रेलमंत्री जी, विजिलेंस को सम्भालें, इसे है असली ट्रांसफॉर्मेशन की आवश्यकता!

ढ़ेले भर की भी डिलीवरी न देने वाले अधिकारी अपने लालच या अपनी अक्षमता के चलते काम करने वालों को धमकाकर रखते हैं, तब निर्धारित/स्थापित नीति-नियम लागू करने और न्याय देने तथा निर्णय लेने के लिए सक्षम पदों पर बैठे लोगों के बुद्धि-विवेक पर आश्चर्य होता है!

आदरणीय रेलमंत्री जी, अपने निरंकुश विजिलेंस को सम्भालें, आपका यह विजिलेंस प्रकोष्ठ रेल के वर्तमान और भविष्य को अपने पाश में जकड़े हुए है-वास्तव में इसे ही असली ट्रांसफॉर्मेशन की आवश्यकता है! यह काम माननीय चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड (#CRB) अनिल कुमार लाहोटी साहब से न हो पाएगा!

विजिलेंस के गोरखधंधे रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जी आपके राडार पर भी हैं, ऐसा आपने सार्वजनिक बयान में कहा था। हमने कई बड़ी गलतियों को उजागर किया। केवल एक में, जहां #CVO/#RDSO को अलग किया गया। वहाँ भी एडवाइजर साहब की PhD सरीखा बहाना दिया गया, कि अफसर यहाँ से जाना चाहता है। किसी ने ये नहीं पूछा कि गलत फाइल किसने चलाई? किसके कहने से चलाई? इस फाइल पर मंत्री जी के साइन कैसे हुए? किसने कराए थे ये साइन? उसका क्या उद्देश्य था? जाहिर है कि उसका यह उद्देश्य नेक तो नहीं ही रहा होगा! रेल के हित में तो नहीं ही रहा होगा! रेल के भले के लिए तो नहीं ही रहा होगा! इसीलिए नहीं पूछा किसी ने!

वहीं आरकेराय-अशोककुमार-आरकेझा के ‘वसूली नेटवर्क’ पर भी कई लेख आए, #आरकेराय सेवानिवृत्ति के बाद भी नौकरी पर रख लिए गए। वहीं #आरकेझा साहब इतने इनपुट के बाद भी न केवल डटे हुए हैं, बल्कि अपनी चॉइस से आरडीएसओ में पोस्टिंग भी पा गए। #अशोककुमार लगता है अपनी पूरी सर्विस विजिलेंस में ही करके किसी अन्य विभाग के विजिलेंस अधिकारी बन जाएँगे। सब बढ़िया है! वन्दे भारत बनाने वाले अधिकारियों के नाम और करियर बर्बाद करने के बावजूद भी इन तीनों अधिकारियों का कुछ नहीं हुआ। और मंत्री जी आप #ट्रांसफॉर्मेशन की बात करते हैं!

हाल ही में एक अधिकारी, धर्मेंद्र कुमार जो #NCR में बतौर #SrDEE और #DyCEE दागी रहा, उसे #NCR का #DyCVO बना दिया और टेन्योर से अधिक रखा गया। ये साहब प्रयागराज से आए बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (#BLW) और वहाँ भी बोर्ड की और #CVO/BLW की पहल पर पुनः #DyCVO बन गए! अब जब इनके खिलाफ मामले उठ रहे हैं, तो #GMBLW ने रेलवे बोर्ड का नाम बोलकर पल्ला झाड़ दिया। अभी तक तो NCR के कांट्रैक्टर्स ने शिकायत की थी, जो डर के कारण बेनाम थी, लेकिन एक पूरे नाम-पते के साथ शिकायत हमारे संज्ञान में आई है।

बालकृष्ण पांडेय, अधिवक्ता, चौरासी खंभा, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, प्रयागराज के नाम से सेक्रेटरी/सीवीसी को तथा प्रतिलिपि/सीआरबी को भेजी गई यह लिखित शिकायत #Railwhispers ने GM#BLW सहित इसके सभी संबंधित अधिकारियों को भी फारवर्ड की है। और इसे पीईडी/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड सहित बाकी सभी संबंधित बोर्ड अधिकारियों को भी उपलब्ध कराया जाएगा।

हमने बार-बार कहा है, #CVO वही बने जिसने फाइलों पर निर्णय लिए हैं, एक बार विजिलेंस के अधिकारी बन गए तो पूरी सर्विस का आधे से ज्यादा हिस्सा विजिलेंस में ही निकाल देते हैं। और क्यों न निकालें? कोई डर नहीं, चाहें तो हर विभाग से हफ्ता भी मिलेगा, और मिलता भी है, यदि नहीं मिलता, तो जबरन वसूला जाता है। वेंडर अपनी लड़ाई में इन्हें तौल देते हैं। #CRB साहब से इस प्रथा को तोड़े जाने की बड़ी उम्मीद थी, क्योंकि वह इसके भुक्तभोगी रहे हैं, मगर उन्होंने भी अपना आठ महीने का कार्यकाल चार-चार घंटे की वीसी करके जूनियर्स पर केवल धौंस जमाने में बिता दिया।

वहीं #CVC को भी चाहिए कि विजिलेंस के अधिकारी केवल वही लोग बनें, जिन्हें काम करने का अनुभव है। आज जब प्रधानमंत्री डिलीवरी की बात करते हैं और ढ़ेले भर की भी डिलीवरी न देने वाले अधिकारी अपने लालच या अपनी अक्षमता के चलते काम करने वालों को धमकाकर रखते हैं, तब निर्धारित/स्थापित नीति-नियम लागू करने और न्याय देने तथा निर्णय लेने के लिए सक्षम पदों पर बैठे लोगों के बुद्धि-विवेक पर आश्चर्य होता है!

धर्मेंद्र कुमार के पक्ष में #बरेका के कुछ नेता हमसे पूछताछ कर रहे हैं। यह भी एक नई परिपाटी चल गई है-कथित नेता, अधिकारियों में कर्मचारियों की बनिस्बत ज्यादा रुचि रख रहे हैं। जब बरेका के नेता इसमें उतरे और #NCR की शिकायतों पर टीका-टिप्पणी करने लगे, तो हमने अपने प्रयागराज और गोरखपुर ब्यूरो से तथ्यों की पड़ताल करवाई। पता चला कि धर्मेंद्र कुमार ने डिप्टी सीवीओ बनते ही सिविल के युवा अधिकारियों को डराना धमकाना चालू कर दिया है। इन पर दबाव बनाने के लिए उनकी कुछ फाइलें भी उठा ली हैं। इसकी, महाप्रबंधक को शिकायत भी की गई है। पता चला कि बरेका में भी #ICF की भाँति विजिलेंस का आतंक है और सीधे-सपाट काम पर भी अधिकारियों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

ये भी संज्ञान में आया कि, स्टोर्स के कुछ अफसर #CVO से खासे नाराज हैं, उनका यह कहना था कि सीवीओ के पास फाइलें डील करने का कोई अनुभव नहीं है। यह भी पता चला कि वह भी विजिलेंस में ही करियर बिताने की बात करते हैं। जब आपको डिलीवरी करनी नहीं है, तो ज्ञान कितना ही दे दीजिये। उनका कार्य का ज्ञान उतना ही है जितना आर. के. राय का रहा या अशोक कुमार का है। हालाँकि उनके चरित्र या वसूली पर किसी ने टिप्पणी नहीं की, लेकिन ये स्पष्टता से आया कि उनकी #competence पर बहुत गंभीर सवाल हैं।

जब रेल की विजिलेंस, #GMECR, #MTRS, #CRB, आर. के. भारती और गणेश जैसे सीधे केस नहीं हैंडल कर पाए तो और क्या होगा। वहीं वज्र ईमानदार अधिकारी एग्रीड लिस्ट में आ गए!

ये #incompetence और #extortion प्रवृत्ति के द्योतक हैं!

हमने लगातार माँग की है कि विजिलेंस के अधिकारियों का प्रोफाइल रेल मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला जाना चाहिए, ताकि सबको पता तो चले कि विजिलेंस अधिकारियों के पास काम का अनुभव है कि नहीं। पहले ये माना जाता था कि विवेकपूर्ण टेक्निकल निर्णयों में विजिलेंस नहीं जाती थी, वहीं कमिटी के निर्णय भी विजिलेंस नहीं देखती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सारी निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार कर विजिलेंस वाले #PHOD और #GM की बात को भी कोई तवज्जो नहीं देते, ये अधिकार, विजिलेंस के पुराने अधिकारी कहते हैं, कि विजिलेंस के पास नहीं है। यदि ऐसा है तो ‘शेड्यूल ऑफ पॉवर’ निरर्थक है!

धर्मेंद्र कुमार का केस #प्रधानमंत्री के कार्यक्षेत्र अर्थात् संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हुआ है, और जो नित नई बातें निकलकर आ रही हैं वह #NCR की हैं। चूँकि #धर्मेंद्रकुमार विजिलेंस में रहे, इसलिए उनको दबाने में उन्हें आसानी रही। लेकिन जब यही काम वह बरेका में करने लगे और नेतनागरी इसमें उतर गई, तो ये संदेहास्पद है।

यह भी पता चला कि बरेका की पूर्व #महाप्रबंधक ने सिविल विभाग को बोर्ड की मदद से बहुत टाइट भी किया था। क्या, कोई #नेक्सस पुराने गोरखधंधों को बरेका में वापस लाना चाह रहा है? हमने पहले भी बरेका में माफिया के बारे में लिखा था कि कैसे राजेश कुमार राय जैसे अधिकारी के. एम. सिंह, एम. पी. सिंह जैसे अधिकारियों से मिलकर बरेका में एक गहरा रैकेट चलाते थे। हमारे प्रकाशन के बाद #केएमसिंह का प्रयागराज ट्रांसफर हो गया, लेकिन बरेका में 20-25 साल से पोस्टेड लोग अभी भी टिके हैं और खुलेआम वेंडरों से वसूली करते हैं। उन्हें पता है कि GM आते जाते रहते हैं, अधिकारी आएंगे-जाएंगे, लेकिन ये आपराधिक प्रवृत्ति के लोग हमेशा वहीं बने रहेंगे।

फ़िलहाल ये सार्वजनिक हो कि आज के CVO और DyCVO के काम का डिटेल क्या है? क्या वो इस पोस्ट पर रहने के लायक़ हैं? मंत्री और सीआरबी सभी CVO और DyCVO के इंटरव्यू लें। साथ-साथ ये भी बताया जाए कि दागी धर्मेंद्र कुमार को DyCVO बनाने का क्या खास कारण रहा? किसके कहने अथवा किसकी अनुशंसा पर उन्हें लगातार यह संवेदनशील पद सौंपा गया? रेलवे बोर्ड इसका जवाब दे!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी