बंगला प्यून उर्फ रेल अफसरों की अय्याशी!

रेल अफसरों के पतन का पाताल गहराता जा रहा है! -प्रेमपाल शर्मा

“रेल के सीनियर सुपरवाइजरों से लेकर ऊपर तक प्रत्येक कार्मिक की संपत्ति की अगर सही तरीके से असेसमेंट की जाए, तो इनमें से 50% से ज्यादा अधिकारियों और सीनियर सुपरवाइजरों की संपत्ति उनकी आय से कई गुना अधिक पाई जाएगी!”

रविवार, 5 जून 2022 को इटारसी लोको शेड के सीनियर डीएमई अजय कुमार ताम्रकार को ₹50 हजार की रिश्वत लेते हुए सीबीआई ने रंगेहाथ ट्रैप किया। सीनियर डीएमई ताम्रकार यह रिश्वत अपने बंगला प्यून को दुबारा नौकरी पर रखने के लिए ले रहे थे। कुल सौदा ₹3.50 लाख में तय हुआ था। इसकी पहली किस्त ₹50 हजार लेते हुए वह धरे गए। बंगला प्यून ने ही उनके विरुद्ध सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी।

इस खबर को देखने के बाद रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) में कार्यकारी निदेशक रहे प्रेमपाल शर्मा ने रेल अफसरों की इस नीचतापूर्ण हरकत पर अपना माथा पीट लिया।

लंबे समय से शिक्षा, संस्कृति और भाषा इत्यादि विभिन्न विषयों पर बेबाक लेखन करने वाले प्रेमपाल शर्मा जी कहते हैं, “कम से कम पिछले दिनों बंगला प्यून खत्म करने का निर्णय तो वास्तव में देश हित में साबित हो रहा है।” उनका कहना है कि, किसी समय जब अंग्रेजों ने इस देश के पहाड़ों को चीरकर और नदियों पर पुल बांधकर रेल बिछाई, बीहड़ों जंगलों से रेल गुजारी, उस समय घर की रखवाली के लिए, बंगले पर रहने के लिए एक आदमी की आवश्यकता थी।

वह आगे कहते हैं,“फिर देश आजाद हुआ और इसको आजाद हुए भी 73 साल हो गए। फील्ड में काम करने वाले को बंगला प्यून वाजिब है। निर्माण कार्य दुर्गम जगहों पर होता है। वाजिब मान सकते हो। लेकिन रेल भवन में बैठकर अय्याशी करने वालों को क्यों? रेलवे स्टाफ कॉलेज (नायर), सारे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट्स में, महानगरों में पूरी उम्र/सर्विस काटने वालों को क्यों चाहिए बंगला प्यून?”

उनका स्पष्ट मानना है कि “इस बंगला प्यून संस्कृति ने अफसरों की तो आदत खराब की ही, उनके पत्नी बच्चों और परिवार को भी बिगाड़ दिया। परजीवी भी बना दिया।”

वह कहते हैं कि “इन सभी अफसरों ने तो संविधान पढ़ा है। लोकतंत्र की सारी बारीकियां जानते हैं, तो यह भी जानते होंगे कि समानता का स्वर संविधान में बार-बार उठाया गया है। इतनी सुविधाओं के बावजूद भी यह कैसे भूल गए!”

उन्होंने बताया कि “खुद मेरे अनुभव में मेरे पास लगातार ऐसी शिकायतें आती रही थीं और विश्वास नहीं होता था। गरीब को नौकरी पर रखने के लिए यह इतने नीचे गिर जाएंगे! लेकिन इनके लिए तो पतन का पाताल भी लगातार गहरा होता जा रहा है। जब बंगला प्यून बंद हो गए, तब भी ऐसी गिरी हुई हरकत?”

उन्होंने कहा कि जब तक ऐसे दिमाग नहीं बदलेंगे, यह युवराज और शहंशाह की कुर्सी का नशा नहीं उतरेगा, तब तक भारतीय रेल ठीक नहीं हो सकती। हर इमानदार मेहनती अफसर को तो बंगला प्यून खत्म करने पर खुशी मनानी चाहिए! उन्होंने उपरोक्त प्रकार के मामलों पर सरकार, सीबीआई और रेलमंत्री को धन्यवाद भी दिया!

हालांकि कुछ फ्रंट लाइन अधिकारियों के लिए बंगला प्यून को जायज ठहराया जा सकता है। जैसा कि प्रेमपाल शर्मा जी ने भी माना है। मगर वहीं उन्होंने यह प्रश्न भी उठाए हैं कि रेलवे बोर्ड के अफसरों, नायर/रेलवे इंस्टीट्यूट्स के प्रोफेसरों और एकाउंट्स अफसरों को यह बंगला प्यून क्यों चाहिए? और क्यों दिए गए? किसने दिया? इसका जस्टिफिकेशन क्या है? उनके इन प्रश्नों का उत्तर कोई देने को तैयार नहीं है। अतः इनका सही उत्तर अब रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को ही खोजना/पूछना पड़ेगा और इस लूट का सही इलाज ढ़ूंढ़कर ‘करेक्शन’ करना होगा।

बंगला प्यून की नियुक्ति में शुरू से भ्रष्टाचार हावी रहा है। इसके अलावा इसमें शोषण भी सातवें आसमान की ऊंचाई तक रहा है। सीधी भर्ती के अफसर रहे हों, या विभागीय पदोन्नति से ग्रुप ‘बी’ में आए रेल कर्मचारी, कुछ अपवादों को छोड़कर, हालांकि इस भ्रष्टाचार में कोई किसी से कम नहीं रहा, तथापि इसमें विभागीय अधिकारियों का औसत ज्यादा है। और इस सुविधा की बदनामी का सबसे बड़ा कारण भी यही बताया गया है। “रेल समाचार” को ऐसे सैकड़ों बंगला प्यून की जानकारी है, जिनका शोषण निर्धारित से काफी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद आज भी लगातार जारी है, क्योंकि उन्हें छोड़ने को संबंधित अधिकारी तैयार नहीं हैं।

आश्चर्य इस बात का है कि पिछले दो दिनों में चार वरिष्ठ रेल अधिकारी – जीएम/प्रोजेक्ट, सीनियर डीजीएम/प्रोजेक्ट, राइट्स/रांची, डिप्टी सीएमएम/उत्तर रेलवे, लखनऊ, और सीनियर डीएमई/लोको शेड, इटारसी – रिश्वतखोरी के लिए सीबीआई के हत्थे चढ़े हैं। इसके पहले भी पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे इत्यादि में कार्यरत कई वरिष्ठ रेल अधिकारी रिश्वत लेते हुए सीबीआई की गिरफ्त में आ चुके हैं। इसके साथ ही उनके आवासों से लाखों-करोड़ों की नकदी भी बरामद हुई है। इसके बावजूद रेल अधिकारियों में कोई चेतना आई है, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है।

रेल अधिकारियों/कर्मचारियों की यह मूर्छितावस्था तब है जब रेलमंत्री ने पदभार संभालने के कुछ ही समय बाद रिश्वतखोर रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की धरपकड़ करने की सीबीआई को खुली छूट दी थी। यह खबर “रेलसमाचार” और “रेलव्हिस्पर्स” दोनों ने अपने सूत्रों के हवाले से प्रकाशित भी की थी। इसके अलावा यह भी देखा जा रहा है कि रेलमंत्री, सीआरबी और रेल प्रशासन आजकल बहुत सख्त हैं। इसके बाद भी रेल में रिश्वतखोरी कम होने के बजाय बढ़ती हुई दिखाई देती है।

पूर्वोत्तर रेलवे से सेवानिवृत्त हुए एक सीनियर सुपरवाइजर कहते हैं, “रेल में रिश्वतखोरी का अंदाजा शायद सरकार को भी नहीं है। तब रेलमंत्री को कैसे होगा!” वह कहते हैं कि “रेल के सीनियर सुपरवाइजरों से लेकर ऊपर तक प्रत्येक कार्मिक की संपत्ति की अगर सही तरीके से असेसमेंट की जाए, तो इनमें से 50% से ज्यादा अधिकारियों और सीनियर सुपरवाइजरों की संपत्ति उनकी आय से कई गुना अधिक पाई जाएगी!”

पिछले कुछ सालों में एक ट्रेंड यह भी देखने में आया है कि जिन अधिकारियों की सर्विस अभी बमुश्किल 10-12 या 15 साल की ही हो रही है, अभी वे सीनियर स्केल और जेएजी एडहॉक या फिर ज्यादा से ज्यादा कंफर्म जेएजी और बहुत ज्यादा तो सेलेक्शन ग्रेड तक पहुंचे हैं, उनमें रिश्वतखोरी का ट्रेंड बहुत ज्यादा है। केवल यही नहीं, इनमें घमंड और हेकड़ी का परिमाण भी बहुत अधिक दिखाई दे रहा है। जबकि ये काम में निकम्मे और अनुभव में अभी जीरो हैं।

नियमानुसार रेलवे सहित सभी सरकारी विभागों में सभी सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए सालाना आय-व्यय का ब्यौरा जमा करना अनिवार्य है। परंतु जानकारों का मानना है कि यह केवल एक औपचारिकता या खानापूरी मात्र होती है, क्योंकि रेल प्रशासन के पास इस कथित “ऐनुअल रिटर्न” की क्रॉस वेरिफिकेशन का कोई मैकेनिज्म नहीं है। जिसने जो लिखकर दे दिया, वह रखकर फाइल कर दिया जाता है। उनका कहना है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि किसी का कोई उत्तरदायित्व तय नहीं है। सब यह मानकर चलते हैं कि जो पकड़ा गया वह चोर, बाकी सब साहूकार! जबकि चोर, कुछेक अपवादों को छोड़कर, लगभग सभी हैं, अंतर केवल इतना ही है कि कोई कम है, तो कोई ज्यादा!

भ्रष्टाचार के मामले में स्वयं प्रधानमंत्री ने कई बार जीरो टॉलरेंस की बात विभिन्न मंचों से कही है। तथापि शुरुआती दौर में इसे न तो जांच एजेंसियों ने, और न ही सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों ने गंभीरता से लिया था। परंतु जहां तक रेल की बात है, तो ‘रेलसमाचार’ और ‘रेलव्हिस्पर्स’ ने अपने विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्मों से लगातार इस पर पीएमओ, सरकार, सीबीआई और सीवीसी का ध्यानाकर्षण किया है।

अब रेलमंत्री ने भ्रष्टाचार को गंभीरता से लेकर जांच एजेंसियों और भ्रष्टाचार निवारण तंत्र को सतर्क किया है। तथापि जो मामले अब तक उजागर हुए हैं, वे इस विशाल ‘समंदर’ की एक बूंद बराबर भी नहीं हैं। यह छोटी मछलियां भी नहीं है, क्योंकि इस समंदर में भ्रष्टाचार की बहुत बड़ी-बड़ी व्हेल हैं, जिन पर जांच एजेंसियां भी शायद हाथ डालने से घबरा रही हैं। परंतु शायद यातायात के बोध वाक्य “दुर्घटना से देर भली” की तर्ज पर जांच एजेंसियां भी धैर्यपूर्वक सही समय की प्रतीक्षा कर रही हैं।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी