ईसीआर का सबक-1: जो सबको स्पष्ट दिखता है, केवल उनको नहीं, जिनको वास्तव में दिखना चाहिए!

यह ऐसी घूसखोरी का मामला है, जिसमें असली पापी कंबल ओढ़कर घी पीने वाले पीएचओडी और परिचालन निदेशालय, रेलवे बोर्ड में बैठे कुछ बड़े अधिकारी भी शामिल हैं!

ईसीआर की चेनलिंक्ड घटना इस बात का उदाहरण है कि घुटे हुए वरिष्ठ और भ्रष्ट माफिया अधिकारी कैसे बाध्य करते हैं अपने जूनियर्स को कि अपने सर्वाइवल के लिए न चाहते हुए भी उन्हें भ्रष्ट बनना पड़ता है, उन्हें उनके भ्रष्ट सीनियर्स और भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा भ्रष्ट बनाया जाता है, जिससे वे उनकी कोटरी में फिट हो सकें!

शीर्ष नेतृत्व को लेकर जितना आक्रोश और बौखलाहट है, वह अचंभित करने वाली है। सारे भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की जड़ अधिकारियों का एक ही जोन में लंबे समय तक बने रहना है, और साथ ही महत्वपूर्ण पदों पर माफिया तंत्र के सदस्य अधिकारियों का 2/3 साल से ज्यादा समय तक बने रहना तथा उनका इंटरजोनल ट्रांसफर न होना इसका प्रमुख कारण है!

चांडाल चौकड़ी के आतंक के पीछे यह प्रचार तंत्र भी है जिसमें वे पूरे आत्मविश्वास के साथ दावे से कहते हैं कि “मंत्री से लेकर सीवीसी, सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स और पुलिस तक में उनके लोग बैठे हैं, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हम पूरे सिस्टम को अपने पैरों के नीचे रखते हैं!

ईसीआर और इसके सभी मंडलों में सभी विभागों में इतना ज्यादा भ्रस्टाचार है कि सीबीआई या ईडी, इसके बनने के बाद यहां के मंडलों और मुख्यालय में लंबे समय तक काम किए भ्रष्ट अधिकारियों के घरों और उनके सभी ठिकानों पर अगर छापा मारें, तो इनके यहां से इतना धन मिलेगा, जो बिहार के बजट से भी ज्यादा होगा!

पूर्व मध्य रेलवे (ईसीआर) के घटनाक्रम का अगर परत-दर-परत उद्भेदन किया जाए, तो इसे किसी ऑफिसर या कैडर विशेष के भ्रष्टाचार का घटनाक्रम मात्र मान लेना एक बहुत बड़ी मूर्खता होगी। यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह मूर्खता जानबूझकर भारतीय रेल का शीर्ष नेतृत्व अपनी सहूलियत के अनुसार लगातार करता आ रहा है। यह घटनाक्रम खत्म हो रही भारतीय रेल की दुनिया के सामने हर एक-दो माह में आने वाली इस तरह की सीबीआई रेड की रूटीन झलक मात्र नहीं है, वरन रेलवे के शीर्ष नेतृत्व की “नीरो वाली मानसिकता” का परिचायक भी है। यह पूरी तरह से असफल और वास्तविक सुधार की इच्छाशक्ति से विहीन नेतृत्व का परिचायक है। यह रेल व्यवस्था के हर स्तर पर पैदा हो चुकी भयंकर सड़ांध और बजबजाती स्थिति का परिचायक है, जो सबको दिखाई दे रही है, लेकिन जिनको वास्तव में दिखना चाहिए, या दिखाई देना चाहिए, केवल उनको ही दिखाई नहीं दे रही है।

पटना के एक वयोवृद्ध पत्रकार कहते हैं, “इसका कारण यह है कि जो लोग इसी बजबजाती व्यवस्था से निकलकर और इसी तरीके से गंदगी में लिथड़े हुए शीर्ष पर पहुंचे हैं, उन्हें यह सब सामान्य लगता है, वे अपने आगे के टार्गेट सेट करने में लगे हैं। देश और रेल का भला कभी उनके टार्गेट में रहा ही नहीं। अगर होता, तो वे समस्या की जड़ में जाकर उसका समाधान खोजते, समाधान करते, और अब तक समाधान कर डालते, जो शीर्षस्थ नेतृत्व के लिए मात्र एक दिन का काम है। यहां जो लपेटे में आ गया, वह चोर है, वरना सब साहूकार हैं, क्योंकि ये जो साहूकार बने हुए हैं न, उनके ऊपर सरपरस्ती शीर्ष नेतृत्व की ही है।”

उनका यह भी कहना है कि जब शीर्ष नेतृत्व अपने लक्ष्य और रुचि के अनुसार सही जगह पर सही लोगों नहीं बैठाएगा, तो फिर ये अधिकारी माफिया बन जाते हैं, और सभी जगहों पर अपने आदमी बैठा देते हैं। तब यह स्वाभाविक सी बात है कि जो किसी की पोस्टिंग महत्वपूर्ण जगह पर करेगा, तो उस अधिकारी की निष्ठा और समर्पण उस अधिकारी या व्यक्ति के प्रति होगा, जिसने उसे पोस्ट किया है, जिसने उसके मन-मुताबिक उसे पद दिया है, न कि मंत्री या शीर्ष नेतृत्व के प्रति!

माफिया अधिकारियों का एक तबका, जिसकी पहुँच शीर्ष तक होती है, वह बड़ी आसानी से शीर्ष नेतृत्व को यह कहकर कन्विंस कर लेता है कि “आप अपने लेवल से ट्रांसफर पोस्टिंग में इनवाल्व होंगे, तो भानुमति का पिटारा खुल जाएगा और आपकी बदनामी हो जाएगी।” इस छलावे में कोई सीजन्ड पॉलिटीशियन तो नहीं आता है, लेकिन नई पौध के नेता, घुटे हुए माफिया अधिकारियों के इस ट्रैप में जल्दी फंस जाते हैं, फिर वह ब्यूरोक्रैट से बने नेता ही क्यों न हों, और तब परिणाम यह होता है कि हर स्तर पर भ्रष्ट, निकम्मे, अकर्मण्य जीएम्स और माफिया पीएचओडीज का नंगा नाच बदस्तूर चलता रहता है।

ईसीआर में घटी घटना के मूल में भी पीएचओडीज के इसी नंगे नाच का ही सर्वाधिक योगदान है, जिसमें जातीयता, पक्षपात, फेवर, भ्रष्टाचार, उत्पीड़न और प्रताड़ना इत्यादि सब अपने चरम पर हैं। और ये लोग इतना ज्यादा गहराई से एक दूसरे से जुड़े हैं, इतना ज्यादा संगठित हैं, कि हर गंदगी के पीछे यहां जातीयता, पैसा, पक्षपात, फेवर और उत्पीड़न की ही कहानी नजर आएगी।

धनबाद मंडल और हाजीपुर में कुछ लोग इस घटनाक्रम को धनबाद के अतीत से जोड़ते हैं, तो कुछ का कहना है कि ये तो ऐसी घूसखोरी का मामला है, जिसमें असली पापी कंबल ओढ़कर घी पीने वाले पीएचओडी और परिचालन निदेशालय, रेलवे बोर्ड में बैठे कुछ बड़े अधिकारी भी शामिल हैं।

ईसीआर की यह चेनलिंक्ड घटना इस बात का उदाहरण भी है कि घुटे हुए वरिष्ठ और भ्रष्ट माफिया अधिकारी कैसे बाध्य कर देते हैं अपने जूनियर्स को कि मजबूरी में अथवा अपने सर्वाइवल के लिए न चाहते हुए भी वे गलत राह पर चल पड़ते हैं। वह बेसिकली भ्रष्ट होते नहीं हैं, उन्हें उनके भ्रष्ट सीनियर्स द्वारा और भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा भ्रष्ट बनाया जाता है। सीनियर डीओएम/सोनपुर सचिन मिश्रा के प्रति इसी कारण से केवल ट्रैफिक के ही नहीं, बल्कि सभी अधिकारियों में सहानुभूति है, क्योंकि अब यह सर्वज्ञात तथ्य है कि वह नियम विरुद्ध वैसा कुछ करना नहीं चाहते थे, मगर उसके धूर्त सीनियर अर्थात विभाग प्रमुख द्वारा वैसा करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया।

इसी तरह के एक मामले में जब तत्कालीन सीनियर डीओएम/मुगलसराय ने पीसीओएम को लिखित में आदेश देने को कहा, तो उस पर उनकी नाराजगी का कहर टूटा और उसे सीनियर डीओएम के पद से दो साल के अंदर ही हटा दिया गया (स्मरण रहे कि यही काम कई डिवीजनों में भी हुआ है)। जबकि उक्त मामले से संबंधित फाइल पर आज तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका। वह फाइल आठ-दस महीने से हाजीपुर मुख्यालय में आज भी पड़ी है।

वर्तमान सीनियर डीसीएम/धनबाद की पदस्थापना में भी दूसरे ‘कंसिडरेशन’ के आधार पर पोस्टिंग करने की चर्चा यहां जोरों पर है। ईसीआर में यह चर्चा का विषय है कि सीनियर डीओएम/सोनपुर, सचिन मिश्रा, जिनकी पदस्थापना को अभी मात्र दो माह ही हुए थे, ने इसका प्रोटेस्ट किया था और बाद में दबाब के कारण मौखिक आदेश को ही मान लिया, जो आमतौर पर ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट की कार्यशैली है, जिस पर अगली कड़ी में विस्तार से प्रकाश डाला जाएगा।

यहां किसी को क्लीन चिट देने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है, तथापि कहने को तो बहुत आसानी से यह कहा जा सकता है कि तब भी सीनियर डीओएम/सोनपुर सचिन मिश्रा को भ्रष्ट होने की क्या बाध्यता थी? लेकिन जब सिस्टम तुला हो आपको अपने रंग में रंगने को, और ऊपर कोई सुनने वाला न हो, और न ही कोई ऐसा सिस्टम बना हो, जिसमें बिना किसी की चिरौरी-विनती किए आपको ब्रांच ऑफिसर बना दिया जाए, या आपको महत्वपूर्ण पद पर बिना किसी पैरवी के काम करने का मौका मिल जाए, तब तो यह कहना उचित है, लेकिन जब आपसे कई साल जूनियर भी ब्रांच ऑफिसर बनाए जा रहे हो, बना दिए गए हों, और आप हासिये पर रखे गए हों, वह भी तब तक जब तक आपको खुद के होने पर शर्म नहीं आने लगे, तब न चाहते हुए भी इन ‘कलियुग के देवताओं’ से और उनके नियमों से आपको समझौता करना ही पड़ता है।

स्थाई और ईमानदार समाधान की इच्छा रखने वाला नेतृत्व इसमें इलाज ‘कलियुगी देवताओं’ का करेगा, न कि उनके शिकार का! अगर सीबीआई को इस मामले की तह में जाना है, और भ्रष्टाचार पर सचमुच प्रभावी कार्यवाही करनी है, तो वह भारतीय रेल के सभी डिवीजनों, सभी जोनों, और रेलवे बोर्ड ट्रैफिक डायरेक्टरेट की कुंडली खंगाले, और जो लोग वहां पहले काम कर चुके हैं, उनसे भी पूछताछ करे! यह काम केवल ईसीआर में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक डिवीजन, प्रत्येक जोन से लेकर रेलवे बोर्ड तक हो रहा है, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में नीचे डिवीजनों से सीनियर डीओएम, उनके ऊपर जोनल मुख्यालयों में बैठे पीसीओएम और सीएफटीएम, तथा उनके भी ऊपर बैठे रेलवे बोर्ड के ईडी और मेंबर तक सब शामिल हैं।

लेकिन इस पर भी ईसीआर कंस्ट्रक्शन के एक बड़े कांट्रेक्टर का यह कहना है कि “साहब, ये ट्रैफिक वाले बेसिकली घूस तो लेते हैं, यह सही बात है, लेकिन रेलवे के पैसे के साथ अमानत में खयानत तो नहीं करते। व्यापारी रेलवे को भाड़ा तो देता है, और ऊपर से इन्हें खुश करता है, लेकिन ईसीआर में एक ही जाति विशेष के चार पीएचओडी की ऐसी चांडाल चौकड़ी बनी हुई है, जिनके सामने यहां का पूरा तंत्र भी असहाय है। उसका कहना है कि बाकी विभागों में तो सीधे अमानत में खयानत हो रही है। जाति देखकर ऑफिसर की पोस्टिंग होती है और जाति देखकर ही ठेकेदार को टेंडर मिलता है।”

उसका स्पष्ट कहना है कि ये सभी अधिकारी अधिकांश समय इधर ही बिताए हैं, नौकरी कम संपत्ति ज्यादा बनाए हैं। सबसे महत्वपूर्ण विभाग, जो वित्त से संबंधित है, उसमें उसके ‘राजा साहब’ अपने विभाग के सबसे कमाऊ पदों पर, जैसे स्टोर, टेंडर, कंस्ट्रक्शन से लेकर दानापुर मंडल जैसे सभी महत्वपूर्ण पदों पर अपनी ही जाति-बिरादरी के लोगों को पदस्थापित किया है। कांट्रेक्टर ने यह भी बताया, “साहब, यह तो कुछ भी नहीं, बाकी जगह से अपनी जाति के लोगों को ओपन इन्विटेशन दिया हुआ है कि “ईसीआर में आ जाओ और इस महत्वपूर्ण मंडल में पदस्थापित हो जाओ!”

उसने बताया कि जब तक अपनी जाति के लोग नहीं मिल रहे हैं, तब तक बड़ी बुद्धिमत्ता, अर्थात चालाकी से अपने चापलूस लोगों की पोस्टिंग को जस्टिफाई करते हुए दूसरी अन्य पोस्टिंग की जा रही हैं कि “अगर कोई उंगली उठे तो कहा जा सके कि मैंने सबको एक जैसा ही ट्रीट किया है।” लेकिन जो भी पोस्टिंग महत्वपूर्ण जगहों पर की गई है, उसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि वे पूरे सेवा भाव वाले लोग ही हों, जिससे अगर राजा साहब का कोई कुता भी वहां जाए, तो उनका बीओ (ब्रांच ऑफिसर) उनके कुत्ते को भी उतना ही सम्मान दे, जितना खुद राजा साहब को मिल सकता है।

इन राजा साहब के बारे में बिहार के एक प्रतिष्ठित बड़े राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार पूर्व मध्य रेलवे को लेकर बिहार के राजनीतिक हल्कों में चर्चा के आधार पर कहते हैं कि “ये राजा साहब दो साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और अगर इनको और इनकी चांडाल चौकड़ी के लोगों को ईसीआर से हटाकर दक्षिण की तरफ किसी अन्य जोनल रेलवे में नहीं भेजा गया, तो ईसीआर से लेकर अन्य जोनल रेलों और रेलवे बोर्ड में हो रहे पापों के छींटे पवन बंसल के कलंकित कार्यकाल को जल्दी ही दोहरा सकते हैं।”

एक अन्य कांट्रेक्टर का कहना है कि ईसीआर में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अधिकारियों के स्थानीय होने का ही परिणाम है कि “यहां के अधिकारी वह काम कर रहें हैं जो शायद ही रेलवे के अलावा दूसरे किसी विभाग के अधिकारी कर पाएं। चांडाल चौकड़ी के आतंक के पीछे उनका एक बड़ा प्रचार तंत्र (भौकाल) भी है, जिसके अनुसार वे पूरे आत्मविश्वास के साथ दावे से कहते हैं कि “मंत्री से लेकर सीवीसी, सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स और पुलिस तक में हमारे लोग बैठे हैं, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हम पूरे सिस्टम को अपने पैरों के नीचे रखते हैं।”

कांट्रेक्टर बताते हैं कि अगर ऐसा न होता, तो पूरी भारतीय रेल में कई-कई सालों में जितने एसएलटी (सिंगल लिमिटेड टेंडर) से सिविल इंजीनियरिंग में काम अवार्ड होते हैं, उससे कई गुना ज्यादा इसी चांडाल चौकड़ी के एक सीएओ ने अपने अब तक के कार्यकाल में लगभग 200 करोड़ के एसएलटी सिविल इंजीनियरिंग में कर डाले हैं। और यह सारे एसएलटी इस चांडाल चौकड़ी के पसंदीदा जाति बिरादरी के लोगों को ही दिए गए हैं। इसमें सीबीआई कहां है? विजिलेंस कहां है? रेलमंत्री कहां हैं? और सीआरबी कहां हैं?

