भारत सरकार के आदेशों और सीवीसी के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध काम कर रहा है रेलवे का विजिलेंस ऑर्गनाइजेशन!

डीओपीटी के आदेश और सीवीसी के प्रावधान पर फौरन अमल सुनिश्चित करते हुए सीवीओ/रेलवे बोर्ड एवं सभी जोनल रेलों के सीवीओ, रेलवे में बाहर से प्रतिनियुक्ति पर बुलाए जाएं!

हर पेज पर “स्ट्रिक्टली कांफिडेंसियल एंड फॉर इंटरनल सर्कुलेशन ओनली” रिमार्क लगी, गत माह अगस्त 2021 में जारी और हाल ही में पूरी सोशल मीडिया पर वायरल हुई “रेशनलाइजेशन ऑफ गवर्नमेंट बॉडीज” विषयाधारित संजीव सान्याल, प्रिंसिपल इकोनोमिक एडवाइजर, भारत सरकार की रिपोर्ट पर रेलवे के हर वर्ग और क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है। जबकि कुछेक को छोड़कर इस रिपोर्ट के ज्यादातर विषय समय के अनुसार बहुत तर्कसंगत और रेल के विकास हेतु अत्यंत आवश्यक हैं। अधिकारियों/कर्मचारियों और लेबर फेडरेशनों/यूनियनों के विरोध की परवाह न करते हुए सरकार और रेलमंत्री द्वारा इन सिफारिशों पर फौरन से पेश्तर अमल सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल के रेलवे विजिलेंस संबंधी सुझाव को दो भागों में बांटकर देखा जाना चाहिए। पहला, यह एक गंभीर विषय है कि रेलवे में सीवीसी के आदेशों, दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है, जिस पर तुरंत अमल सुनिश्चित किया जाना चाहिए। फिर इसके लिए सीवीसी को रेलवे के संबंधित विजिलेंस अधिकारियों के विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई का डंडा ही क्यों न चलाना पड़े! दूसरा विषय रेलवे में पूरी विजिलेंस व्यवस्था में सुधार से संबंधित है। यह भी अत्यंत आवश्यक है।

Read – “Railway Board’s Vigilance Directorate functioning against CVC guidelines

इस अमल की शुरुआत सबसे पहले आंतरिक सीवीओ/रेलवे बोर्ड और सभी जोनल रेलों के सीवीओ की जगह रेल से बाहर के अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाकर बैठाए जाने से की जानी चाहिए, क्योंकि सीवीसी सहित देश की सभी जांच एजेंसियां केवल सीवीओ को संपर्क करती हैं और उसी से संवाद स्थापित करके समन्वय बनाती हैं। चूंकि रेलवे में एसडीजीएम को ही सीवीओ का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, इसलिए उपरोक्त समन्वय/संपर्क की आवश्यकता को देखते हुए अब जोनल रेलों में उक्त अधिकारियों द्वारा अपने नामपट पर “एसडीजीएम” के साथ “सीवीओ” पदनाम भी लिखा जाने लगा है।

जबकि बाहरी अधिकारी के प्रतिनियुक्ति पर आने से रेलवे में न केवल उपरोक्त दोहरे संभ्रम की स्थिति समाप्त होगी, बल्कि व्यवस्था में न्यूनतम नैतिकता और शुचिता को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही भ्रष्टाचार, फेवर और मनमानी को भी नियंत्रित करने में बड़ी सफलता हासिल होगी। इसका कारण यह है कि सारे रेल कर्मचारी और अधिकारी रेलवे की वर्तमान कदाचारपूर्ण विजिलेंस व्यवस्था से बुरी तरह त्रस्त हैं, जिसमें एसडीजीएम/सीवीओ केवल अपने विभागीय अधिकारियों अर्थात “कैडर बिरादरी” को बचाने और उनके भ्रष्टाचार को छिपाने में लगा रहता है। अतः केवल 25 अधिकारी डेपुटेशन पर दूसरे मंत्रालयों से लाने पर यह सुधार किया जा सकता है। रेलवे में केवल 25 सीवीओ हैं। एक रेलवे बोर्ड में और एक-एक प्रत्येक जोन एवं प्रोडक्शन यूनिट में।

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त संदर्भ में केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) द्वारा 18 जनवरी 2001 को जारी किए गए ऑफिस मेमोरेंडम (नं. 372/8/99-एवीडी-III) में उक्त प्रावधान किया गया था। इसमें स्पष्ट कहा गया है, “No CVO to be appointed from their Organisation!” परंतु आज बीस साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उक्त प्रावधान पर अमल सुनिश्चित नहीं हो पाया है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002-03 में अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को वैधानिक संस्था (स्टेट्युटरी बॉडी) का दर्जा प्रदान किया था। उसके तत्काल बाद सीवीसी ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों, संस्थाओं, उपक्रमों में उनके आंतरिक सीवीओ की जगह प्रतिनियुक्ति पर दूसरे सरकारी संस्थानों के अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित करवाई थी।

