डीआरएच/कल्याण के सीएमएस/एसीएमएस की मनमानी और लापरवाही पर कौन कसेगा नकेल?

प्रशासनिक पद से रिटायर होने वाले डॉक्टरों को उसी अस्पताल में क्लीनिकल सर्विस के लिए नियुक्त नहीं किया जाए!

डॉक्टरों पर भी अन्य रेल अधिकारियों की ही तरह आवधिक स्थानांतरण का नियम सख्ती से लागू किया जाना चाहिए!

डिवीजनल रेलवे हॉस्पिटल (डीआरएच) कल्याण की व्यवस्था मध्य रेल प्रशासन की काफी कोशिशों के बाद भी सुधर नहीं रही है। कुछ तो प्रशासनिक अनदेखी है, तो कुछ यहां के सीएमएस का निहित और स्वार्थपूर्ण षड्यंत्र है, जिसके कारण यहां कोई फिजिशियन टिकने नहीं पाता है।

ज्ञातव्य है कि डीआरएच कल्याण में कुछ दिन पहले एक नए फिजिशियन की नियुक्ति होने के बावजूद न तो उसके चेंबर के सामने ओपीडी में ‘फिजीशियन’ का बोर्ड लगाया गया है, और न ही फार्मासिस्ट को इससे संबंधित कोई निर्देश दिए गए हैं कि पेशेंट्स को दोनों फिजिशियनों के पास किस तरह बांटकर भेजा जाए।

उक्त प्रशासनिक व्यवस्था देखने के लिए एसीएमएस के पास समय नहीं है, क्योंकि उन्हें अपने प्रपंचों से ही फुर्सत नहीं है, जबकि उनकी अस्पताल के हर उस कोने पर नजर रहती है जहां उनकी जरूरत नहीं होती, लेकिन अस्पताल में एक फिजिशियन के चेंबर के बाहर पेशेंट क्यों नहीं हैं? उस चेंबर के बाहर फिजिशियन का बोर्ड क्यों नहीं लगा है? एक ही फिजिशियन के पास मरीजों की इतनी भीड़ क्यों है? यह सब उनको इसीलिए नहीं दिखाई देता है, क्योंकि उन्हें बकवास करने से ही समय नहीं मिलता!

फिजिशियन के चेंबर के सामने सुबह 9:00 बजे से पेशेंट बैठे रहते हैं। वार्ड राउंड में ही उसका एक-डेढ़ बज जाता है। सीएमएस और एसीएमएस को इस बात की भी परेशानी है कि राउंड में फिजिशियन इंडोर पेशेंट को बारीकी से या अच्छी तरह से क्यों देखती है? केवल सरसरी तौर पर एक नजर देखकर आगे बढ़ जाए, बस वार्ड राउंड हो गया। इस पर रेलकर्मियों का कहना है कि मरीजों के साथ जैसा दुष्टतापूर्ण और अमानवीय व्यवहार वह खुद करते हैं, वैसी ही अपेक्षा दूसरे डॉक्टरों से भी करते हैं।

उनका कहना है कि वहीं दूसरे चेंबर में दूसरा फिजिशियन खाली बैठा रहता है। पूरे दिन बीमार आदमी केवल अस्पताल में ही खड़ा रहेगा, धक्के खाता रहेगा, तो यह उसको और बीमार करने तथा मौत के कगार पर ढ़केलने का ही एक तरीका है, इस पर सीएमएस और एसीएमएस दोनों का कोई ध्यान नहीं है, क्योंकि दोनों अपने-अपने हितों के लिए शुतुरमुर्ग बने हुए हैं।

रेलकर्मियों का स्पष्ट आरोप है कि अगले कुछ दिनों में प्रशासनिक पद से रिटायर हो रहे वर्तमान सीएमएस अपनी भावी रणनीति के तहत क्लीनिकल सर्विस के नाम पर अगले तीन साल फिर यहीं खूंटा गाड़कर बैठने के चक्कर में पिछले कई वर्षों से किसी भी फिजिशियन को डीआरएच कल्याण में टिकने ही नहीं दे रहे हैं।

पीड़ित रेलकर्मियों का यह भी कहना है कि मरीजों के साथ-साथ वास्तव में डीआरएच कल्याण के वर्तमान सीएमएस के कुटिल दिमाग के इलाज की भी सख्त आवश्यकता है। इसके अलावा उनकी यह भी मांग है कि कुछ भी हो, क्लीनिकल सर्विस के लिए वर्तमान सीएमएस को डीआरएच कल्याण में कतई नहीं रखा जाना चाहिए, वरना यह अगले तीन साल में न कोई काम करेंगे, न ही दूसरों को करने देंगे, बल्कि यहां के सैकड़ों रेलकर्मियों को अपनी ही तरह विक्षिप्त बनाकर अस्पताल को नर्क बना देंगे।

क्लीनिकल सर्विस हेतु अन्यत्र हो नियुक्ति

रेल प्रशासन द्वारा सर्वप्रथम यह प्रावधान किया जाए कि “प्रशासनिक पद से रिटायर होने वाले डॉक्टरों – सीएमएस, एमडी आदि – को उसी अस्पताल में क्लीनिकल सर्विस के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा।‌” इसके साथ ही रेलवे के डॉक्टरों पर भी अन्य रेल अधिकारियों/कर्मचारियों की ही तरह आवधिक स्थानांतरण का नियम भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। तभी रेलवे की स्वास्थ्य सेवा में समुचित सुधार संभव हो सकता है।

65 साल की मेडिकल सर्विस पर हो पुनर्विचार

भारत सरकार, पीएमओ, रेलमंत्री और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) को सरकारी और खासतौर पर रेलवे डॉक्टरों की 65 साल की सर्विस पर अविलंब पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि क्लीनिकल सर्विस के नाम पर यह लोग मरीजों को तो देखते नहीं हैं, सीनियर होने के नाते मरीज देखने के लिए इन्हीं के मातहत रह चुका इनका जूनियर इनसे कुछ कह भी नहीं पाता है, जबकि ये तीन साल हर महीने बिना कोई काम किए साढ़े तीन से चार लाख के वेतन सहित सारी सरकारी सुविधाओं का उपभोग करके रेल राजस्व को भारी चूना लगा रहे हैं।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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