसे कहने को तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में विकास के नाम पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए गए, लेकिन परिणाम कोई नहीं निकला, इसकी पुष्टि की, तो पता चला कि रेल परिचालन व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो चुकी है।

उदाहरण – शनिवार, 8 जून को गाड़ी संख्या 18201 को प्रयागराज से 12.31 बजे चलाया गया। यह गाड़ी वाराणसी आकर आउटर पर 4 बजे से खड़ी रही और इस भीषण गर्मी में दोपहर की चिलचिलाती धूप में यात्रियों को गाड़ी के इंतजार में प्लेटफार्म पर शाम सात बजे तक खड़े रहना पड़ा।

भारी निवेश के बाद वाराणसी यार्ड की रिमॉडलिंग हुई-दो महीने रेल परिचालन लगभग बंद ही रहा और अंत में ये हाल!

बेपटरी रेल परिचालन – उदाहरण #3

ट्रेन ऑपरेशन का इतना बुरा हाल!

शुक्रवार, 7 जून को डबल डेकर ट्रेन आनंद बिहार से चलकर लखनऊ आ रही थी, जिसे लखनऊ से मात्र 5 किमी पहले रात्रि 11 बजे आलमनगर स्टेशन पर रोक दिया गया और लखनऊ रात्रि 1 बजे लिया गया, ट्रेन में छोटे-छोटे बच्चों, बुजुर्गों की अत्यंत दयनीय स्थिति बनी हुई थी और सभी रेलयात्री/नागरिक इस अव्यवस्था के लिए सरकार को कोसते नजर आए। यही कारण रहा है भाजपा और सरकार के बैसाखी पर आने का, मगर ऐसा लगता है कि दोनों ने ही इस सबसे कोई पाठ नहीं सीखा!

बेपटरी रेल परिचालन – उदाहरण #4

रेलवे बोर्ड स्तर से नॉन-इंटरलॉकिंग (#NI) कार्य के दौरान बिना जमीनी हकीकत देखे एक से दो दिन पूर्व कई गाड़ियों का निरस्तीकरण कर दिया जाता है, जिससे रेल यात्रियों को तो समस्याओं का सामना करना पड़ता ही है, साथ ही रेल राजस्व का भी बहुत बड़ा नुकसान होता है। परंतु ऐसा लगता है कि इस सबसे सरकार और अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

◆ ऐशबाग से मानकनगर बाईपास लाइन का नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य रविवार, 9 जून से प्रारंभ हुआ, उसमें से एक लाइन से गाड़ियों का निरस्तीकरण / शॉट टर्मिनेशन जारी कर दिया गया, जब इसकी जमीनी हकीकत को परखा गया, तो देखा गया कि-

गाड़ी संख्या 12522, जिसका समय प्रातः 9.30 बजे वाया ऐशबाग-बादशाहनगर है, उसे वाया चारबाग लखनऊ उत्तर रेलवे चलाया गया। जबकि अन्य ट्रेनें, जिनका समय 10 बजे से 12.30 बजे तक था, उन्हें वाया मानकनगर-लखनऊ जंक्शन पूर्वोत्तर रेलवे थीं, उनको निरस्त कर दिया गया।

परंतु गाड़ी संख्या 12511 (समय 11.55) का रूट नहीं बदला गया, और उसे वाया ऐशबाग-मानकनगर लाया गया।

जब गाड़ी संख्या 12511 को 11.55 बजे इस रूट से चलाना ही था, तो गाड़ी संख्या 12522, जो प्रातः 9.30 बजे इस रूट से थी, के रूट में क्यों बदलाव किया गया? और गाड़ी संख्या 11109 (समय-12.00 बजे), गाड़ी संख्या 12180 (समय 12.20 बजे), गाड़ी संख्या 07305 हुबली से गोमतीनगर (समय प्रातः 9.45 बजे) को क्यों निरस्त किया गया?

