ईसीआर एसएलटी स्कैम: क्या वाकई हमाम में सब नंगे हैं!

अगर रेल में भ्रष्टाचार रोकना मंत्री की प्राथमिकता में नहीं है, तो कम से कम उसको रोकने के नाम पर स्थापित किए गए सतर्कता संगठन को बंद करके, इस पर हो रहे बेवजह खर्चों को ही रोक लिया जाए!

जीएम साहेब के दिल्ली में बन रहे नए आशियाने की आंतरिक साज-सज्जा का खर्च एसएलटी स्कैम के पैसों से किया जा रहा है! यह भी कहा जा रहा है कि ₹250 करोड़ से अधिक का स्कैम हो जाए और जीएम को इसकी भनक न हो, अथवा उन्हें इसका हिस्सा न मिला हो, ऐसा कदापि नहीं हो सकता!

समझ से परे केवल एक बात है कि रेलमंत्री और प्रधानमंत्री क्यों मजबूर हैं? क्यों चुप हैं? क्यों नहीं ऐक्शन में दिख रहे हैं? इतने सारे कदाचार एवं भ्रष्टाचार के मामले देखकर अथवा संज्ञान में लाए जाने पर भी उनकी उदासीनता का क्या कारण है? क्या भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात केवल मन में रखने के लिए है? क्या इस पर अमल नहीं करना है?

दिल्ली से लेकर मद्रास तक और मुम्बई से लेकर असम तक भारतीय रेल के लगभग सभी जोनों के निर्माण संगठनों के कार्यालयों सहित कुछ अन्य महत्वपूर्ण रेल प्रोजेक्ट्स – कदाचार, भ्रष्टाचार के केंद्र बिंदु बने हुए है, लेकिन इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है, चाहे वह रेलवे का सतर्कता संगठन हो, या रेलवे बोर्ड में शीर्ष पर बैठे अधिकारीगण। ऐसा लगता है कि शीर्ष की यह उदासीनता एक षडयंत्र के तहत है, या फिर यह अकर्मण्यता, अक्षमता और किंकर्तव्यविमूढ़ता की निशानी है, शायद इसीलिए कहा जा रहा है कि ‘इस हमाम में सब नंगे हैं!’

सीबीआई द्वारा रजिस्टर किए जा रहे मामले हों, सीवीसी द्वारा बताई जा रही कमियां हों, या #Railwhispers द्वारा उठाये जा रहे ऐसे तमाम मुद्दे हों, सब पर मौन साधे बैठे हैं रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) के टॉप ब्रॉस! इतने मामलों के बाद भी पसरा हुआ ये मरघटी सन्नाटा केवल इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि लूट का हिस्सा ऊपर तक जाता है? और भ्रष्टाचार के एप्पल में सबका कुछ न कुछ अवश्य हिस्सा है?

समझ से परे केवल एक बात है कि रेलमंत्री और प्रधानमंत्री क्यों मजबूर हैं? क्यों चुप हैं? क्यों नहीं ऐक्शन में दिख रहे हैं? इतने सारे कदाचार एवं भ्रष्टाचार के मामले देखकर अथवा संज्ञान में लाए जाने पर भी उनकी उदासीनता का क्या कारण है? क्या भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात केवल मन में रखने के लिए है? क्या इस पर अमल नहीं करना है? अगर भ्रष्टाचार रोकना सरकार की मंशा नहीं है, तो कम से कम उसको रोकने के नाम पर स्थापित की गई जांच एजेंसियों, विभागीय सतर्कता संगठनों को बंद करके उन पर हो रहे बेवजह खर्चों को ही रोक लिया जाए!

पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में ढ़ाई सौ करोड़ से अधिक के एसएलटी स्कैम के शातिर मास्टर माइंड पूर्व मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/दक्षिण (सीएओ/सी/साउथ) को उसी रेलवे का प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर (पीसीई) बना देना सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपनों और घोषणाओं को पलीता लगाने से कम नहीं है। एक सिंडिकेट जो कि एसएलटी स्कैमर जैसे लोगों के टुकड़ों पर पलता है, और उसके लिए लॉबिंग करता है, ऐसे बंदोबस्त करता है, ताकि उनकी दूकान चलती रहे।

इसी रेलवे में एक सीनियर अधिकारी 6 वर्षों से अधिक समय तक विभाग प्रमुख बनकर एक ही जगह बैठा रहता है, बहरूपिया की तरह, ऊपर से ईमानदारी का चोला लपेटा हुआ, और कम्बल ओढ़कर घी पी रहा है, जिसके बारे में सीवीसी के नियम बहुत साफ हैं। इसका परिणाम सबके सामने है, उसके दंभ और स्वार्थ ने दो युवा अधिकारियों की बलि ले ली। सीबीआई जैसी संस्था द्वारा उसके अधीनस्थ वरिष्ठ अधिकारी जेल में रखे गए हैं, लेकिन ट्रैफिक डायरेक्टरेट, रेलवे बोर्ड के हुक्मरान उस ययाति को ससम्मान उसी पद पर बैठाए हुए हैं, ताकि उनकी झोली भरने का क्रम रिटायरमेंट तक बदस्तूर जारी रहे।

