संपादकीय : सवा साल का आँकलन

#Railwhispers और #RailSamachar, रेलकर्मियों और रेल उपभोक्ताओं की अभिव्यक्ति के सशक्त प्लेटफार्म हैं। हमने हमेशा रेल-सिस्टम से ही अपनी जानकारियाँ एकत्रित की हैं, जिसे प्रबंधन की भाषा में #crowdsourcing कहा जाता है। तथापि उन्हें हमने वेरीफाई करके ही प्रकाशित किया। सनसनी फैलाना हमारा उद्देश्य कभी नहीं रहा। हमने हमेशा यह माना कि उच्च अधिकारियों और मंत्रियों तक जमीनी फीडबैक पहुँचने में समय लगता है, इसीलिए हम सिस्टम या करप्शन से संबंधित कोई भी खबर प्रकाशित करने से पहले उन्हें सूचित करने में विश्वास करते हैं। इसे हमारी भाषा में उनका पक्ष जानना भी कहते हैं – जो हमारा प्राथमिक दायित्व भी होता है।

हमने बुलाए जाने पर वर्तमान मंत्री जी से भी भेंट किया और उन्हें सभी विषयों के बारे में पूरी जानकारी भी दी, उन्हें सारे साक्ष्य भी दिए, और बताया कि कैसे जमीनी हकीकत उनकी जानकारी में नहीं है, और उनसे यह आश्वासन भी मिला कि वह नियमानुसार यथोचित संज्ञान लेंगे।

लेकिन यह भी एक राजनीतिक आश्वासन ही साबित हुए। फिर भी जब हमें यह लगता है कि बात की गंभीरता को नहीं समझा गया, तब विषय को अपना पत्रकारीय दायित्व मानकर प्रकाशित किया जाता है, फिर चाहे उससे सनसनी ही क्यों न फैले। हम अपने हिस्से का काम तो करते ही हैं। हम अपने सोर्सेस का विश्वास-भरोसा कभी नहीं तोड़ते! इसलिए अब वह समय आ गया है जब कई सनसनीखेज खुलासे होंगे, रेल में भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ की गहरी पर्तें खुलेंगी। चुनाव का सीजन फिर निकट है, अत: सत्ता और पद के नशे में जो लोग चूर हैं, वह यह जान लें कि उनकी भी चूलें हिलेंगी!

बात #KMG और #AIDS की

ऐसा ही कुछ हमारी #KMG सीरीज के साथ हुआ। सीरीज के प्रकाशन से बहुत पहले हमारे पास ईमेल-व्हाट्सएप-एक्स डीएम द्वारा सूचनाएँ आने लगी थीं। #Sudheerkumar के आते ही उनके कुटिल व्यक्तित्व के बारे में फीडबैक भी आने लगा था और शीघ्र ही वह ग्राफ भी आ गया, जिसने ये प्रमाणित किया कि कैसे मंत्री बदलते रहे, लेकिन कोर #KMG रेल भवन में ही डटा रहा- अश्विनी वैष्णव जी आप पहले रेलमंत्री नहीं हैं, जो ‘खान मार्केट गैंग’ से घिरे हैं! ये बहुत सनसनीखेज था। हमें कई महीने लगे इसे समझने में – जानकारी विभागीय लड़ाई की ओर संकेत कर रही थी, और आपके इस समाचार पत्र को इसमें किसी का मोहरा नहीं बनना था। लेकिन जब कई स्थानों से चीत्कार सुनाई देने लगी, तो अंततः ये सीरीज सितंबर 2022 से प्रकाशित होना शुरू हुई – The team of Minister is manipulating 360 degree and resulted in a round loss of morale!

बात चुनिंदा अफसरों की

M/s #RKJha-#RKRai & Co. को #KMG सीरीज से कुछ वर्ष पहले ही हमने चिन्हित कर लिया था, और रेलवे बोर्ड के तत्कालीन शीर्ष अधिकारियों को ये चेताया भी था कि यह लोग व्यवस्था की दीमक हैं। यह लिखते हुए हमें अपार कष्ट है कि इन दोनों अति-भ्रष्ट अधिकारियों की जानकारियों को संकलित करना रेल प्रशासन और मंत्री के लिए बहुत आसान था, क्योंकि इनके बारे में सब जानते थे – चाहे वह अधिकारी रहे हों या ठेकेदार – तथापि किसी ने कुछ नहीं किया, इसलिए हमें ये सब प्रकाशित करना पड़ा, क्योंकि इन्हें किसी ने नहीं रोका, न ही रोक रहा है।

आर. के. राय को मॉनिटर करते हुए हमें #बनारस रेल इंजन कारखाने (#BLW) की गंदगी के बारे में पता चला। #बरेका के कुछ स्थानीय नेता हालाँकि #Railsamachar और #Railwhispers के संपर्क में कई वर्षों से रहे हैं। अभी भी वहाँ की स्थानीय राजनीति की जानकारी काफी आती रहती है, लेकिन उसे हम समय से वेरीफाई-फॉलोअप नहीं कर पा रहे हैं – हालाँकि, #DyCVO की पोस्टिंग के बाद #NCR से भी बहुत सारी सूचनाएँ आ रही हैं। यह सब वेरीफिकेशन की लाइन में हैं।