यदि गाड़ी संख्या 12511 को भी चारबाग, लखनऊ उत्तर रेलवे से कर दिया जाता, तो ब्लाक 9.30 बजे से ही हो जाता, और शाम को चलने वाली गाड़ियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता।

लखनऊ जंक्शन पूर्वोत्तर रेलवे पर टर्मिनेट होने वाली गाड़ियों का निरस्तीकरण न करके उन्हें लखनऊ जंक्शन/पूर्वोत्तर रेलवे वाया मानकनगर या चारबाग, लखनऊ/उत्तर रेलवे वाया मानकनगर लिया जा सकता था। इससे यात्रियों का रेल के प्रति विश्वास भी बना रहता।

ध्यान रहे कि महीनों पहले रिजर्वेशन करवाकर गर्मियों की छुट्टियों में लाखों परिवार साल भर इंतजार के बाद कहीं जाने का प्लान बनाते हैं और रेलवे लंबी दूरी की ट्रेनों को बिना कुछ सोचे-समझे निरस्त कर देती है। यह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है।

NTES का डेटा है ये!

◆ यदि ब्लाक की प्लानिंग और क्रियान्वयन समय से हो जाता, तो ये ट्रेनें ढ़ाई घण्टे कानपुर और दो घण्टे ब्लाक सेक्शन में न खड़ी रहतीं। वापसी में भी इसको जाना है, अभी दो घण्टे किया है, और अभी और किया जाएगा। और भी बहुत सी गाड़ियाँ हिट हुईं।

इस गाड़ी का कानपुर स्टेशन पर डिटेंशन देखें, और साथ ही ऐशबाग आने में हुई देरी को भी देखें।
यही रैक वापस जानी है, लंबी दूरी की ये गाड़ी पुनर्निर्धारित (#rescheduled) है। रास्ते के सभी यात्री रेल को कोस रहे हैं।

संपादकीय टिप्पणी

#MOBD मैडम सीमा कुमार अपने ही मातहत से अपना इंटरव्यू करवाकर, अपने एडिशनल मेम्बर से फाइल पर स्वीकृति लेकर छह महीने के अपने कार्यकाल के 31 मई को हुए समापन के बाद शनिवार, 1 जून को #PRCL का ऑफिस जबरन खुलवा करके #MD का पद ग्रहण कर लिया।

#CRB मैडम जया वर्मा सिन्हा भी एक महीने के कार्यकाल पर 11 महीने के रिएंगेजमेंट के समाप्त होने से पहले ही किसी ट्रिब्यूनल में जाने को तैयार बैठी हैं।

ऐसे में रेल यात्री बेसहारा हैं! मोदी जी, आपके 10-12 लाख करोड़ रुपये के रेल में किए गए निवेश के बाद भी जो वस्तुस्थिति है, वह आपके सामने है!

मोदी जी, यहाँ दिया गया डेटा रेल के नेशनल ट्रेन इंक्वारी सिस्टम (#NTES) का है। यह बता रहा है कि कैसे यार्ड की दो महीने चली रिमॉडलिंग के बाद भी आपकी कांस्टीट्युएंसी-वाराणसी में भी ट्रेनें समय से नहीं आ पा रहीं। आज सभी #DRM-#GM और रेलवे बोर्ड पूरी तरह अपारदर्शी तरीके से सेलेक्ट किया हुआ है-इस फेलियर की जिम्मेदारी रेलमंत्री, सीआरबी या मेंबर ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट की नहीं, सीधे आपकी है!

अंत में, यहाँ एक वरिष्ठ रेल अधिकारी द्वारा दी गई टिप्पणी पर भी गौर करें-वह कहते हैं-“रोजगार उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। रेल भर्ती से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार के लाखों युवा सीधे प्रभावित होते हैं। रेलमंत्री ‘सुधीर-सेंस’ लगाए हुए हैं। मोदी जी, पिछले केवल 10 दिन के ही रेल में हुए एक्सीडेंट्स की जानकारी निकलवा लेते आप! तो संभवतः अश्विनी वैष्णव को पुनः रेलमंत्री बनाने का निर्णय नहीं लेते! खैर, श्री वैष्णव के पुनः रेलमंत्री का पदभार सँभालने पर उन्हें हार्दिक बधाई! उनके पुनः रेलमंत्री पद पर आने से रेल के खान मार्केट गैंग (#KMG) में अत्यंत खुशी की लहर है, और बाकी सब लोगों के उत्साह पर पानी फिर गया है। अब रेल में “भ्रष्टाचारी बचाओ अभियान” का द्वितीय संस्करण प्रारम्भ होने वाला है। मोदी जी, फिर न कहिएगा कि हमको कुछ पता नहीं था!”