सही समय पर सही निर्णय लेने में अक्षम अधिकारी, जिम्मेदार पदों पर बैठने के लायक नहीं!
“व्यवस्था के व्यापक हित में और नए-नए क्षेत्रों में नई-नई शुरुआतों के लिए सही समय पर सही निर्णय न लेने वाले अधिकारी जिम्मेदार पदों पर बैठने के लायक नहीं हैं।” कार्पोरेट प्रबंधन में यह एक आदर्श और सैद्धांतिक स्थिति मानी जाती है।
यह बात आज भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों पर, और खासकर रेल मंत्रालय पर पूरी तरह फिट बैठती है।
रेल मंत्रालय में वह कुछ विभाग प्रमुख, डीआरएम, जीएम और बोर्ड अधिकारी इस कैटेगरी में आते हैं, जो नीचे से सब कुछ व्यवस्थित होकर आने के बावजूद उस पर अपना “प्रिंसिपल अप्रूवल” देने में या तो समय व्यतीत करते हैं, या फिर कोई निर्णय न लेकर फाइल को बोर्ड और जोन अथवा जोनल मुख्यालय एवं मंडल के बीच झुलाते रहते हैं और फिर रिटायर होकर चल देते हैं!
क्या उन्हें इस अनिर्णय और अनिश्चितता के लिए लाखों के वेतन-भत्ते और अन्य तमाम लक्जरी सुख-सुविधाएं जनता की गाढ़ी कमाई से उपलब्ध कराई जाती हैं?
ऐसा ही एक मामला हाल ही में चर्चा में सुनाई दिया। रेल किराए-भाड़े के अतिरिक्त राजस्व कमाने पर रेलमंत्री और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) का ज्यादा से ज्यादा जोर है। इसके समस्त अधिकार जोनल स्तर पर जीएम को दिए गए हैं।
हालांकि इसके लिए नए क्षेत्र खोजने में अधिकारियों की कोई विशेष रुचि देखने में नहीं आ रही है। तथापि जो अधिकारी अतिरिक्त मेहनत करके ऐसा कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें जीएम स्तर पर प्रोत्साहन इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि जीएम डरपोक या दब्बू किस्म के हैं।
जबकि नीचे तीन एसएजी (एचओडी) अधिकारियों की कमेटी उस प्रस्ताव की हर पहलू से जांच-परख करके, उसका भावी आकलन, परीक्षण करने के बाद प्रस्ताव को सही पाकर उसे आगे बढ़ाने की संस्तुति की हुई होती है। इस पर प्रिंसिपल विभाग प्रमुख और अपर महाप्रबंधक की भी संस्तुति मिल जाती है।
अब जरूरत सिर्फ जीएम के प्रिंसिपल अप्रूवल की होती है। उसके बाद ओपन टेंडर होना होता है। उसके भी बाद तीन सदस्यों की पुनः एक कमेटी (टीसी – टेंडर कमेटी) आए हुए प्रस्तावों का परीक्षण करती है। अपनी संस्तुतियां देती है। तत्पश्चात उनसे ऊपर के अधिकारी द्वारा टीसी की संस्तुतियों की देख-परख के बाद उचित निर्णय लिया जाता है। इतनी लंबी-चौड़ी प्रक्रिया के बाद तब नया राजस्व कमाने का कहीं कोई नया क्षेत्र धरातल पर उतरता है।
जब ओपन टेंडर होना है, सब कुछ नीचे से जांच-परख कर आया है, तब किसी जीएम द्वारा उस पर तत्काल निर्णय लेने और प्रिंसिपल अप्रूवल देने में हीलाहवाली क्यों की जानी चाहिए? तथापि जीएम को यदि कोई हिचक या आशंका है, तो उसे सकारण फाइल पर लिखित रूप से दर्ज करना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो संबंधित अधिकारी जीएम जैसे अधिकार संपन्न पद पर बैठने के लायक नहीं है। उसे तुरंत किसी साइड पोस्टिंग पर भेजकर रेल को और ज्यादा बरबादी की ओर जाने से रोका जाए! क्रमशः
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी