सुधीर-मोह से बाहर निकलकर विषधरों से रेल की रक्षा करें रेलमंत्री जी!
माननीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जी, कुछ निकम्मे, भ्रष्ट और कदाचारी अधिकारियों से अधिकांश रेल अधिकारी/कर्मचारी परेशान हैं, प्रताड़ित हैं, उनकी चीख-पुकार को सुनें और ऐक्शन मॉड में आएं, वरना जो आरंभिक भौकाल दिखाया था, उसे वही समझा जाएगा जो जीएम सेलेक्शन पैनल के एक सदस्य ने कहा था कि छह महीने में बोर्ड मेंबर किसी भी मंत्री को अपने स्तर पर उतार लेते हैं!
क्या यही वह अच्छे दिन के वादे थे जिसमें पैरों में पहनी जाने वाली चप्पल के बदले एक गरीब कर्मचारी को उसके आदमी होने के अस्तित्व से वंचित कर दिया जाएगा और वह जोरू का गुलाम #DRM अपनी जीत का जश्न मनाता रहेगा!
#Railwhispers और #RailSamachar का एकमात्र उद्देश्य और ध्येय यह है कि भारतीय रेल- संरक्षा, सुरक्षा, समयपालन एवं यात्री सुविधा के मामले में नित-नए कीर्तिमान स्थापित करे और भारत का नाम पूरे विश्व पटल पर प्रकाशमान करे। इसके लिए आवश्यक है कि जो दीमक रेल को अन्दर से खोखला कर रहे हैं उनके कुकृत्यों, अपराधों और कुप्रवृत्तियों को सार्वजनिक किया जाए, सबके सामने लाया जाए, उनका पर्दाफाश किया जाए, और उन्हें व्यवस्था की मुख्य धारा से अलग-थलग किया जाए। इस मुहिम को नित नए-नए हमले और धमकियों का सामना करना पड़ता है। हमारे हौसलों को परखने की कोशिश की जाती है। हमें डराया-धमकाया जाता है, हमारे घर तक आदमी भेजे जाते हैं, लेकिन माँ भारती के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से हम लगातार अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं।
#सुधीर-दृष्टि अर्थात #सुधीरोपिया से ग्रसित रेल व्यवस्था पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुकी है। रेलमंत्री को या तो पूरी तरह गुमराह कर दिया गया है, या फिर वह स्वयं दिग्भ्रमित हैं, अथवा किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं। #Railwhispers को विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार #पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद सुधीर रूपी कैंसर को रेल से हटाया गया, परंतु लगता है रेलमंत्री महोदय सुधीर-विरह में तड़प रहे हैं, शायद इसीलिए उन्होंने रेल भवन से सुधीर कुमार के निष्कासन को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है, न ही वे किसी सर्वज्ञात भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई करने में कोई रूचि दिखा रहे हैं।
#सुधीरकुमार जाते-जाते नए #DRMs के रूप में अपना दंश छोड़ गए, ताकि आने वाले समय में रेल पर कैंसर के प्रभाव में कोई कमी न हो। #DRM/धनबाद कमलकिशोर सिन्हा अपनी नकचढ़ी बीवी के चप्पल के बदले एक कर्मचारी के कपड़े उतारने पर अमादा हैं, महाभ्रष्ट #गणेश और #आरपीभारती सुखरूप डटे हुए हैं, लेकिन मृतप्राय रेल प्रशासन और रेल की व्यवस्था इन कदाचारियों के साथ है। रेल की व्यवस्था इतनी लचर कभी-भी नहीं थी। रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था, यह उक्ति रेल मंत्रालय पर अब एकदम सटीक बैठने लगी है।
बताते हैं कि आठ महीने यों ही बिता देने वाले चेयरमैन/सीईओ साहेब अंदरखाने अपने सेवा विस्तार के प्रयास में लगे हैं। हालाँकि कहा ये है कि उन्होंने इसके लिए मना कर दिया है। अपने मुँह से स्वीकार तो कोई नहीं करता, मगर नंबर बढ़ाने और महान बनने का यह तरीका काफी मौजूं है। चेयरमैन साहेब अमृत भारत स्टेशन योजना के उद्घाटन समोराह की सफलता का अमृतपान करने में लगे हैं, जिससे 300 निर्दोषों के रक्त से सिंचित उनकी कुर्सी का अमरत्व बना रहे। सब जानते हैं कि चेयरमैन साहेब की कुर्सी विजिलेंस वाले कुख्यात #आरकेझा की वजह से जाते-जाते रह गई थी! जिनके जीएम बनने के लाले पड़ गए थे, वह न केवल जीएम बने, बल्कि मेंबर भी बने, और आठ महीने से सीआरबी की चेयर पर हैं, और विजिलेंस प्रकोष्ठ सीधे इनके मातहत है, लेकिन इन्होंने भी विजिलेंस की समस्या का समाधान नहीं खोजा, न ही लंबे समय से बोर्ड एवं जोनल विजिलेंस में बैठे आर. के. झा एवं आर. के. राय के चेलों, वसूलीबाजों को हटाया!
बाहर के लोगों को रेलवे विजिलेंस के उच्च पदों पर लाया जाना अत्यंत आवश्यक है, फिलहाल ऐसा नहीं है इसलिए सीआरबी साहेब ने भी #सुधीरदाब के चलते अपनों को फेवर करने के लिए #DRMs की पोस्टिंग में हाथ साफ कर लिया। पैनल बनाने में की गई चालबाजी को फिर कभी एक्सपोज किया जाएगा! कई लोग जो पूरी सर्विस में केवल चापलूसी और जुगाड़ के आधार पर अपनी पोस्टिंग मैनेज करते रहे, जिनको संरक्षा और परिचालन का कोई अनुभव नहीं था, केवल एज-क्राइटेरिया के कारण उन्हें भारतीय रेल की बागडोर सौंप दी। ये वही लोग हैं जो अपनी विफलताओं का ठीकरा अपने मातहतों के ऊपर फोड़ते हैं। ये वही लोग हैं जो संरक्षा की भीषण लापरवाही के बाद ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘डी’ कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाकर अपनी कुर्सी बचाए रखते हैं।
करीब 300 हत्याओं के जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ तीन महीने में क्या कार्रवाई हुई? केवल उनकी जगह बदल दी गई, ये रिवॉर्ड है, या कुछ और, यह तो रेलमंत्री या रेल मंत्रालय ही बता सकता है। तथापि सच ये है कि जिन रेल अधिकारियों को सेवा से तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए था उनको सेटल किया जा रहा है। अर्थात् भ्रष्टों को रेलमंत्री और रेल मंत्रालय का संरक्षण प्राप्त है, यदि ऐसा समझा जाए, तो क्या गलत होगा?
#बालासोर की घटना को दो महीने बीत गए, लेकिन रेल के ऊपर इसका क्या प्रभाव पड़ा, यह कहीं दिखाई नहीं दे रहा। प्रतिदिन बालासोर सरीखी घटनाएं हो रही हैं, तथापि रेल में इवेंट्स की कोई कमी नहीं देखी जा रही, घटनाओं के चलते भले ही किसी की जान नहीं जा रही लेकिन जान जाने का अंदेशा और भय हमेशा बना रहता है, परंतु सेवा विस्तार की लालसा पाले हुए चेयरमैन साहेब अमृत भारत स्टेशन योजना के कार्यक्रम को इतिहास के पन्नो में दर्ज कराने को व्याकुल दिखे। समोराह स्थल पर टेंट का साइज और कुर्सियों की संख्या को लेकर चिंतित रहे, वीसी पर वीसी किए जा रहे थे जैसे कि उनके घर का कोई वैवाहिक कार्यक्रम हो रहा हो।
जान हथेली पर रखकर भीषण गर्मी, कड़ाके की ठंड में या मुसलाधार बारिश, जिसमें लोको के गंदे विंड स्क्रीन के आगे कुछ नहीं दिखता है, में वरिष्ठ अधिकारियों के दुर्व्यवहार, रनिंग रूम्स की घोर अव्यवस्था और अन्य कमियों को झेलते हुए रेलवे के ड्राइवर राष्ट्र की सेवा में लगे हुए हैं, लेकिन किसी भी दुर्घटना में गाज सिर्फ उन्हीं पर गिरती है। जब कोई मंडल या जोन अच्छा कार्य करता है, उसका श्रेय वरिष्ठ अधिकारी लेते हैं, बड़े-बड़े क्लबों में शराब और शबाब का मजा लेते हैं, पांच-सितारा होटलों में त्रिया-चिंतन करते हैं, लेकिन किसी भी फेलियर की जिम्मेदारी नीचे के कर्मचारियों पर डाल दी जाती है।
