अधिकारियों और यूनियन पदाधिकारियों की मनमानी पर लगाम लगाए रेल प्रशासन
सीनियर डीपीओ/लखनऊ एम. बी. सिंह की रॉयल विदाई, सोशल डिस्टेंसिंग की हुई ऐसी-तैसी
उत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के सीनियर डीपीओ रहे मुकेश बहादुर सिंह उर्फ एम. बी. सिंह का विदाई समारोह रॉयल तरीके से हज़रतगंज, लखनऊ के रॉयल कैफे में संपन्न हुआ। जहां उनके द्वारा उपकृत हुए उनके सभी खासमखास चापलूस न सिर्फ उपस्थित हुए, बल्कि उन्होंने अपने साहब को मालाओं से लाद दिया। संचालक ने पहले ही खास चापलूसी करते हुए साहब से अनुनय कर दिया था कि “सर, आप मालाएं उतार देते हैं, इसलिए हमारी शर्त है कि आप अंत तक मालाएं नहीं उतारेंगे।”
Farewell of #SrDPO/LKO #MBSingh
#Venue: #Royel_Cafe, #Lucknow. No social distancing. All chaploos were present
बहरहाल लखनऊ मंडल के उनके लगभग सभी मातहत वेलफेयर इंस्पेक्टर इस खास विदाई समारोह में विशेष रूप से मालाएं, गुलदस्ते और महंगे गिफ्ट लेकर उपस्थित थे और जैसी कि संचालक ने अनुनय की थी, सब ने साहब को मालाओं से लाद दिया और साहब ने भी अपना वादा निभाते हुए तब तक मालाएं अपनी गर्दन से नहीं उतारी, जब तक कि सिर तक सब पहन नहीं लीं।
ऐसा लगता है कि अधिकारियों को सिर के ऊपर तक मालाएं पहनने का यह शौक यूनियन पदाधिकारियों को देखकर ही चर्राया है।
इस विदाई समारोह में उपस्थित सिर्फ कुछ लोग ही अपना मास्क व्यवस्थित तरीके से लगाए हुए देखे जा सकते हैं, जबकि ज्यादातर लोगों ने उसे नाक या ठुड्डी के नीचे सरकाकर फैशन बना रखा है।
इसके अलावा डायस पर बैठे पूर्व, वर्तमान और निवर्तमान अधिकारियों में से सिर्फ एक महिला अधिकारी को छोड़कर अन्य किसी ने भी मास्क पहनना जरूरी नहीं समझा।
उस रिटायर्ड सीनियर डीपीओ ने भी नहीं, जिसने तीन साल पूर्व अपने रिटायरमेंट से मात्र कुछ दिन पहले लखनऊ में अपनी पोस्टिंग “मैनेज” की थी और जिसे विशेष ज्ञान देने के लिए विशेष रूप से इस मौके पर आमंत्रित किया गया था।
उसने कहा कि उसी ने एम. बी. सिंह को यहां का चार्ज दिया था और इशारों में उनसे यह भी स्वीकार कराया कि लखनऊ मंडल में बतौर सीनियर डीपीओ काम करने का “मजा” ही कुछ और है!
#Farewell: #SrDPO/LKO #MukeshBahadurSingh, now posted as SrDPO/Co/NDLS
Even in high #Covid19 period, mask has become a fashion, except one, no one has bearing mask sitting at dias
किसी अधिकारी के विदाई समारोह से किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। परंतु जब अधिकारी ही ऐसे मौकों पर सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित नहीं करेंगे, तब वह अपने मातहतों और जनसाधारण को कोई सीख कैसे दे सकते हैं? यह सवाल तो निश्चित रूप से उठेगा, क्योंकि ऐसे ही अधिकारी, जिनकी खुद की गरिमा यूनियन और फेडरेशन के कुछ खास पदाधिकारियों के चरणों में गिरवी रखी होती है, वह दूसरों को नैतिकता का पाठ ज्यादा पढ़ाते दिखाई देते हैं।
अब जहां तक एमबी साहब की बात है, तो उपरोक्त तथ्य उन पर एकदम सटीक बैठता है। लखनऊ में उनकी पोस्टिंग विशेष रूप से एक फेडरेशन के एक बड़े नेताजी ने ही करवाई थी, जहां रहते हुए उन्होंने नेताजी की सुपुत्री पर विशेष कृपादृष्टि बनाए रखी और पिछले करीब तीन सालों से नेताजी की सुपुत्री को एक दिन भी कार्यालय आने और काम करने का कष्ट नहीं दिया, बल्कि उसकी हाजिरी भी वह दूसरे से लगवाते रहे।
इसके अलावा भी उन्होंने नेताजी के कुछ और खास दलालों-चमचों-चापलूसों पर अपनी मेहरबानी दर्शाई तथा विशेष कमाऊ पदों पर पदस्थ करके उन्हें पद-प्रतिष्ठा तथा अवैध कमाई के कई सुअवसर मुहैया करवाए।
इस मौज-मस्ती का पर्याप्त लाभ उनको भी हुआ, अय्याशी भी खूब हुई और नेताजी की मेहरबानी से अब वह पूरी धन-संपन्नता के साथ दिल्ली मंडल के ज्यादा संपन्न इंचार्ज (सीनियर डीपीओ/को-ऑर्डिनेशन) का पद संभालने के लायक होकर दिल्ली में पदस्थ हो गए।
इसका आदेश उत्तर रेलवे मुख्यालय से 21 अगस्त को जारी हुआ था।