ज्ञातव्य है कि उस समय किन्हीं कारणवश रेलवे और पोस्ट एंड टेलीग्राफ तथा कस्टम्स को उक्त प्रावधान पर अमल करने से छूट दी गई थी। संभवतः इन तीनों मंत्रालयों की विशालता को देखते हुए और बाद में उक्त प्रावधान इन पर भी लागू करने की सोचकर इन्हें छोड़ दिया गया था।

तथापि इस कोताही को तत्काल इस तरह सुधारा जा सकता है कि किसी अन्य केंद्रीय मंत्रालय या विभाग के वरिष्ठ सीवीओ को फिलहाल रेलवे बोर्ड के सीवीओ का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया जाए तथा रेलवे के सभी सीवीओ की प्रतिनियुक्ति की प्रक्रिया तुरंत शुरू कर दी जाए।

भारत सरकार के आदेश, अर्थात डीओपीटी के उपरोक्त प्रावधान को बीस साल से ज्यादा बीत जाने और सीवीसी को वैधानिक दर्जा प्राप्त होने के भी लगभग बीस साल होने को देखते हुए इस पर अमल सुनिश्चित न हो पाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार और सीवीसी के ध्यानाभाव के चलते यह बहुत बड़ी कोताही कही जाएगी।

अब जहां तक भारत सरकार के प्रिंसिपल इकोनोमिक एडवाइजर संजीव सान्याल द्वारा अपनी रिपोर्ट के पैरा-14 में “Revaluate the size of appointment in Vigilance Directorate of Railways” विषय के अंतर्गत रेलवे बोर्ड में जो 1,170 विजिलेंस स्टाफ (192 अधिकारी और 978 कर्मचारी) होने की बात कही गई है, वह निरर्थक इसलिए है, क्योंकि इसी नासमझी या गलतबयानी को मुद्दा बनाकर इसी की आड़ में रेलवे के घाघ अधिकारी उनकी नेकनीयती को घुमाकर वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था को एक बार फिर जारी रखने में सफल हो जाएंगे और नतीजा फिर वही होगा – “ढ़ाक के तीन पात”। जबकि डीओपीटी के उपरोक्त आदेशानुसार बाहर के मात्र 25 अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर लाकर इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकता है, और साथ ही रेलवे में जमीन के नीचे तक घुसे हुए “भ्रष्टाचार” तथा हर दिमाग में गहरी पैठ बनाए हुए “विभागवाद” पर बड़ा अंकुश लगाया जा सकता है।

Read: “THE GUIDELINES FOR APPOINTMENT OF CHIEF VIGILANCE OFFICER (#CVO)

यह सही है कि हर आदमी अर्थात हर अधिकारी हर विषय का व्यापक जानकार या विशेषज्ञ हो, यह कतई संभव नहीं है। हर विषय की अपनी-अपनी विशेषज्ञता होती है, और वह विषय विशेष पर महारत हासिल होने के बाद ही प्राप्त होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि श्री सान्याल इकोनोमिक्स के एक्सपर्ट हो सकते हैं, पर रेलवे और विजिलेंस के भी वह एक्सपर्ट हों, यह जरूरी नहीं है। रेलवे बोर्ड और जोनल रेलों के स्तर पर विजिलेंस में शीर्ष पर केवल सीवीओ के पद पर बदलाव आवश्यक है। जहां सीवीओ में प्रतिनियुक्ति पर रेलवे से बाहर के अधिकारियों को लाए जाने की आवश्यकता है, जो निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने में अपने विवेक का उपयोग करने के साथ ही चीजों को क्रॉस वेरिफाई कर सकेंगे। बाकी सबॉर्डिनेट अर्थात तकनीकी स्टाफ (अधिकारी एवं कर्मचारी) तो रेलवे का आंतरिक (इंटरनल) ही रहेगा, जैसे बाकी सभी केंद्रीय मंत्रालयों, संस्थानों और उपक्रमों में है।

जानकारों का कहना है कि इस विषय पर पूर्व सीवीसी ने अपने कार्यकाल में बड़ी गहरी कवायद शुरू की थी। हर साल सीवीसी की करप्शन इंडेक्स में शीर्ष पर रहने वाले रेलवे, कस्टम्स और पोस्ट एंड टेलीग्राफ को बाहरी सीवीओ से मुक्त रखने पर एक सीवीओ कांफ्रेंस में गंभीर चर्चा भी हुई थी। इस कांफ्रेंस में इन तीनों केंद्रीय विभागों में भारी भ्रष्टाचार और मनमानी पर गहरी चिंता भी व्यक्त की गई थी। इसके बाद ही तत्कालीन सीवीसी ने इस विषय पर काम करना शुरू किया था। परंतु तभी उनका रिटायरमेंट आ गया और मामला जहां का तहां अटक गया।

