एनपीएस अच्छी है, तो यह सांसदों/विधायकों पर क्यों नहीं लागू की जाती? -इलाहाबाद हाईकोर्ट
कर्मचारियों की सहमति के बिना सरकार उनका अंशदान शेयर मार्केट में कैसे लगा सकती है?
सरकार लूट-खसोट वाली करोड़ों की योजनाएं लागू करने में नहीं हिचकती, मगर कर्मचारियों को पेंशन देने में दिक्कत हो रही है!
सरकार उनकी रोजी-रोटी भी छीनने पर उतारू है, ऐसे में सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता -कर्मचारी नेता
प्रयागराज ब्यूरो: नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) की जगह फिर से पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) की बहाली की मांग को लेकर चल रही सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल के मामले में सरकार के रवैये की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीखी आलोचना की है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि नई पेंशन स्कीम अच्छी है, तो इसे सभी सांसदों और विधायकों पर भी लागू क्यों नहीं किया जा रहा है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी तब की, जब सरकारी वकील ने कोर्ट को एनपीएस की तथाकथित खूबियां और अच्छाईयां समझाने की कोशिश की। कोर्ट ने कर्मचारी नेताओं को अपनी शिकायत और नई पेंशन स्कीम की खामियों को 10 दिन में पूरे ब्यौरे के साथ कोर्ट के सामने पेश करने का निर्देश दिया और प्रदेश सरकार को इस पर विचार कर 25 फरवरी तक हलफनामा देने का आदेश दिया है।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने पूछा कि कर्मचारियों की सहमति के बिना सरकार उनका अंशदान शेयर मार्केट में कैसे लगा सकती है? क्या सरकार असंतुष्ट कर्मचारियों से अपेक्षित काम ले सकती है? आखिर यह सब मनमानी कामकाज कब तक चलता रहेगा?
कोर्ट ने अत्यंत तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार लूट-खसोट वाली करोड़ों की योजनाएं लागू करने में नहीं हिचकती, मगर उसे 30 से 35 साल की सेवा के बाद सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने में दिक्कत हो रही है! कोर्ट ने कहा, सरकार को क्या कर्मचारियों को न्यूनतम पेंशन देने का आश्वासन नहीं देना चाहिए? कोर्ट का कहना था कि सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल से सरकार का नहीं, बल्कि सर्वसामान्य लोगों का नुकसान होता है।
उल्लेखनीय है कि पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने 6 फरवरी से प्रस्तावित कर्मचारी, शिक्षक एवं अधिकारियों की हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया था।
प्रदेश के मुख्य सचिव ने सभी मंडलायुक्त और जिलाधिकारियों को आदेश दिया था कि हड़ताल पर जाने और दूसरे कर्मचारियों को हड़ताल के लिए बाध्य करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध ‘ऐस्मा’ के तहत कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही मुख्य सचिव ने कर्मचारियों को यह भरोसा भी दिलाया था कि केंद्र सरकार द्वारा कर्मचारियों को पेंशन में दिया जाने वाला अनुदान राज्य सरकार भी देगी।
मगर कर्मचारी नेता, मुख्य सचिव के इस आश्वासन से आश्वस्त नहीं थे। इसीलिए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका कहना है कि पिछली बार अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने उनकी पुरानी पेंशन स्कीम छीन ली थी, इस बार यह सरकार उनकी रोजी-रोटी भी छीनने पर उतारू है, ऐसे में सरकार और उसकी नौकरशाही की किसी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।