बात प्रोडक्शन यूनिट्स की

वहीं #RCF, #MCF और #CLW की बहुत सी जानकारियाँ मिल रही हैं। हम #BLW में इसीलिए रुचि रख रहे हैं, क्योंकि यह #प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में है, और यहीं नियम से काम न होते हुए #rotation का मजाक बना है। #RCF से हमें यात्री संरक्षा से खिलवाड़ और विजिलेंस के वीभत्स रूप की सूचनाएँ-जानकारियाँ लगातार मिलती रही हैं – इन्हें हमने समय-समय पर प्रकाशित भी किया है, क्योंकि इसमें रेल भवन की मिलीभगत दिखी। वहीं #CLW से हमें “अधिकारी बना वेंडर” की विस्तृत जानकारी भी मिली, जिसे हमने विस्तार से तीन सीरीज में न केवल प्रकाशित किया, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से रेलमंत्री के संज्ञान में भी लाए।

हालाँकि, हम दूसरे डिपार्टमेंट के अधिकारियों से मिली जानकारियों को हमेशा क्रॉस-वेरीफाई करते हैं, ताकि हम अधिकारियों की आपसी या विभागीय लड़ाई का हिस्सा बनने से बच सकें।

उन सम्मानित वरिष्ठ अधिकारियों से भी बहुत से विषय हमने समझा, जो इस #नेक्सस के चलते अथवा मानवीय प्रवृत्ति की कुटिलतापूर्ण साजिशों के कारण अपने करियर की ऊँचाईयों को नहीं छू पाए!

कुछ बात हमारे सोर्सेज की-कौन हैं हमारे सोर्स?

#SudheerKumar, #Jitendrasingh और #Navinkumar तीनों #इलेक्ट्रिकल कैडर के अफसर हैं। #VKYadav और #VKTripathi भी इलेक्ट्रिकल के ही चेयरमैन रहे। वहीं, इलेक्ट्रिकल के तमाम अधिकारियों का रेल भवन में ही अपग्रेडेशन कर दिया गया। स्पोर्ट्स से लेकर एस्टेब्लिशमेंट इन्हीं के कब्जे में रहा। #नाकरा जैसे अधिकारी ने न केवल अपना #NR-बड़ौदा हाउस से #SECR का ट्रांसफर रुकवा लिया, बल्कि वह एक पोस्ट भी लेकर सीधे रेल भवन पहुँच गए। #इलेक्ट्रिकल के अधिकारियों के इस वर्चस्व में इस दरम्यान #मैकेनिकल के कई योग्य अधिकारियों का करियर खत्म कर दिया गया। बहुत कयास लगे कि ये कौन सोर्स है-हमारे ऊपर बहुत आर्थिक और राजनीतिक दबाव भी आया।

(19 दिसंबर 2022, “व्यर्थ कयास लगाना छोड़कर, ‘रोटेशन’ पर ध्यान केंद्रित किया जाए!”)

कुछ अफसरों ने तो यहाँ तक हमें कहा कि “साहब हम सोर्स नहीं हैं, यही छाप दें, या मंत्री जी के सेल को बता दें!” हमारे सबसे बड़े सोर्स हमारे पाठकगण हैं। वैसे अगली श्रेणी में वह सोर्स रहे जो इस व्यवस्था के पीड़ित रहे – इनके पास हर #केएमजी सदस्य की कुंडली थी। पाठकों को नहीं पता है कि अधिकांश महाप्रबंधक और बोर्ड सदस्यों की निजी और उनके सोर्स के विस्तार की जानकारी हमें दी गई, लेकिन उसे प्रकाशित करना हमने उचित नहीं समझा। हम मानते हैं कि रेल अधिकारी का सामाजिक और निजी संबंधों का दायरा बहुत व्यापक होता है।

यह सही है कि #KMG सीरीज संकलन ने हमारी संपादकीय पालिसी को बहुत सुदृढ़ किया है, क्योंकि हमारे लेख रेलमंत्री और प्रधानमंत्री सेल में नियमित पढ़े जा रहे हैं। कुछ कार्यवाही भी हो रही है, फिर भले ही वह अपेक्षा के अनुरूप न हो!

अभी #360 डिग्री रिव्यू, #इमोशनल-इंटेलिजेंस, #IRMS की फाइलें, #गतिशक्ति विश्वविद्यालय, #विजिलेंस, #वैगन-खरीद, #प्रोडक्शन यूनिट्स और पीएसयू एवं उनकी बैक-टु-बैक टेंडर सब्लेटिंग इत्यादि के अन्य कई मुद्दे कतार में हैं। #BLW में #VVIP मूवमेंट चालू हो चुका है। न निजीकरण, न निगमीकरण – बरेका को ईस्ट इंडिया कंपनी सरीखे मॉडल में ढ़ालने की तैयारी हो चुकी है। इस मुद्दे पर भी पर्याप्त रिसर्च हो चुकी है, और यह देरी हमारे अकाउंट पर है। प्रिय पाठकगण, परिमार्जित, पूर्णतः वेरिफाइड जानकारियों के साथ आने वाले दिनों में आपको रेल की “स्थिति” और “परिस्थिति” पर रोचक लेख पढ़ने को मिलेंगे! कृपया धैर्य रखकर थोड़ी प्रतीक्षा करें!

– सुरेश त्रिपाठी

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