जिम्मेदारी प्रधानमंत्री और रेलमंत्री की है – वे साबित करें कि रेल में सचमुच रावण-राज नहीं है!
जब तक मठाधीशों के कुकृत्यों की जांच नहीं होती, तब तक कैसे हटेगा ‘जुमलों की सरकार’ का टैग!
अगर सत्ता ‘राम’ की होगी तो इन ‘मठाधीशों’ का उपाय होगा, अन्यथा ये इस बात के जिंदा प्रमाण बने रहेंगे कि राज तो रावण का ही है, भले लालकिले की प्राचीर से भाषा राम की बोली जाए! अब जिम्मेदारी प्रधानमंत्री और रेलमंत्री की है कि वे साबित करें कि सचमुच रावण-राज नहीं है!”
पूर्व मध्य रेलवे (ईसीआर) में जो कुछ हुआ, और जो कुछ उसके बाद निकलकर बाहर आया, उसके बाद रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) से ईसीआर में बैठे कुछ मठाधीशों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की उम्मीद की जा रही थी। परंतु लगभग पंद्रह दिन बीत जाने के बाद भी ऐसी कोई गतिविधि होती दिखाई नहीं दे रही है। इससे अधिकारियों और कर्मचारियों में भीषण हताशा और निराशा का संचार हुआ है।
स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ और आजादी के अमृत महोत्सव पर 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने कहा कि “भ्रष्टाचार के प्रति लोगों में नफरत तो दिखाई दे रही है, लेकिन भ्रष्टाचारियों के प्रति अभी भी उदारता है!”
पता नहीं, यह बात रेल मंत्रालय में ईसीआर के तीन अधिकारियों की बलि ले चुके ‘मठाधीश’ पर ज्यादा सटीक बैठती है, या चांडाल चौकड़ी के चार विभाग प्रमुखों (पीएचओडी) पर, खासकर पीएफए और सीएओ/कंस्ट्रक्शन/साउथ पर!
परंतु एक बात तो तय है कि इन चारों पर रेलवे बोर्ड की अतिशय उदारता प्रधानमंत्री के उपरोक्त संबोधन का ईसीआर सहित पूरी भारतीय रेल में माखौल उड़ रहा है।
Read: “ईसीआर का सबक-1: जो सबको स्पष्ट दिखता है, केवल उनको नहीं, जिनको वास्तव में दिखना चाहिए!“
“ईसीआर के साथ-साथ सभी जोनल मुख्यालयों में बैठे ‘मठाधीशों’ को जब तक दरबदर कर उनके कुकृत्यों की जांच नहीं कारवाई जाएगी, तब तक भाजपा से कैसे हटेगा ‘जुमलों की सरकार’ का टैग!” यह कहना है निराश-हताश तमाम निष्ठावान रेलकर्मियों और अधिकारियों का।
ईसीआर में बेखौफ भ्रष्टाचार में डूबे उक्त विभाग प्रमुखों के विषय में धनबाद के एक यूनियन नेता ने कहा कि “ये अधिकारी लंका से आए हैं, और जो लंका में सबसे छोटा था वह भी बावन हाथ का था। तो ईसीआर में ये और जितने घाघ अधिकारी रहे हैं, वे सब लंका से ही आए थे, आए हैं, और इन बावन हाथ वालों से जो भी कम पड़ गया, उसे ये मसल-मसलकर मार डालते हैं!”
Read: “ईसीआर का सबक-2: कैसे होगा मौखिक भ्रष्टाचार का स्थाई समाधान!“
नेता का यह भी कहना था कि “इसमें कोई पीसीओएम की तरह साधु का भेष धारण कर हरण करता है, या फिर पीएफए और सीएओ/सी/साउथ की तरह खल मारीच बनकर व्यवस्था को लूटता है। परंतु यह सब रेलवे बोर्ड में बैठे एडहॉक लोगों को दिखाई नहीं देता है!”
Read: “East Central Railway is being run by a caucas of Chandal Chaukadi!“
उन्होंने आगे कहा कि “और साहब, अगर सत्ता ‘राम’ की होगी तो इन मठाधीशों का उपाय होगा, अन्यथा ये इस बात के जिंदा प्रमाण बने रहेंगे कि राज तो रावण का ही है, भले लालकिले की प्राचीर से भाषा राम की बोली जाए! अब जिम्मेदारी प्रधानमंत्री और रेलमंत्री की है कि वे साबित करें कि सचमुच रावण-राज नहीं है!”
Read: “पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे: “लबाड़ी यादव” कर रहे हैं पहाड़ों में ट्रेक्किंग, रेलमंत्री का कोई खौफ नहीं!“
निष्ठावान रेलकर्मियों और अधिकारियों का कहना है कि “पूरी भारतीय रेल में कुछ मठाधीशों का एक ईको-सिस्टम काम कर रहा है। रेलमंत्री शायद इस मुगालते में हैं कि सिस्टम वह चला रहे हैं, मगर वास्तव में यह सिस्टम रेल के कुछ मठाधीश चला रहे हैं, जिन पर रेलमंत्री और चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड का कोई वश नहीं है।”
Read: “रेलवे का ‘नीतिगत भ्रष्टाचार’ हुआ उजागर!“
जानकारों का कहना है कि “जब तक लंबे समय से एक ही जगह, एक ही शहर और एक ही रेलवे में जमे इन मठाधीशों को दरबदर नहीं किया जाएगा, तब तक रेल का सिस्टम रेलमंत्री और सीआरबी के वश में नहीं आएगा!”
Read: “PURCHASE OF MSDAC: SCAM HAS BEEN FURTHER EXPOSED!“
उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने कुछ ट्रैफिक अधिकारियों (सीएफटीएम) को दरबदर कर एक पहल तो की है, परंतु यह न केवल अपर्याप्त है, बल्कि इसकी शुरुआत ईसीआर के उक्त चारों मठाधीशों को हटाने से होनी चाहिए थी। इसके साथ ही यह सभी विभागों में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन-जिन विभाग प्रमुखों, प्रमुख मुख्य विभाग प्रमुखों (एचओडी/पीएचओडी) और साथ ही वरिष्ठ उपमहाप्रबंधकों (एसडीजीएम) के कार्यकाल दो या दो साल से ऊपर हो चुके हैं, उन सभी को नॉन-सेंसिटिव पोस्टों पर भेजा जाए और जो लोग साइड लाइन में पड़े हैं, उन्हें प्रमुख पदों पर काम करने का अवसर दिया जाए।
उनके अनुसार ट्रैफिक के सभी एचओडी/पीएचओडी (एसएजी/एचएजी) को कमर्शियल में और कमर्शियल के ऐसे अधिकारियों को ट्रैफिक में लगाया जाए। इसी प्रकार तकनीकी विभागों के अधिकारियों को भी ओपन लाइन से कंस्ट्रक्शन में और कंस्ट्रक्शन वालों को ओपन लाइन में लाया जाए। स्थानीय स्तर पर किए गए ऐसे फेरबदल का न तो कोई विरोध कर सकेगा, न ही इसका कोई वित्तीय प्रभार रेलवे के खजाने पर पड़ेगा। इस व्यवस्था का न केवल स्वागत होगा, बल्कि इससे भ्रष्टाचार पर पर्याप्त अंकुश लगेगा, सबको प्रमुख पदों पर काम करने का समान अवसर मिलेगा, और साथ ही मठाधीशों की मठाधीशी भी टूटेगी।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
#ECR #HOD #PHOD #Mathadhish #AshwiniVaishnaw #CRB #CEO #RailwayBoard #IndianRailways