रेलवे की प्रशासनिक दक्षता में सुधार आवश्यक है!
संपादक महोदय,
रेलवे का यह तदर्थवाद अनैतिक और योग्य के ऊपर किसी और को थोपकर उसे हतोत्साहित करता है। यदि वरिष्ठ अधिकारी या कर्मचारी वास्तव में पदोन्नति के योग्य नहीं हैं तो उन्हें इस बात से अवगत करवाया जाना चाहिए, और हो सके तो उन्हें कार्यभार से मुक्त कर दिया जाना चाहिए, ताकि जिन्हें दायित्व सौंपा गया है वे निश्चिंत होकर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र महसूस कर तीव्रगति से काम कर सकें।
वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से मंडल एवं मुख्यालय स्तर पर जितनी बैठकें आयोजित की जा रही हैं और कार्योँ की समीक्षा की जा रही है, उसकी तुलना में धरातल पर प्रगति नगण्य ही है। प्रधानमंत्री जी लाख कोशिश कर रहे हैं कि काम की गति बढ़े और योजनाएं समयबद्ध तरीके से पूरी हों, पर रेलवे में विभागीय पक्षपात और अधिकारियों की अहंमन्यता के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है।
आईआरएमएस नामक बीरबल की खिचड़ी से बहुत अधिक प्रगति की अपेक्षा बेमानी ही है, क्योंकि मंत्री स्तर पर प्रबंधक, प्रशासक और लेखापरीक्षक जैसे विशेषज्ञ सफल नहीं हो पा रहे हैं तो विभिन्न विधाओं में सिद्धहस्त लोग किसी और शाखा में कार्य करने पर तुगलकी फरमान जारी कर भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाने की आशंका ही ज्यादा रहेगी।
रेल प्रशासन की प्रशासनिक में दक्षता में सुधार की बहुत ज्यादा संभावना है और यह आवश्यक भी है। लेकिन इसके लिए इस रेल तंत्र को कर्मचारी विरोधी होना और उनका शोषण, यथा प्रताड़ित करना ही एकमात्र विकल्प नहीं है। कर्मचारी संगठनों को नेस्तनाबूद करने का प्रयास रेल के इस विशाल और सक्षम तंत्र को पूरी तरह ध्वस्त कर देगा और अंततः इसे भी एयर इंडिया और बीएसएनएल की तरह औने-पौने दाम पर बेच दिया जाएगा, जिसका दुष्परिणाम इस देश की गरीब जनता को ही भुगतना पड़ेगा।
एक रेल कर्मचारी, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, रायपुर।