रेल प्रशासन के विसंगतिपूर्ण निर्णय और कार्यप्रणाली
बिना उचित प्रशिक्षण, बिना यथोचित अधिकार दिए टिकट चेकिंग स्टाफ को मार्केटिंग में लगाया
रेल प्रशासन अतिरिक्त रेवेन्यू कमाने के पीछे जी-जान से लगा हुआ है, यह अच्छी बात है। इसके लिए अब टिकट चेकिंग स्टाफ को जगह-जगह मार्केटिंग के लिए भेजा जा रहा है कि जाओ पता करो कि व्यापारी लोग अपना माल कैसे भेजते हैं और कैसे मंगाते हैं तथा उनको बताओ कि रेलवे उनको सस्ती और अच्छी सुविधा देने को तैयार है।
परंतु जब व्यापारी स्टेशन पर आता है तो उसे पार्सल क्लर्क पोर्टर, स्टेशन मास्टर, गार्ड ओर डेस्टिनेशन पर भी बहुत से लोगों से मिलना पड़ता है, तब उसका काम होता है। इसके साथ ही उसे हर टेबल पर और हर क्लर्क को दस्तूरी देनी पड़ती है।
पार्टियों यानि व्यापारियों का कहना है कि रेलवे यदि यह सब व्यवस्था एक जगह कर दे, जिससे उन्हें 10 लोगों को नमस्कार करना और दस जगह दस्तूरी न चढ़ाना पड़े, और यही वह वजह है जहां रेल प्रशासन फेल हो जाता है।
अब जहां तक टिकट चेकिंग स्टाफ को मार्केटिंग के काम में लगाए जाने की बात है, तो उन्हें न तो इसका कोई अनुभव होता है और न ही उन्हें इसकी कोई ट्रेनिंग दी गई है। बस सीधे इस काम को करने का फरमान जारी करके उन्हें मार्केट से ट्रैफिक रेवेन्यू लाने को कह दिया गया है।
बताते हैं कि जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेलवे और रायपुर मंडल, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के टिकट चेकिंग स्टाफ को मार्केटिंग के काम में लगाया गया है, जबकि भोपाल सहित कुछ मंडलों के स्टाफ ने यह काम न करने पर फिलहाल अड़ा हुआ है और मना कर दिया है।
सर्वप्रथम यह कि टिकट चेकिंग स्टाफ को गुडस, लगेज, पार्सल इत्यादि के बुकिंग रेट पता नहीं हैं। उसको कोई यथोचित अधिकार भी नहीं दिए गए हैं। इस पर भी यदि वह मार्केट से व्यापारी को कोई पुख्ता आश्वासन देकर उसका माल बुक करके रेलवे से भेजने के लिए लेकर आता है तो इस बात की क्या गारंटी है कि उसके द्वारा व्यापारी को दिए गए आश्वासन की लाज रेल प्रशासन रखेगा ही?
जहां रेल प्रशासन अतिरिक्त रेलवे रेवेन्यू कमाने की हरसंभव जुगत में लगा हुआ है, वहीं अपने गुड्स शेडों और पार्सल डिपो आदि तक पहुंचने वाली अप्रोच रोड ठीक करवाने पर उसका कोई ध्यान नहीं है। जबकि होना तो यह चाहिए कि जिस जगह से रेलवे को लाखों-करोड़ों की रोजाना आमदनी हो रही हो, वह एकदम साफ-सुथरी और वहां तक पहुंचने की सड़कें एकदम सही हों।
भोपाल मंडल, पश्चिम मध्य रेलवे में गुना सेक्शन से लाल मिर्च, खड़ा धनिया, काबुली चना पूरे देश में जाता है, लेकिन बगैर बुक हुए, जो बुकिंग चार्ज है उससे 6-8 गुना ज्यादा की ईएफआर बनती है, उन्हें यह देना मंजूर है, लेकिन सही तरीका नहीं, क्योंकि सही तरीके में टाइम बहुत लगता है और माल समय पर नही पहुंच पाता है।
आजकल भोपाल मंडल में चेकिंग स्टाफ को ईएफटी काटना मना कर दिया गया है, जब स्टाफ पैसेंजर को चेक करता है और बगैर टिकट पाता है, और जब वह ऊपर अधिकारियों से पूछता है तो अधिकारी कोई निर्णय नहीं लेता है कि इनका क्या करना है।
आरपीएफ/जीआरपी स्टाफ उन्हें लेने को तैयार नहीं होता, कि कौन इनका पहले कोरोना टेस्ट कराए, तब इनकी एफआईआर भरे, इसलिए जो लोग किसी छोटे स्टेशन पर बिना टिकट आ रहे हैं, वह रेलवे को बगैर किराया दिए मुफ्त में जा रहे हैं। इस पर भी किसी का ध्यान नहीं है।
यही नहीं, रेलवे स्टेशनों और रेल परिसरों में जितने भी अवैध धंधे या छीना-झपटी और चोरी, अवैध वेंडिंग आदि की जितनी भी गतिविधियां होती हैं, वह सब आरपीएफ एवं जीआरपी की छत्रछाया में ही होती हैं। इन पर रेल प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। इस कोरोना काल में भी, जब बहुत गिनी-चुनी गाड़ियों का संचालन हो रहा है, तब भी कुछ रेलवे स्टेशनों पर आरपीएफ/जीआरपी की छत्रछाया में खाद्य सामग्री बेचते अवैध वेंडर देखे गए हैं।