रेलमंत्री जी, हकीकत को समझिये, सुधीर-मोह से बाहर निकलिए। इस तरह की लापरवाही, जैसी कि धनबाद मंडल के भभुआ रोड स्टेशन पर हुई है, उसके लिए किसी वरिष्ठ अधिकारी जैसे कि #GM या #DRM को सेवा से बर्खास्त कीजिये, फिर देखिये यह व्यवस्था कैसे सुधर जाती है। पूर्व मध्य रेल के घुन्ने धृतराष्ट महाप्रबंधक को सेवामुक्त कीजिये फिर देखिये ये व्यवस्था कैसे पटरी पर आती है। 2 जून को बालासोर में हुई, 17 जून को लखनऊ के पास निगोहां में हुई, 25 जून को फिर ओंडाग्राम-पुरूलिया में हुई, ये तो कुछ बड़ी घटनाएं हैं, मगर कम प्रभाव या कम डेंसिटी वाली डिरेलमेंट की ऐसी सैकड़ों घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं होतीं! और जितनी होती हैं, उनमें आधी डिवीजन छिपा लेता है, उनकी आधी जोन छिपा लेता है और फिर जोन द्वारा रिपोर्ट की गई कुल घटनाओं में से आधी रेलवे बोर्ड छिपा लेता है रेलमंत्री से! इस तरह चोरी और चालबाजी से चल रही है हमारी भारतीय रेल!
जनता के पैसे पर ऐश करने वाले अधिकारी रेल टिकट पर यह छाप देते हैं कि उसकी यात्रा के खर्च का बड़ा हिस्सा वे वहन कर रहे हैं, जैसे कि वे जनता को भीख दे रहे हैं। जनता पर अहसान कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं कि सुबह-सुबह स्टाफ के साथ जिन बड़ी-बड़ी गाड़ियों में उनके बच्चे स्कूल जाते हैं, उन सरकारी गाड़ियों और सरकारी स्टाफ का खर्च जनता उठाती है। चप्पलबाज बीवियों की पार्टी और शॉपिंग को जाने-आने के लिए गाड़ी का खर्च उसी जनता के पैसों से निकाला जाता है। महिला संगठनो के इवेंट्स का खर्च भी वही जनता उठाती है, जिसको भेड़-बकरी और सामान की तरह बदतर हालत में लदकर दो जून की रोटी कमाने के लिए दिल्ली, पंजाब, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जाना पड़ता है।
रेलमंत्री जी, अधिकारियों की यह अहंकारी मानसिकता बदलनी चाहिए। वरिष्ठ अधिकारियों के बंगलों और निजी आवासों पर बंधुआ मजदूरी करने वाले कर्मचारियों के वेतन के पैसे यही जनता देती है। विगत कुछ वर्षों में खासकर पिछले चार-पांच सालों से यह देखा जा रहा है कि मंडल में पोस्टेड किसी शाखा अधिकारी को प्रमोशन के बाद उसी मंडल का #ADRM बना दिया जाता है। इसके पीछे कौन सा गणित या रसायन शास्त्र है, यह किसी की भी समझ से परे है, मगर एडीआरएम और स्टेशन डायरेक्टर की पोस्टें रेल में भ्रष्टाचार को बढ़ाने में अत्यंत सहायक सिद्ध हुई हैं, यह सच है।
जो अधिकारी तीन-चार साल या उससे अधिक समय से एक मंडल में पोस्टेड है, अगर उसको वहां का #ADRM बना दिया जाता है तो वहां की व्यवस्था कभी भी नहीं सुधरेगी, क्योंकि वह अधिकारी अपने कार्य की वजह से नहीं, अपनी सुविधा के अनुसार अपनी चॉइस और अपनी भुगतान क्षमता के आधार पर वहां प्रमोट होता है। वह रेल के बारे में न सोचकर केवल अपने बारे में सोचता है। इस तरह रेल को रसातल में धकेला जा रहा है। #IRMS, सुधीर कुमार, नवीन कुमार, जितेंद्र सिंह, के. एम. सिंह, आर. के. झा, आर. के. राय, अशोक कुमार, अनुपम शर्मा, गणेश और रवि प्रकाश भारती, धर्मेंद्र कुमार, सिकदर जैसे कुछ अधिकारी इसी सोच का परिणाम हैं, जो भारतीय रेल को गर्त में ले जा रहे हैं।
