एचआरएमएस की गड़बड़ियों पर रेलकर्मियों में उपजे आक्रोश को भुनाने आगे आई फेडरेशन

मुख्य मुद्दों को दरकिनार कर औचित्यहीन मुद्दों पर इस तरह अनावश्यक प्रतिक्रिया करना न सिर्फ समझ से परे है, बल्कि इसी वजह से दोनों फेडरेशन अपनी विश्वसनीयता भी खो बैठे हैं!

ह्यूमन रिसोर्सेस मैनेजमेंट सिस्टम (एचआरएमएस) में भारी गड़बड़ियों और उन्हें ठीक नहीं किए जाने पर रेल प्रशासन के खिलाफ रेलकर्मियों का गुस्सा फूट पड़ा है। रेलकर्मियों के इस सेंटीमेंट को भुनाने के लिए फेडरेशन भी आगे आ गई है। फेडरेशन के आह्वान पर गुरुवार, 25 मार्च को रेलकर्मियों ने पूरी भारतीय रेल में प्रदर्शन किया।

ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के आह्वान पर रेलकर्मियों ने सभी जोनल एवं मंडल मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया। रेल कर्मचारी एचआरएमएस में सुधार या उसे रोकने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि एचआरएमएस की वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि एचआरएमएस में तमाम गड़बड़ियों की वजह से उन्हें प्रिविलेज पास, रिजर्वेशन और पीएफ निकालने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

एआईआरएफ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि रेलवे और उनके परिवार के सदस्य अंग्रेजों के जमाने से रेलवे पास की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। यह पहली बार है कि इस विशेषाधिकार (प्रिविलेज) को जबरन छीनने की कोशिश की जा रही है, इसे लेकर रेलकर्मी नाराज हैं।

यही नहीं शादी के मामले में प्रोविडेंट फंड (पीएफ) से निकासी का प्रावधान होने के बावजूद, शादी-ब्याह, बीमारी, परिवार के सदस्य या बच्चों की पढ़ाई के लिए रेलकर्मी पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं। एचआरएमएस में कमियों की वजह से उन्हें बाहर से ज्यादा ब्याज पर पैसा उधार लेना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि पहले ही इस मुद्दे को रेलवे बोर्ड के सामने उठाया गया था। बोर्ड ने 31 मार्च 2021 तक इसमें सुधार के लिए समय मांगा था, लेकिन इसमें कोई सुधार नहीं हुआ। इस सिस्टम को बनाने करने वाली एजेंसी क्रिस ने न तो इसके लिए रेलकर्मियों को प्रशिक्षित किया है, न ही इसका सर्वर ठीक से काम कर रहा है।

उनका कहना है कि यह भी एक वजह है कि अधिकांश रेलवेकर्मी इस सिस्टम का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि इस समस्या से परेशान देश भर में रेल कर्मचारी प्रदर्शन करके गंभीर विरोध दर्ज करा रहे हैं।

एक कर्मचारी का कहना था कि एचआरएमएस से निश्चित तौर पर रेलकर्मियों को काफी परेशानी हो रही है, परंतु जब कोई नया सिस्टम आता है, तो शुरू में उसको समझने में थोड़ी समस्या आती है, पर समय के साथ सब ठीक हो जाता है। यह कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं थी जिसके लिए आसमान सिर पर उठा लिया जाए। उसका कहना था कि यह कोढ़ रेलवे बोर्ड या क्रिस का नहीं, बल्कि डीजी एचआर और एएम/स्टाफ जैसे अकर्मण्य अधिकारियों का है, जिनकी आरती यह फेडरेशन उतारते हैं।

कर्मचारी ने कहा कि जिसके लिए बहुत पहले से ही आसमान सिर पर उठाया जाना चाहिए था, उस पर दोनों फेडरेशन मौन हैं। रेलवे की बरबादी, निजी ट्रेनें, निजीकरण, निगमीकरण, रेलकर्मियों की छंटनी, खाली पड़ी लाखों वैकेंसी इत्यादि मुख्य मुद्दों पर उनका या तो कोई ध्यान नहीं है, या फिर वह सरकार की बंदरघुड़की से सहमकर अपनी-अपनी सुख-सुविधाएं बचाने के लिए चुप्पी साध रखी है।

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि अगर बोर्ड ने 31 मार्च तक का समय मांगा था, तो उसके पहले फेडरेशन द्वारा पूरी भारतीय रेल पर प्रदर्शन आयोजित करने का क्या औचित्य था? उन्होंने कहा कि यदि नियत समय बीत जाता, फिर भी सिस्टम में अपेक्षित सुधार नहीं होता, तब फेडरेशन को एक बार फिर बोर्ड से चर्चा करनी चाहिए थी। इस अधिकारी का भी यही कहना था कि औचित्यहीन मुद्दों पर फेडरेशन का इस तरह अनावश्यक प्रतिक्रिया करना न सिर्फ समझ से परे है, बल्कि इसी वजह से यह अपनी विश्वसनीयता भी खो बैठे हैं।

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