रेल प्रबंधन में तार्किक एवं दूरदर्शी सोच का अभाव

भारतीय रेल प्रबंधन में तार्किक और दूरदर्शी सोच का नितांत अभाव हो चुका है।

चेयरमैन/सीईओ/रेलवे से लेकर मंडल प्रबंधन तक सभी का एक सूत्रीय कार्यक्रम सिर्फ अपना हितसाधन करना ही रह गया है।

व्यवस्था की इस प्रवृत्ति ने न केवल रेल तंत्र अपितु देश की अर्थव्यवस्था को भी खोखला बना दिया है।

पूजा स्पेशल और अन्य विशेष गाड़ियों के नाम पर किराया ज्यादा और सुविधा कम देकर यात्रियों को लूटा जा रहा है।

गरीब तबके के लोगों के लिए लोकल और सवारी गाड़ियां बंद करके केवल मालगाड़ियां चलाने पर सारा जोर देकर सिर्फ आर्थिक लाभ देखा जा रहा है।

आधुनिक तकनीक के युग में निरीक्षण के नाम पर की जा रही मौज-मस्ती और फिजूलखर्ची पर जहां कड़ाई से रोक लगाए जाने की जरूरत है, वहां कोई देखने वाला नहीं है।

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