पूर्व पीसीएमई के गिरफ्तार होने के मायने

सीबीआई ने 5 जुलाई 2021 को आईसीएफ के पूर्व पीसीएमई ए. के. कठपाल (आईआरएसएमई 1984 बैच) को ₹50 लाख रिश्वत मांगने और लेने तथा बड़ा भ्रष्टाचार करने के लिए गिरफ्तार किया।

सीबीआई ने कठपाल के विरुद्ध यह मामला तब दर्ज किया था जब वह इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ), पेरमबूर, चेन्नई में पीसीएमई के पद पर पदस्थ थे। उनके साथ चार अन्य बाहरी व्यक्तियों के विरुद्ध भी यह मामला दर्ज हुआ था।

आरोप है कि कठपाल ने पीसीएमई/आईसीएफ के पद पर रहते हुए फरवरी 2019 से 31 मार्च 2021, अपने रिटायर होने की तारीख तक, एक निजी फर्म की महिला डायरेक्टर के माध्यम से अन्य फर्मों से अवैध एवं गैरकानूनी तरीके से लगभग ₹5.89 करोड़ की रिश्वत ली।

कठपाल को सीबीआई ने 5 जुलाई को तब गिरफ्तार किया जब वह पद पर रहते हुए मांगी गई रिश्वत की ₹50 लाख की दूसरी किस्त प्राइवेट पर्सन से ले रहे थे। यह किस्त उसी महिला डायरेक्टर का आदमी लेकर आया था, जो कठपाल की तमाम रिश्वतखोरी की राशि की कस्टोडियन रही है। इस मौके पर चार अन्य व्यक्तियों को भी हिरासत में लिया गया है।

कठपाल की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली और चेन्नई में उनके कुल 9 ठिकानों पर सीबीआई द्वारा ली गई जामातलाशी में करीब ₹2.75 करोड़ की नकद राशि और लगभग 23 किग्रा सोना बरामद हुआ है।

सामान्यतः हर पांच साल में सरकारें बदलती हैं, या वही लोग पुनः सत्ता पर काबिज होते हैं, परंतु सभी का एक ही राग होता है – भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है, किसी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा इत्यादि – मगर वास्तविक धरातल पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहे होते हैं।

पिछले छह-सात वर्षों से भी लगातार यही जुमलेबाजी सुनने को मिल रही है। मगर जमीनी सच्चाई यही है कि इस दरम्यान न केवल भ्रष्टाचार की उन्नति पहले की अपेक्षा कई गुना ज्यादा हुई है, बल्कि इस दौरान अधिकारी वर्ग बहुत ज्यादा निरंकुश और बेखौफ हुआ है।वे खुलेआम भ्रष्टाचार इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि शिकायतकर्ताओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं है।

केवल रेल महकमे में ही देखा जाए, तो यहां छुटभैये (जेएजी) स्तर के अधिकारी, जिनकी कुल सर्विस ही अभी मुश्किल से 14-15 साल की हुई है, जब वह कुल 8-10 करोड़ की संपत्ति के मालिक के रूप में पकड़े गए हैं, तब कठपाल की तो उनके सामने कोई वैल्यू ही नहीं है, जिनकी संपत्ति का वैल्यूएशन सीबीआई द्वारा अभी किया जा रहा है।

यह सर्वज्ञात है कि कोई सरकारी अधिकारी-कर्मचारी स्वयं अपने हाथ में रिश्वत राशि नहीं लेता है। इसके लिए वह किसी न किसी कांट्रैक्टर या बाहरी आदमी को अपना माध्यम बना लेते हैं। ज्यादातर मामलों में यह काम कांट्रैक्टर, सप्लायर कंपनियां/फर्में ही करती हैं।

इसमें उनके दो फायदे होते हैं। एक – वे अधिकारी के सबसे विश्वासपात्र बन जाते हैं, जिसका अतिरिक्त लाभ उन्हें मिलता है। दूसरा – अधिकारी की रिश्वत राशि को वह अपने धंधे में भी उपयोग कर लेते हैं और इसके जरिए संबंधित अधिकारी अप्रत्यक्ष रूप से इनका बिजनेस पार्टनर बनकर अतिरिक्त लाभ कमाता है। सामने से उसको कोई जोखिम नहीं होता।

रेलवे में ऐसी कांट्रैक्ट फर्मों की बहुतायत है, जिनमें रेल अधिकारियों की रिश्वत-राशि का निवेश है। इसे पकड़ पाना और साबित कर पाना, जांच एजेंसियों के लिए एक टेढ़ी खीर है। इसीलिए यह सारे गोरखधंधे धड़ल्ले से चल रहे हैं।

सरकार या तो भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने की मुहिम शुरू करे, जिसमें जनता का उसे भरपूर समर्थन मिलेगा। अथवा रिश्वत/कमीशन को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी जाए, जिससे सरकारी कर्मियों को वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाएं नहीं देनी पड़ेंगी! इससे कम से कम जन-राजस्व की बचत हो जाएगी।