प्लेटफॉर्म पर बनती हैं लंबी दूरी की टिकटें!

महीने भर में मुश्किल से पांच हजार की टिकटें बनाने वाले को पीओएस मशीन रखना आवश्यक है और 70-80 हजार की टिकट एक दिन में बनाकर देने वाले के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। यह निर्धारित नियमपूर्ण व्यवस्था के साथ एक बहुत बड़ा मजाक है!

लुधियाना स्टेशन से बाहरी राज्यों को जाने वाले यात्रियों की टिकटें प्लेटफॉर्म पर ही बन जाती हैं। जिस टिकट चेकिंग स्टाफ को गाड़ियों के अंदर भी ऐसा करने की अनुमति नहीं वह केवल अपनी ड्यूटी दिखाने अर्थात ड्यूटी की खानापूरी करने के लिए सभी निमयों को ताक पर रखकर बड़े मजे से ऐसा कर रहा है।

इस पर कुछ सीनियर चेकिंग स्टाफ का कहना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बिना गाड़ी में चढ़े टीए जो मिल जाता है और अधिकारियों को भी यही मुफीद लगता है कि जब रेलमंत्री किसी नियम या प्रक्रिया को नहीं मानते हैं, तब रेल के लिए कमाई करने वाले स्टाफ को भी कोई नियम क्यों मानना चाहिए!

तथापि उनका यह भी कहना है कि इस तरह की बनाई हुई किसी रसीद (ईएफटी) पर न तो कोई कोच नंबर होता है, न ही किसी यात्री का कोई आईडी नंबर दर्ज किया जाता है, और जो सबसे जरूरी बात है, वह यह कि टिकट कहां पर कलेक्ट की गई है, अथवा कहां बनाई गई है, वह भी उस पर नहीं लिखा होता है।

उनका कहना है कि इनके इंचार्ज से लेकर मंडल के संबंधित अधिकारियों तक को यह सब बहुत अच्छी तरह से पता है। उन्होंने कहा कि वास्तव में ये लोग सिस्टम की कमियों का ही फायदा उठा रहे हैं। कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है कि जो इनकी ड्यूटी पर आने और जाने के सही समय को वेरीफाई कर सके। जिसका जहां मन करता है, अपनी पसंद की गाड़ी में टिकट बनाकर घर चला जाता है। कोई एक स्टाफ बाकी सबकी फॉर्मेलिटी पूरी कर देता है।

इस संदर्भ में जब भी कभी हमारे प्रतिनिधि ने ऐसे स्टाफ से उनकी ड्यूटी के बारे में जानना चाहा तो ये कोई ढ़ंग का जवाब नहीं दे पाते हैं।

इस बारे में एक अंदर की बात और पता चली है जो कि अपने आप मे हैरान करने वाली है, वह ये है कि गाड़ियों में ऑन बोर्ड जो चेकिंग स्टाफ ड्यूटी करता है उनको हमेशा यूनिफॉर्म में रहने, नेम प्लेट लगाने और यात्रियों से ऑनलाइन पेमेंट लेने के लिए अपने साथ पीओएस मशीन रखने की सख्त चेतावनी दी जाती है मगर जो चेकिंग स्टाफ एक दिन में 70-80 हजार रुपये की टिकट बनाकर दे रहा है उनके लिए कुछ भी अनिवार्य नही है।

जानकारों का कहना है कि महीने भर में बड़ी मुश्किल से पांच हजार की टिकटें बनाने वाले को पीओएस मशीन रखना आवश्यक है और 70-80 हजार रुपये की टिकट एक दिन में बनाकर देने वाले के लिए कुछ भी जरूरी नहीं है। यह निर्धारित नियम पूर्ण व्यवस्था के साथ बहुत बड़ा मजाक है!

सब जगह हो रहा है यही खेल

“मुंबई में भी यही हो रहा है जो ‘करोड़ोंपति’ बने हैं, उनका न कोई ड्यूटी का समय‌ है, न ही ट्रेन का। एलटीटी में तो बुकिंग ऑफिस के सामने एवं सीढ़ी से उतने के पहले सीढ़ी पर ही पकड़कर रसीदें बनाते हैं। ट्रेन में जाते ही नहीं। सीढ़ियों पर प्लेटफार्म पर ही कोई भी गाड़ी की रसीद बन जाती है। चाहे गाड़ी बाद वाली हो या पहले छूटने वाली हो, अगर चेक किया जाए, तो चेकिंग स्टाफ के 90% लोग नियमानुसार टीए क्लेम नहीं कर सकते हैं, क्योंकि बाद की गाड़ी की रसीद पहले और पहले छूटने वाली गाड़ी की रसीद बाद में बनती है। इस हिसाब से जब वह गाड़ी में ठाणे या कल्याण स्टेशन तक गए ही नहीं, तो टीए कैसे क्लेम करेंगे? लेकिन सब मनमर्जी का चल रहा है।” यह कहना है मुंबई मंडल मध्य रेलवे के एक वरिष्ठ टीटीई का। उसका यह भी कहना है कि लगभग सब जगह यही खेल हो रहा है, मगर देखने वाला कोई इसलिए नहीं है क्योंकि अधिकारियों को केवल करोड़ों के आंकड़े से मतलब रह गया है, जिससे उन्हें जीएम अवार्ड और क्रेडिट मिलती है।

टिकट चेकिंग से आय अर्जन में झांसी मंडल का प्रदर्शन

झांसी मंडल द्वारा वित्तीय वर्ष में विभिन्न आय स्रोतों से अधिक आय अर्जन हेतु निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में टिकट जांच के माध्यम से वित्तीय वर्ष में माह अप्रैल-2021 से मार्च-2022 तक की अवधि में बिना टिकट, अनियमित टिकट धारक, अनबुक्ड लगेज, आदि पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से कुल 4,09,646 मामले पकडे गए, जिनसे जुर्माना स्वरूप ₹26.81 करोड़ रेल राजस्व की वसूली की गई।

इसमें बिना टिकट यात्रा करने वाले कुल 402962 मामले पकड़े गए और उनसे कुल ₹26.72 करोड़ रेल राजस्व की वसूली की गई। अनियमित यात्रा करने वाले 42 मामलों में ₹23,820 के रेल राजस्व की वसूली हुई, और बिना बुक किए सामान के कुल 6642 मामले पकड़ में आए, जिनसे कुल ₹8.90 लाख के रेल राजस्व की वसूली की गई।