इस तरह रेलवे बोर्ड और जोनों तथा उत्पादन इकाईयों को कुल मिलाकर लगभग 25 बाहरी अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर बुलाकर (पीईडी/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड, एसडीजीएम/सीवीओ/जोनल रेलवेज और प्रोडक्शन यूनिट्स में सीवीओ पद पर) बैठाए जाने की महत्वपूर्ण गरज है। इससे एक तरफ रेलवे में विजिलेंस मामलों में पारदर्शिता आएगी, तो दूसरी तरफ निष्पक्षता भी सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी तथा सीवीसी को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि इससे उनके खाते में बस केवल इन पच्चीस अधिकारियों (सीवीओ) की एसीआर लिखने की ही जिम्मेदारी बढ़ेगी, मगर इसके लाभ बहुत सारे होंगे।

अब जहां तक बात पदों के एलिमेंट की है, तो उसमें भी कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि रेलवे में मूर्खतापूर्ण रिस्ट्रक्चरिंग के चलते एसएजी स्तर पर रेल अधिकारियों की भरमार हो गई है। इसके अलावा कई रेल अधिकारी भी प्रतिनियुक्ति पर सीवीओ बनकर दूसरे केंद्रीय विभागों/उपक्रमों में जाते हैं, तो उनकी जगह बाहर से आने वाले अधिकारी लेंगे। इसके अलावा अन्य तमाम रेल अधिकारी भी दूसरी जगह प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं।

यदि फिर भी पोस्टों के एलिमेंट की समस्या आती है, तो विभिन्न विभागों में इफरात एचओडीज के एलिमेंट्स का उपयोग किया जाना चाहिए, भले ही उनके पदों को समाप्त करना पड़े! क्योंकि अभी-अभी जोनों में हुई एसडीजीएम की पोस्टिंग पर एक नजर डालने से पता चलता है कि किस तरह एक ही कैडर के 8-10 एसडीजीएम/सीवीओ, यानि जोनल विजिलेंस के पहरुए बना दिए गए हैं। यहां तक कि दूसरे कैडर के भी कुछ पदों को भी हड़प लिया है।

जबकि इनमें से कई सीवीओ अपने निर्धारित कार्यकाल से आगे चल रहे हैं और सीवीसी की गाइडलाइंस को खुलेआम धता बता रहे हैं। इस कदाचारी और दीर्घावधि कैटेगरी में रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) के सीवीओ अर्थात पीईडी/विजिलेंस भी प्रमुख रूप से शामिल हैं, जिन पर विजिलेंस में रहते हुए भ्रष्टाचार, उगाही और जोड़-तोड़ के गंभीर आरोप हैं, जो कि आयोग के समक्ष भी लिखित रूप से उपलब्ध कराए गए हैं।

इसके अलावा बिना कूलिंग ऑफ पीरियड के बोर्ड विजिलेंस सहित जोनल विजिलेंस में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति तथा उनके एक्सटेंशन पर भी सीवीसी को दिग्भ्रमित किया जाता है। बोर्ड में डायरेक्टर, ईडी, और जोनों में डिप्टी सीवीओ, एवीओ, वीआई/सीवीआई इत्यादि को निर्धारित कार्यकाल के बाद रिपैट्रिएट न करके उन्हें उपकृत किया जाता है। ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों का विजिलेंस में चयन किया जाता है, जो घोषित रूप से भ्रष्ट हैं। वर्तमान में भी ऐसे कई उदाहरण हैं। जबकि विजिलेंस में कार्यकाल को लेकर सीवीसी की गाइडलाइंस बहुत स्पष्ट है।

विजिलेंस में स्टाफ के कार्यकाल को लेकर सीवीसी द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस को विस्तार से नीचे दिए गए इस लिंक पर देखा जा सकता है –

TRANSFER OF THE OFFICERS/OFFICIALS WORKING IN VIGILANCE UNIT OF THE GOVERNMENT ORGANISATIONS

Chapter-II: Appointment, Role, Functions & Responsibilities of Chief Vigilance Officer.

2.7. TENURE OF CVO

2.7.1: “The CVOs would be eligible for an initial deputation tenure of three years which is extendable up to a further period of another two years in the same PSU (total five years) with prior clearance of the CVC or up to a further period of three years on transfer of another PSU on completion of initial tenure of three years in the previous PSU (i.e. total six years).” {DoPT O.M.No. 372/8/99-AVD-III, Dated 18.01.2001}.

रेलवे में यह सबसे भ्रष्ट कैडर्स के अधिकारियों को संस्थागत संरक्षण प्रदान करने वाली व्यवस्था है। रेलवे में वर्षों से चल रही इस कदाचारी और भ्रष्टाचारपूर्ण व्यवस्था को समाप्त करने का अब सही समय आ गया है। और अब जबकि भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार स्वयं यह बात कह रहे हैं, तथा भारत सरकार के कहने पर ही वे यह सुझाव और सिफारिशें दी हैं, तब रेलमंत्री और सीवीसी को तुरंत इस विषय पर कार्यवाही शुरू कर देनी करनी चाहिए।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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