प्रधानमंत्री जी, आपको योग्य और निष्ठावान डीआरएम चाहिए, या रंगीले बादशाह?
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
रेल मंत्रालय में #DRM का नया पैनल पुराने 52 साल वाले ढ़र्रे पर बनाने की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है। इसका मतलब यह है कि आपकी सरकार से रेल में कोई भी सही निर्णय लेने की अपेक्षा रखना अब बेमानी हो गया है?
रेल में प्राण फूंकने वाला कदम होता अगर आप 52 साल के क्राइटेरिया को समाप्त कर डीआरएम का चयन करते, जो रेलवे में ‘MOTHER OF ALL REFORMS’ होता!
लेकिन अभी डेढ़ माह पहले ही आपने 54-55 साल में प्रवेश कर चुके लोगों को डीआरएम बनाया है, तो बाकी अधिकारियों के साथ यह अन्याय क्यों? इसी आधार पर बाकी सारे 54-55 साल तक वाले अधिकारियों को क्यों नहीं यह मौका मिलना चाहिए? उनमें ऐसी कौन सी खासियत नहीं है जो अभी आपके 20 डीआरएम के पद पर पदस्थ किए गए लोगों में है?
कृपया दोहरे मापदंड अपनाने का खुल्लमखुल्ला ऐसा अत्याचार न करें!
आपको काम करने वाले योग्य, सक्षम और निष्ठावान डीआरएम चाहिए या 52 साल के रंगीले बादशाह? आपको पहले यह तय करना चाहिए।
अब तो आपके भक्तों को भी यह समझ में नहीं आ रहा कि यह आपकी पार्टी को सोच-समझकर वोट देने का नतीजा है या अब समझ में आ रही उस की जा चुकी गलती या नासमझी का?
याद रहे न्याय और समग्र दायित्व बोध को छोड़कर तानाशाही, गैरजिम्मेदाराना, खान मार्केट गैंग वाली मानसिकता और तदर्थवादी तरीके से काम करने वाले लोगों की गति बड़ी दुर्गति वाली होती है।
अगर रोक सकते हैं तो इस 52 साल के क्राइटेरिया आधारित कोढ़ को रोककर डीआरएम के लिए सबको बराबर का मौका देते हुए रेलवे में नूतन जीवन और नूतन युग की शुरुआत करें!
ध्यान रहे कि रेल में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, न भीतर, न ही बाहर। रेल की कार्यप्रणाली से लोग संतुष्ट नहीं हैं। कोरोनाकाल के बाद सैकड़ों क्षेत्रीय ट्रेनें आज भी पुनर्स्थापित नहीं की गई हैं। दस हजार से अधिक खत्म किए गए स्टापेज अब तक रिस्टोर नहीं हुए हैं।
इससे सरकार के प्रति लोगों का असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। रेल किराए में वरिष्ठ नागरिकों की छूट खत्म किए जाने से लाखों लोग सरकार की इस नीति से असंतुष्ट हैं। रेल में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। खान मार्केट गैंग की कार्यप्रणाली से रेलकर्मियों और अधिकारियों में भारी रोष व्याप्त है।
ऐसी अन्य अनेक स्थितियों के मद्देनजर ऐसा संदेश जा रहा है कि सरकार ने तमाम सामाजिक सरोकार से अपना पल्ला झाड़ लिया है।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी! सोचिए, भारतीय रेल इस देश की धमनी है, और इसके प्रति आपकी उदासीनता लोगों का मोह आपके प्रति भंग कर सकती है।
धन्यवाद
सुरेश त्रिपाठी
संपादक
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