एक मुखर यूनियन नेता का कहना है कि “ईसीआर में प्रायः सभी विभागों में वर्षों-वर्षों से तमाम अधिकारी जमे हुए हैं। इनमें से कुछ अपनी आवश्यकता के अनुसार कुछ समय के लिए बाहर चले जाते हैं, लेकिन लौटकर फिर यहीं आ जाते हैं। ज्यादा समय तक यहां रहने से इनकी जड़ें काफी गहरी हो गई हैं, और फिर इन्होंने यहां एक बड़ा माफिया तंत्र विकसित कर लिया है। सभी विभागों में सभी स्तर के लंबे समय से जमे लोगों को जब तक उखाड़कर फेंका नहीं जाएगा, तब तक सब ऐसे ही चलता रहेगा।”

यूनियन नेता का यह भी कहना है कि “ईसीआर और इसके सभी मंडलों में सभी विभागों में इतना ज्यादा भ्रष्टाचार है कि सीबीआई या ईडी, ईसीआर के बनने के बाद यहां के मंडलों और मुख्यालय में लंबे समय तक काम किए भ्रष्ट अधिकारियों के घरों और उनके सभी ठिकानों पर अगर छापा मारे, तो इनके यहां इतना धन मिलेगा जो बिहार के बजट से भी ज्यादा होगा।”

ईसीआर मुख्यालय हाजीपुर से रिटायर हुए एक ग्रुप ‘बी’ परिचालन अधिकारी का कहना है कि “जिस कारण से सीबीआई ने तीन अधिकारियों के ऊपर छापा मारा है, उसी आधार पर पूरे देश में भारतीय रेल के सभी सीनियर डीओएम, सीएफटीएम और पीसीओएम के यहां छापा पड़ना चाहिए, तथा बोर्ड में ईडी से लेकर मेंबर के यहां भी पड़ना चाहिए, क्योंकि हर डिवीजन और जोन की यही कहानी है। अगर बाकी जोन में भी ऐसा ही हो रहा है, तो ईसीआर के उदाहरण से दूसरे डिवीजनों के सीनियर डीओएम, सीएफटीएम, पीसीओएम, ईडी और मेंबर की आमदनी का आकलन किया जा सकता है।”

जानकारों का कहना है कि ट्रैफिक में जितने भी लोग सीएफटीएम और पीसीओएम हैं, लगभग यह सभी एक लंबी ‘माफिया चेन’ के सदस्य होते हैं, जो व्यापारियों और सीनियर अधिकारियों के गठजोड़ से बनती है। जो इस माफिया क्लब का सदस्य नहीं होगा, या किसी मजबूत पॉलिटिकल बैकिंग वाला नहीं होगा, वह न तो किसी महत्वपूर्ण जोन का पीसीओएम बन सकता है, न ही सीएफटीएम, और न ही वह बिलासपुर, खुर्दा रोड, धनबाद, चक्रधरपुर, नागपुर इत्यादि जैसे किसी महत्वपूर्ण कमाऊ डिवीजन का सीनियर डीओएम, सीनियर डीसीएम बन सकता है, और न ही रेलवे बोर्ड में ट्रैफिक डायरेक्टरेट की कुछ अति महत्वपूर्ण ईडी की पोस्ट्स पर पदस्थ हो सकता है। भले ही वह लाख गुना योग्य और ईमानदार हो!

