शिक्षा नीति – कथनी और करनी

शिक्षा मंत्री जी ! यह तो नई शिक्षा नीति के खिलाफ है!

सीबीएसई ने ब्रिटिश काउंसिल की सलाह से जो मूल्यांकन प्रणाली छठवीं से दसवीं तक के बच्चों के लिए घोषित की है, उसमें केवल अंग्रेजी, गणित और विज्ञान, यह तीन विषय ही शामिल हैं!

सवाल उठता है कि अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाएं क्यों नहीं? इस बहुभाषी, बहुबोली और बहु-सांस्कृतिक देश में सिर्फ अंग्रेजी को ही बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? क्या अंग्रेजी में सुर्खाब के कोई विशेष पर लगे हुए हैं?

ग्लोबल-स्लोबल का हौव्वा दिखाकर भारत, भारतीयता और भारतीय भाषाओं का अपमान तो कम से कम नहीं ही किया जाना चाहिए! यह उनकी पीठ और पेट में छुरा भोंकने के समान है!

विकल्प:

  1. भारतीय भाषाएं हर हाल में शामिल हो! गणित, विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी वैकल्पिक रहे!
  2. न अंग्रेजी, न भारतीय भाषाएं। सिर्फ गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान। लेकिन प्रश्न पत्र आठवीं अनुसूची की सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हों!

नई शिक्षा नीति प्राथमिक कक्षाओं में और संभव हो सके तो आठवीं तक अपनी मातृ भाषाओं में पढ़ाई की बात करती है, तो यहां ब्रिटिश काउंसिल की अंग्रेजी के मूल्यांकन की सलाह कहां से आ गई?

यह राष्ट्रीय चिंता का विषय है कि ब्रिटिश काउंसिल पिछले 15 वर्षों से अंग्रेजी सिखाने के नाम पर भारत सरकार की शिक्षा नीति पर अंग्रेजी का दबाव बनाकर करोड़ों वसूल रही है।

दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के समय बकायदा बच्चों और शिक्षकों को अंग्रेजी बोलने का प्रशिक्षण ब्रिटिश काउंसिल द्वारा दिया गया। वैसा ही खेल उसके बाद आम आदमी पार्टी की सरकार में जारी है और अब यह मौजूदा केंद्र सरकार तक भी बढ़ रहा है।

जनता से जो वायदा किया गया है, संसद में जिस शिक्षा नीति की घोषणा हुई है, उस पर अमल सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए! वरना इस छद्म नीति को इस देश और भारतीय भाषाओं के साथ खुला धोखा माना जाएगा!

#प्रेमपाल शर्मा/99713 99046/24 मार्च 2021

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