वही डायनासोर जिंदा रह पाएंगे, जो पतले हो जाएंगे!

भैया जार-जार रोते क्यों हो? या तो सुधारो या फिर डूब मरो!

घर के बर्तन-भांडे एक-एक चीज का बिकना अत्यंत दुखद तो है, लेकिन रेलवे समेत भारत सरकार के हर विभाग की आंतरिक समीक्षा की भी जरूरत है कि आखिर हम डूबे, तो डूबे क्यों?

और डूबने की यह शुरुआत 2014 से ही शुरू नहीं हुई है। 1991 में डॉ मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम की अगुवाई में इसके जो बीज बोए गए थे, उन्हें देश की हर पार्टी ने सींचा है, लागू किया, और बड़ा किया है।

केवल रेल जमींदारों की विरासत की तरह कायम है। हर साल हजारों भर्ती बंगला प्यून के रास्ते रेलवे में होती हैं। जब देश में योग्य पढ़े लिखे लोग हैं, तो आखिर यह क्यों हो रहा है? यह विचार करने योग्य है।

₹100 में 70-80 आपकी तनखा और पेंशन में चले जाते हैं। कुछ फोकट के रेलवे पास में। रेल में ऐसे अनेक विषय हैं, जहां अपव्यय अपरिमित है।

तथापि रेल के खत्म होने के आसन्न संकट के बावजूद रेल के कथित स्टेकहोल्डर्स अभी भी मूर्छित अवस्था में ही हैं।

बेटिकट यात्रा करने वालों की संख्या उत्तर भारत में सबसे ज्यादा है। इसीलिए सबसे घाटे की रेलें, नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे, गोरखपुर और ईस्ट सेंट्रल रेलवे, हाजीपुर आदि हैं।

अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब कहा था कि रुपये किसी पेड़ से नहीं झड़ते, तो शायद इन्हीं स्थितियों को देखकर कहा था। अतः वही डायनासोर जिंदा रह पाएंगे, जो पतले हो जाएंगे।

प्रशासनिक सुधार आयोग की आठ रिपोर्टों में जो, यूपीए/1-2 के टाइम की हैं और आगे भी जिन्होंने सरकार की क्षमता में सुधार लाने की जो भी सिफारिश की हैं, वह सब रद्दी में डाल दी गईं।

तीन साल से यूपीएससी के रिक्रूटमेंट में सुधार की बातें बासवान कमेटी ने की हैं, उसे नहीं लागू होने देगा पक्ष और विपक्ष!

तो भैया, जार-जार रोते क्यों हो? या तो सुधारो या फिर डूब मरो! अब दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

#प्रेमपाल_शर्मा, दिल्ली, संपर्क: 99713 99046