मजे की बात यह है कि ये सभी भ्रष्ट अधिकारी एक दूसरे को खूब प्रमोट करते रहते हैं। इसमें जो जितना भ्रष्ट होगा, वह अपने माफिया रिंग के दूसरे महाभ्रष्टतम अधिकारी की ईमानदारी और विलक्षण प्रतिभाओं/कार्यों की बहुविधि स्तुति करता मिलेगा, और यही काम उस माफिया रिंग का व्यापारी भी करता है। ये इतने शातिर होते हैं कि अपनी माफिया रिंग से बाहर के ईमानदार से ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों के लिए एकदम नकारा होने का नैरेटिव सेट कर देते हैं। इस प्रकार भविष्य के किसी भी भावी खतरे से पूरी तरह चिंता मुक्त हो जाते हैं। यही कारण है कि आज की तारीख में ईसीआर के सभी विभागों में जितने भी अच्छे अधिकारी हैं, वे बेहद उत्पीड़ित हैं, और हासिये पर हैं, साथ ही डरे-सहमे और भयभीत भी हैं।

ईसीआर के कई अधिकारियों, कर्मचारियों और  रेलवे पर पकड़ रखने वाले कुछ पत्रकारों से बात करने पर अधिकांश पूरी तरह से रेलमंत्री को इसके लिए दोष देते नजर आए। इसके अलावा शीर्ष नेतृत्व को लेकर जितना आक्रोश और बौखलाहट नजर आई, वह अचंभित करने वाली है। सबका एक स्वर में यह मानना है कि सारे भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की जड़ अधिकारियों और कर्मचारियों का एक ही जोन में लंबे समय तक बने रहना है, और साथ ही महत्वपूर्ण पदों पर माफिया तंत्र के सदस्य अधिकारियों का 2/3 साल से ज्यादा समय तक बने रहना तथा उनका इंटरजोनल ट्रांसफर न होना इसका प्रमुख कारण है।

उनका भी यही मानना है कि किसी भी अधिकारी को मंडल में न्यूनतम 3 साल और जोनल मुख्यालय में 2 साल से ज्यादा एक पद पर रहने देना ही नहीं चाहिए और हर एक महत्वपूर्ण पोस्ट के बाद नॉन-सेंसेटिव पोस्ट पर पदस्थापना होनी चाहिए। ये भी व्यवस्था ऐसी हो कि कंप्युटर से ही डिसाइड हो जाए जिससे पारदर्शिता (ट्रांसपरेंसी) भी बनी रहेगी और माफिया रिंग का इनमें प्रभाव भी कम हो जाएगा। उन्होंने कहा कि 10 साल से ज्यादा एक शहर में जिसको हो चुका है, उसका बिना अपवाद के ट्रांसफर होना चाहिए और अगर कोई अपवाद में विशिष्ट कारण से रोका भी जा रहा है, तो उसकी पोस्टिंग नॉन-सेंसेटिव पोस्ट पर ही होनी चाहिए।

पीरियोडिकल ट्रांसफर और एक सेंसेटिव पोस्ट के बाद दूसरी पोस्टिंग नॉन-सेंसेटिव पोस्ट की नीति अगर नहीं अपनाई जाएगी, तो रेल में कभी कुछ भी नहीं सुधरेगा, और सबको बराबर का मौका नहीं मिलेगा सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का और अपनी क्षमता-योग्यता साबित करने का, क्योंकि हर विभाग में प्रायः सभी ग्रेड में दो या तीन पोस्ट ही महत्वपूर्ण होती हैं और माफिया रिंग के शातिर अधिकारी ऊपर वालों के प्रोटक्शन से इन 2/3 पोस्टों की आपस में ही अदला-बदली कर पूरा समय काट लेते हैं, अधिकांश को मौका ही नहीं मिलता है उन पर काम करने का, जो असंतोष का बहुत बड़ा और प्रमुख कारण बनता है, जो कि संस्था को भ्रष्ट भी बनाता है और दुर्बल भी!

