भारतीय रेल का “जीरो” फैक्टर

रेल का #जीरो फैक्टर कहीं सत्ताधारियों को ही “जीरो” न कर दे!

प्रधानमंत्री द्वारा रविवार, 17 जनवरी 2021 को गुजरात के केवड़िया रेलवे स्टेशन के लिए देश के विभिन्न भागों से कुल 8 गाड़ियों का शुभारंभ किया गया।

मुंबई, वाराणसी, अहमदाबाद, हजरत निजामुद्दीन, रीवा, चेन्नई, प्रतापनगर, वड़ोदरा इत्यादि स्थानों से केवड़िया को जोड़ने के लिए जो गाड़ियां चलाई गईं, उनमें भी “स्पेशल” अर्थात गाड़ी नंबर में “जीरो” का तड़का लगा दिया गया।

भारतीय रेल को “जीरो” करने के लिए क्या यह एक सोची-समझी साजिश की जा रही है? यह सवाल आज सभी रेल कर्मचारियों सहित देश की सर्वसामान्य जनता के मन में भी बड़ी गहराई से उठ रहा है।

जनसामान्य का सोचना है कि जब सब कुछ सामान्य हो गया है, यातायात के अन्य सभी साधनों को खोल दिया गया है, सभी बाजार और व्यवसाय खुल गए हैं, तो फिर भारतीय रेल को बीमार क्यों बनाया जा रहा है?

आम जनता के यातायात के प्रमुख साधन “रेल” को कुछ खास लोगों के लिए ही क्यों बनाया जा रहा है?

यदि पूर्व की भांति सभी नियमित गाड़ियों का संचालन नहीं करना है, तो भी जो गाड़ियां चल रही हैं, उन्हें “स्पेशल” का नाम देकर मनमाने किराए क्यों वसूले जा रहे हैं?

सच है कि जब विपक्ष कमजोर हो, तो जनसामान्य को ऐसी ही तकलीफों से गुजरना पड़ता है। कोई भी विपक्षी पार्टी इस मुद्दे को नहीं उठा रही है और न ही उनके सलाहकारों को इन मुद्दों की समझ है।

ऐसा लगता है कि पूरा विपक्ष दिमागी दिवालियापन का शिकार हो गया है। उसे सीएए, एनआरसी और किसान मुद्दे ज्यादा माकूल लग रहे हैं। विपक्ष को जनसामान्य की रोजमर्रा की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं रह गया है।

यही कारण है कि लोग सत्ता से नाखुश होते हुए भी और उचित विकल्प न होने के कारण सत्ता का ही समर्थन करने को मजबूर हैं।

तथापि इतना अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए कि सत्ता के मद में जनमानस को दरकिनार करना, सत्ताधारी पार्टी के लिए निकट भविष्य में काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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