बताते हैं कि एमबी साहब की सबसे ज्यादा मेहरबानी राजेश महाजन नामक प्राणी (सीपीआई) पर रही है, जिसे पहले उन्होंने सीपीआई/रिक्रूटमेंट जैसा कमाऊ पद देकर अवैध कमाई का पूरा अवसर दिया और अब जाते-जाते उसे न सिर्फ सीएसडब्ल्यूएलआई/एमपीपी बना गए, बल्कि रिक्रूटमेंट का भी कुछ हिस्सा उसके साथ अटैच कर गए।
साथ में एक कुमारी महिला जूनियर क्लर्क को उसके न चाहते हुए भी महाजन के मातहत पदस्थापित कर गए। त्वरित प्रभाव से लागू यह आदेश एमबी साहब ने 20 जुलाई को जारी किया था।
इस खास मेहरबानी के लिए उन्हें जो मोबदला प्राप्त हुआ होगा, उसकी जानकारी तो सार्वजनिक नहीं हुई, परंतु प्रत्यक्ष तौर पर महाजन ने विदाई समारोह में एमबी साब को उनकी शक्लो-सूरत वाला एक फोटो फ्रेम जरूर भेंट किया।
जुलाई में जब उपरोक्त आदेश जारी किया गया था, तब लखनऊ मंडल कार्यालय में जोरदार हंगामा हुआ था और तमाम रेलकर्मियों ने सीनियर डीपीओ (एमबी) के विरुद्ध पक्षपात, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था।
उनका कहना था कि सीनियर डीपीओ का खास चहेता राजेश महाजन खुलेआम धन उगाही करके अब तक करोड़ों की संपत्ति बना चुका है। यह भी कहा गया कि रेलकर्मियों को ईमानदारी एवं कर्मठता का पाठ पढ़ाने वाली एक यूनियन का वह पदाधिकारी भी है। इस बारे में स्थानीय अखबारों में भी तब बहुत कुछ प्रकाशित हुआ था।
पता चला है कि डीआरएम ने किसी कदाचार की शिकायत पर महाजन को डीआरएम कार्यालय से बाहर भेज दिया था। बताते हैं कि इसकी जानकारी मिलते ही उक्त नेताजी ने तुरंत महाजन को अपनी यूनियन का सहायक महामंत्री (एजीएस) बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप डीआरएम को मजबूर होकर उसका ट्रांसफर रद्द करना पड़ा था।
इस मामले में भी प्रमुख भूमिका एमबी साहब की रही। आखिर वही तो महाजन के मुख्य संरक्षक रहे हैं। यह भी बताते हैं कि नेताजी की सरपरस्ती के चलते एमबी साहब ने लखनऊ में रहते कभी-भी डीआरएम और एडीआरएम को कोई भाव नहीं दिया।
यूनियनों की इसी दादागीरी के चलते रेलवे की प्रशासनिक व्यवस्था चौपट हुई है और चौतरफा भ्रष्टाचार एवं मनमानी का बोलबाला हुआ है। आज रेलवे की जो स्थिति है और 80% से ज्यादा सेवाओं का निजीकरण हुआ, तथा बाकी अब जो हो रहा है, वह यूनियनों और फेडरेशनों की अकर्मण्यता तथा उनके पदाधिकारियों की मनमानी एवं भ्रष्टाचार का ही दुष्परिणाम है।
मंडल के अन्य अधिकारियों के अलावा कार्मिक कैडर के भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि एमबी बहुत ही अनैतिक अधिकारी है। उन्होंने बताया, “यह सही बात है कि लखनऊ में उसकी पोस्टिंग एक फेडरेशन के एक बड़े नेताजी ने ही करवाई थी, जिससे पहले की ही तरह सीनियर डीपीओ/लखनऊ के पद पर उनके पीछे दुम हिलाने वाला प्राणी बैठा रहे और उनके चमचों-चापलूसों-दलालों को उपकृत करता रहे।
उनका कहना था कि “नेताजी के 90% जोनल/मंडल पदाधिकारी रत्ती भर भी रेल का कोई काम नहीं करते, सिर्फ दलाली-वसूली और चापलूसी में व्यस्त रहते हैं।” उनका यह भी कहना था कि “ये महाजन-वहाजन सब नेताजी के दलाल हैं, जो लाशें बेचकर सीजी (दयाधार) भर्तियों की दलाली लाते हैं और नेताजी तथा एमबी जैसे अधिकारियों की खास जरूरतों की पूर्ति करते हैं?”
उन्होंने यह भी बताया कि “इस तमाम गंदगी को ऊपर तक पहुंचाने वाला दिल्ली मंडल का एक पूर्व सीनियर डीपीओ रहा है, जिसने हर जगह गोबर में मुंह डालकर न सिर्फ चवन्नियां उठाईं, बल्कि अपने वरिष्ठों को “शबाब की आपूर्ति” करके खूब चांदी भी काटी और ऐश किया। उसकी यह सफलता देखकर अब एमबी जैसे छुटभैये भी उसके नक्शे-कदम पर चलकर उन्हीं ऊंचाईयों को पाना चाहते हैं। ऐसे में व्यवस्था का भ्रष्टाचार, कदाचार और अकर्मण्यता का शिकार होना तो तय है।
अब यह रेलमंत्री और रेल प्रशासन को सोचना है कि एमबी जैसे अधिकारियों और भ्रष्ट यूनियन पदाधिकारियों को कैसे नियंत्रित किया जाए? यदि इन पर कड़ी लगाम नहीं लगाई गई, तो निश्चित रूप से व्यवस्था में और ज्यादा गिरावट आने वाली है।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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