ईसीआर की कहानी तो केवल एक बानगी भर है, हकीकत तो यह है कि पूरी भारतीय रेल की यही कहानी है। यहां उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) में भ्रष्टाचार का संगम बह रहा है, तो उत्तर रेलवे (एनआर) और दिल्ली मंडल ‘करप्शन कैपिटल’ बन चुका है। पश्चिम रेलवे (डब्ल्यूआर) और सेंट्रल रेलवे (सीआर) मुंबई के अधिकारी देश की आर्थिक राजधानी से इतने प्रभावित हैं कि यहां के माफिया तंत्र की अवैध कमाई बीएमसी के बजट पर भी भारी पड़ जाए। यहां भी अधिकारी जन्म से लेकर मरण तक टिके हुए हैं, और यही हाल ईस्ट कोस्ट रेलवे (ईकोआर) पूर्व रेलवे (ईआर) दक्षिण पूर्व रेलवे (एसईआर), दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (एसईसीआर), दक्षिण रेलवे (एसआर), दक्षिण मध्य रेलवे (एससीआर) और उत्तर पश्चिम रेलवे (एनडब्ल्यूआर) इत्यादि जोनल रेलों का भी है। भारतीय रेल के अधिकारियों को जलकुम्भी बनकर रेलवे को ठिकाने लगाने का काम रेलवे के शीर्षस्थ नेतृत्व की ही देन है।

अभी बहुत होगा तो प्रतीकात्मक संदेश, जिस पर पूरा देश आजकल चलाया जा रहा है, के तौर पर ईसीआर से थोक में ट्रैफिक के अफसरों का ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जो फिर कुछ माह बाद चढ़ावा चढ़ाकर वहीं आ जाएंगे और उसी अपने मनचाही पोस्ट पर। लेकिन अगर रेलमंत्री सचमुच भ्रष्टाचार को और रेल को लेकर गंभीर हैं, और रेल तंत्र को सुधारने के प्रति उनमें अगर थोड़ी सी भी इच्छाशक्ति है, तो ईसीआर में सबसे पहले बिना किसी अपवाद के दो साल पूरा कर चुके पीएचओडीज को फौरन हटाएं, और फिर जिनके 10 साल पटना में पूरे हो चुके हैं, अथवा एक ही मंडल में कुल 5/6 साल, उन्हें भी तुरंत हटाएं और महत्वपूर्ण पदों से हटाए गए इन दुष्ट लोगों को अगले तीन साल तक नॉन-सेंसिटिव पोस्ट पर ही पदस्थापित करें, वह भी ईसीआर से बाहर अन्य जगहों पर!

इसके साथ ही पूरी भारतीय रेल में संवेदनशील (सेंसिटिव) और असंवेदनशील (नॉन सेंसिटिव) पदों पर पोस्टिंग की अल्टरनेट साइकल हर हाल में सुनिश्चित होनी चाहिए। यही प्रक्रिया बाकी जोनों में भी तत्काल प्रभाव से लागू की जानी चाहिए। यही वह सबसे महत्वपूर्ण कदम था, जो रेल सुधार के लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित होता, और जो किसी ईमानदार, कर्मठ शीर्ष नेतृत्व के लिए सबसे आसान काम भी था, जिसके लिए केवल एक ही चीज की आवश्यकता है, और वह है ईमानदार इच्छाशक्ति!

अगर शीर्ष नेतृत्व के पास यह ईमानदार इच्छाशक्ति है, तो यह कवायद मुश्किल से एक माह की है, अन्यथा अगर रेल का कोई विभाग या अधिकारी, भ्रष्टाचार के आरोप में घिरता है, तो वस्तुतः मुख्य दोष शीर्ष नेतृत्व का ही है। यह उसके ईमानदार प्रयास और ईमानदार मंशा के अभाव का ही द्योतक है, और यह एक तरह का जघन्य अपराध भी है, जहां शीर्ष नेतृत्व की असफलता के कारण उसके कार्य और ईमानदार लोगों के बीच उसकी अदृश्यता हर दिन कोई न कोई नई नस्ल की नई पौध भ्रष्टाचार की बजबजाती देह व्यापार की गली में उसकी निष्ठा, योग्यता और व्यवस्था में विश्वास का चोला उतारकर, शीर्ष नेतृत्व की पालित पोषित चांडाल चौकड़ी द्वारा नंगा कर फेंक दी जाती है। क्रमशः

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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