हालांकि एसएलटी के नियम बहुत स्पष्ट हैं, लेकिन चांडाल चौकड़ी के शातिर सदस्यों ने पैसे के लालच और जातपात के चक्कर में ₹250 करोड़ से अधिक के एसएलटी ऐसे कार्यों के लिए कर दिए जो कि न स्पेशल नेचर के थे, न ही अर्जेंट नेचर के! एसएलटी के माध्यम से सामान्य कार्य ऊँची दरों पर अपने चहेते और जाति-बिरादरी के ठेकेदारों को दिए गए, अपने जाति के कनिष्ठ अधिकारी के बेटे को पेटी कांट्रेक्टर बनाया, इसके पीछे मात्र एक ही मंशा है, पैसे कमाना और कमवाना!

भारी-भरकम कमीशन के लालच में मदांध पूर्व सीएओ ने निर्धारित नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ा डालीं। व्यवस्था की ऐसी क्या मजबूरी थी कि मामले को दबाने के लिए उसको वहीं का वहीं पीसीई बना दिया गया? “सप्लाई चेन बाधित न हो, शायद इसके लिए ऐसा किया गया होगा!” यह कहना है यहां के अधिकांश अधिकारियों और कर्मचारियों का।

Ek-Caste-Railway (ECR) की चांडाल चौकड़ी जातिगत व्यवहार और रुपये-पैसे के लेन-देन पर आधारित भ्रष्टाचार का पर्यायवाची बन गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि रेलवे बोर्ड में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों ने इस ओर से आँख बंद कर ली हैं। कहा गया है कि ‘सोये हुए को जगाया जा सकता है, लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा हो, उसको जगाया नहीं जा सकता!’

ईसीआर में वर्तमान स्थिति ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ की है। बगुलाभगत बने जीएम, चांडाल चौकड़ी के इशारों पर नाचने को मजबूर हैं। बताते हैं कि इस चौकड़ी ने एक साजिश के तहत एक पांच सितारा होटल की चकाचौंध दिखाकर जीएम को अपने कब्जे में ले लिया है, बाद में शायद जीएम साहेब को भी इस सब में मजा आने लगा है!

हालांकि #Railwhispers इन बातों की पुष्टि नहीं करता है, तथापि कुछ विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि जहां ‘मैडम’ की एक हुंकार में दाल पक रही हो, वहां क्या नहीं हो सकता! बहरहाल यह मैटर अगली किस्तों पर छोड़कर, सूत्रों का कहना है कि जीएम साहेब के दिल्ली में बन रहे नए आशियाने की आंतरिक साज-सज्जा (इंटीरियर डेकोरेशन) का खर्च एसएलटी स्कैम के पैसों से किया जा रहा है! यह भी कहा जा रहा है कि ₹250 करोड़ से अधिक का स्कैम हो जाए और जीएम को इसकी जानकारी न हो, अथवा उन्हें इसका हिस्सा न मिला हो, ऐसा कदापि नहीं हो सकता!

जीएम, जोनल रेलवे का सबसे बड़ा अर्थात शीर्ष अधिकारी होता है। उसका व्यक्तिगत आचरण सभी मातहतों के लिए अनुकरणीय होता है। भारत सरकार के अधिकारियों के लिए बने नियम के अनुसार सभी अधिकारियों को हर साल अपनी चल-अचल सम्पत्ति का ब्यौरा देना होता है। मासिक वेतन की एक निर्धारित सीमा के बाद की गई किसी भी खरीदारी की सूचना सरकार को देनी होती है, और विश्वास है कि इंटीरियर डेकोरेशन पर किए जा रहे खर्च की भी जानकारी उचित माध्यम से सरकार (रेल मंत्रालय) को दी गई होगी। अगर नहीं दी गई है, तो मामला गंभीर है, और सूत्रों के दावों को बल मिलता है।

एसएलटी स्कैम की जांच सीबीआई जैसी संस्था से कराने में किसको दिक्कत है? या फिर 250 करोड़ की लूट को इस लायक नहीं समझा जा रहा है कि इसकी जांच भी की जाए? वह कौन है, जो इन स्कैमर्स का गॉडफादर बना हुआ है? जानकारों का तो यह तक कहना है कि इसमें दोषी सभी लोगों को रेलवे से तुरंत बर्खास्त किए जाने की दरकार है।

#Railwhispers के माध्यम से सैकड़ों निष्ठावान रेल अधिकारियों द्वारा रेलमंत्री और सीआरबी से बार-बार यह मांग की जा रही है कि अगर रेलवे को भ्रष्टाचार और कदाचार से मुक्त करना है, तो सभी जोनल मुख्यालयों में दो साल से अधिक समय से एक ही जगह जमे हुए एसएजी/एचएजी, यानि एचओडी/पीएचओडी अधिकारियों को अविलंब या तो परस्पर स्थानांतरित किया जाए, या फिर अन्यत्र भेजा जाए, और इसकी शुरुआत तुरंत पूर्व मध्य रेलवे से की जाए!

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