#रेलव्हिस्पर्स के आगाह करने के बावजूद भ्रष्ट और निक्कमे अधिकारियों को पुरस्कार स्वरुप मनचाही पोस्टिंग देना यह दर्शाता है कि रेल जाए भाड़ में, हम तो सेवा का मेवा खाएंगे और बांटेंगे भी। चेयरमैन साहब से बहुत उम्मीद थी, मगर ऐसा लगता है कि बालासोर के मारे गए निर्दोषों की लाशों पर अपनी कुर्सी बचाए रखने की कामना में उन्होंने औरंगजेब, जिसने गद्दी की खातिर अपने भाईयों के लाशें बिछा दी थीं, को भी पीछे छोड़ देने का निश्चय कर लिया है।
‘बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैइया’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाला धनबाद मंडल का सबसे भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारी – सीनियर डीईएन सूरज कुमार – के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई, ये तो पता नहीं, लेकिन संबंधित पी-वे सुपरवाइजर के खिलाफ विच-हंटिंग शुरू हो गई है। सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि जो गलत हुआ, उसके लिए क्या ऐक्शन लिया गया, उसको दरकिनार कर, यह खबर किसने बताई होगी, यह पता लगाने के लिए केवल संदेह के आधार पर उसके खिलाफ पूरी भ्रष्ट व्यवस्था हाथ धोकर पीछे लग जाती है।
नकचढ़ी तुनकमिजाज मैडम, जिसने शायद ही कभी अपने खर्च पर एक जोड़ी चप्पल खरीदी होगी, उसके चप्पल के बदले एक कर्मचारी की इज्जत को तार-तार करने वाले, उसके स्वाभिमान को नंगा करने वाले जोरू के गुलाम #DRM/धनबाद के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई, यह भी किसी को पता नहीं! क्या यही वह अच्छे दिन के वादे थे जिसमें पैरों में पहनी जाने वाली चप्पल के बदले एक गरीब कर्मचारी को उसके आदमी होने के अस्तित्व से वंचित कर दिया जाएगा और वह जोरू का गुलाम #DRM अपनी जीत का जश्न मनाता रहेगा!
जात-पात के खेल में स्वजातीय अधिकारी #DRM की मोर्चाबंदी में लग गए। #DRM ने स्वजातीय #ADRM और #ADRM अपने स्वजातीय ब्रांच अधिकारी को अपनी जगह ताजपोशी कराने की जुगत में लगा दिया, ताकि उनका कुकर्म जारी रहे और अंधेरगर्दी कायम रहे। माननीय रेलमंत्री जी, सुधीर-मोह से बाहर निकलिए ये “सूरज” सिर्फ अँधेरा देगा, इसके पैसों की चमक को रोशनी समझने की भूल न करें। रेलमंत्री जी, सुधीर कुमार, नवीन कुमार, आर. के. झा, अशोक कुमार जैसे दीमक आपकी कुर्सी को खोखला कर देंगे, सम्हलने का मौका भी नहीं मिलेगा। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने यह जिम्मेदारी आपको दी है, इसको निष्ठा और ईमानदारी से निभाइए। अभी भी समय है, वरिष्ठ पदों पर बैठे आस्तीन के सापों को पहचानिए और इनके फन कुचल डालिये, ताकि इन विषधरों से भारतीय रेल की रक्षा की जा सके। यही माँ भारती की सच्ची सेवा होगी!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी