“रेलनीर घोटाले” का भूत – अब तक तीन ! चौथा कौन होगा???

रेलमंत्री के अंतिम निर्णय के बाद भी रेलनीर मामले में रुक नहीं रही हैं साजिशें

रेलवे बोर्ड के कुछ अफसरों द्वारा साजिशपूर्ण तरीके से बनाया गया था कथित “रेलनीर घोटाले” का मामला, जो अब उनके सिर चढ़कर बोल रहा है। इसके चलते बेवजह दो बेगुनाह अफसरों – एम. एस. चालिया और संदीप साइलस – के ऊपर पांच साल तक केस चलता रहा। अब इसका भूत इसके साजिशकर्ताओं की कंपकपी छुड़ा रहा है। परंतु जो इस गंदी और नीचतापूर्ण साजिश के असली कर्ताधर्ता हैं, वह अब भी अपनी कुटिल हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।

यह कहना थोड़ा अटपटा जरूर लगता है, परंतु सच तो यही है और इसे इस केस से जोड़कर देखा जा रहा है कि अब तक इस केस से जुड़े जो-जो लोग किसी स्वार्थ, किसी लालच या किसी अन्य वजह से इस साजिश का हिस्सा रहे, उनमें से तीन लोगों की अकाल मौत हो चुकी है। शायद ये रेल अधिकारी यह नहीं समझते कि कलियुग में कर्मों का हिसाब इसी जन्म में यहीं देना पड़ता है। 

पहली मौत हुई ब्रेन हैमरेज से तत्कालीन अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड की। ये ही वो महानुभाव थे, जिन्होंने रेलनीर केस को अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया। कहते हैं उनकी घ्राण क्षमता बहुत अच्छी थी। इन्होंने तत्कालीन रेलमंत्री को गुमराह करके एम. एस. चालिया और संदीप साइलस को रेलवे बोर्ड विजिलेंस, तीन बोर्ड मेंबर कमेटी, एवं सीवीसी की क्लियरेंस के बावजूद प्रॉसीक्यूशन सेंक्शन दिलाई थी। मजे बात ये है कि इस दस्तावेज पर उपरोक्त तत्कालीन सीआरबी और तत्कालीन रेलमंत्री दोनों का ही अप्रूवल (हस्ताक्षर) मौजूद है। 

प्रॉसीक्यूशन सेंक्शन पर तत्कालीन एक महाअड़ियल संयुक्त सचिव ने पहले तो दस्तखत करने से ये कहकर मना कर दिया था कि यह गलत है, वह इस पर अपना हस्ताक्षर नहीं करेगा और दबाव में नहीं आया। लेकिन बाद में एचएजी प्रमोशन का लालच उसे नहीं रोक पाया और दो बेगुनाह अधिकारियों को फंसाने के एक और दस्तावेज पर दस्तखत कर दिया। दूसरी मौत इसकी हुई और रिटायरमेंट के एक महीने के अंदर घर बैठे-बैठे हृदयाघात से चल बसा।

तत्पश्चात जब दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा प्रॉसीक्यूशन सेंक्शन को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि “कम्पीटेंट अथॉरिटी ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया”, तब इस फैसले को लागू नहीं किया गया, क्योंकि अगर लागू कर दिया गया होता, तो जो अधिकारी आज सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड और एडीशनल मेंबर ट्रैफिक के दोनों पदों पर एकसाथ काबिज है, वह नहीं हो पाता, क्योंकि यह पद उसके सीनियर संदीप साइलस को मिलने वाले थे। इसीलिए इस केस की पूरी साजिश का रचयिता इसी अधिकारी – सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड सह एडीशनल मेंबर ट्रैफिक (एएम/टी) – को माना जा रहा है, जो उपलब्ध तमाम सबूतों से भी जाहिर है।

तथापि अब जब 22 सितंबर 2020 को रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इस मामले को, 8 सितंबर 2020 के आसू सुरेंद्रनाथ तिवारी बनाम सीबीआई मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में अंततः दफन कर दिया और उक्त दोनों बेगुनाह अधिकारियों के साथ उचित न्याय कर दिया है, तब भी इस केस का यह मुख्य सूत्रधार अपनी तिकड़मबाजी से बाज नहीं आ रहा है और किसी भी तरह 30 सितंबर से पहले संदीप साइलस को उनका उचित पदलाभ न मिलने देने के लिए सीआरबी को तो गुमराह कर ही रहा है, बल्कि इस तरह यह रेलमंत्री के न्याय और निर्णय पर भी पानी फेरकर उन्हें भी उनकी हैसियत बताने पर तुला हुआ है।

अब इस साजिश का दूसरा चरण शुरू होता है। सेक्रेटरी एवं एएम/टी ने मरहूम रेल राज्यमंत्री के दिमाग में इतना जहर भरा कि उन्होंने हाई कोर्ट का फैसला नजरंदाज करते हुए केस को फिर प्रॉसीक्यूशन सेंक्शन के लिए बड़े ही कटु लहजे में असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अनुमोदित कर दिया और दलील यह दी कि “ट्रायल कोर्ट ही केस की असली मेरिट तय कर सकता है।” दरअसल यह लाइन सेक्रेटरी/रे.बो. सह एएम/टी की बताई हुई थी। इसके बाद इस पर उन्होंने डीओपीटी की मोहर लगवाई और फिर फाइल सीबीआई को एक बार फिर पीईडी/विजिलेंस, रेलवे बोर्ड के माध्यम से भेज दिया।

सीबीआई को क्यों भेजा, सीवीसी को क्यों नहीं? यही असली साजिश है। यह साजिश अभी भी रुकी नहीं है। रेलमंत्री के निर्णय के अगले दिन संदीप साइलस को एनएफ-एचएजी की पदोन्नति दे दी गई और आश्वासन दिया गया कि अगले दिन डीपीसी की खानापूर्ति करके उन्हें प्रॉपर एचएजी के साथ ही उनका उचित पदलाभ भी दे दिया जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ और रेल राज्यमंत्री के निधन पर जहां रेलवे के सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए, वहीं इस केस की साजिश बदस्तूर जारी है।

इस केस पर रेलमंत्री के निर्णय से अवगत कराने के लिए जो पत्र सीबीआई और सीवीसी को लिखा गया, उसे डीओपीटी को भी मार्क किया जाना चाहिए था और तब एकसाथ सभी को भेजना चाहिए था। जबकि यह जिम्मेदारी इस पूरे मामले के सूत्रधार सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड की ही थी। जाहिर है कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया। जब यह बात संज्ञान में आई, तो सामान्यतः एक अलग पत्र बनाकर वही सारा मैटर कॉपी पेस्ट करके डीओपीटी को भेज दिया जाना चाहिए था, मगर ऐसा न करके सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड ने करीब ढ़ाई पेज की नानी की चिट्ठी बनाई, जिसमें इस गंदे नाले में बह चुकी अब तक की पिछली सारी गंदगी उड़ेलते हुए यह भी लिखा गया कि केस मेरिट पर डिसाइड नहीं हुआ है और यह मेरिट ट्रायल कोर्ट ही तय कर सकता है।

इसकी जानकारी जब सीआरबी को दी गई और जब उन्होंने सेक्रेटरी से इस बारे में दरयाफ्त किया तो उन्हें पुनः गुमराह करते हुए सेक्रेटरी द्वारा साफ झूठ बोलकर बताया गया कि उक्त चिट्ठी तो डीओपीटी को डिस्पैच की जा चुकी है। जबकि सच यह नहीं था। सच ये था कि उक्त चिट्ठी तब तक डिस्पैच नहीं हुई थी। इसके बाद तब तक रेल राज्यमंत्री के निधन पर रेलवे सहित सभी केंद्रीय कार्यालयों की आधे दिन की छुट्टी हो चुकी थी, तब उक्त चिट्ठी डीओपीटी में न तो भेजी जा सकती थी और न ही वहां उसे रिसीव करने वाला कोई उपलब्ध था। तब संबंधित क्लर्क से कहा गया कि वह फाइल (ऑफिस कॉपी) पर “डिस्पैच” लिखकर चिट्ठी के भेज दिए जाने को मार्क कर दे, परंतु क्लर्क ऐसा करने से साफ मना कर घर चलता बना।

इस केस में “सब कुछ” करने का क्रेडिट लेकर अहसान जताने वाले सीआरबी महोदय भी या तो महातिकड़मी साबित हो रहे सेक्रेटरी के साथ शामिल हैं, या फिर बहुत भोले बन रहे हैं। यदि इनमें से कोई एक बात भी सही है, तो यह व्यवस्था के हित में तो कतई नहीं है। अतः सेक्रेटरी की इस तमाम तिकड़मबाजी पर अविलंब विराम लगाया जाना चाहिए और रेलमंत्री द्वारा किए गए न्याय का धरातल पर अमल होना चाहिए, अन्यथा सुप्रीम अदालत का न्याय अभी बाकी है, जिसके सामने राजा हो या रंक, सबको मुंह की खानी पड़ती है।

“रेल भवन” को “श्मशान भवन” बना रहे हैं सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड-सह-एएम/टी

1. तत्कालीन सीआरबी ब्रेन हैमरेज से चल बसे। उन्होंने अत्यंत पीड़ा सहन की!

2. तत्कालीन संयुक्त सचिव, रेलवे बोर्ड, रिटायरमेंट के एक महीने के भीतर घर बैठे हृदय गति रुकने से चल बसा!

3. माननीय रेल राज्यमंत्री, भारत सरकार भी सबसे उच्च कोटि की व्यवस्था – एम्स – में रहने के बावजूद नहीं रहे!

ध्यान देने योग्य बात है कि तमाम अन्य अधिकारी रेल भवन में हैं और अब तक लगभग 50 लाख भारतीय कोरोना की चपेट में आकर भी बचे हुए हैं। तब मौत सिर्फ दो अधिकारियों और एक मंत्री को ही क्यों निगल गई? लोगों को बड़ा अनैतिक लग सकता है ऐसा सोचना और कहना, परंतु सच का सामना तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि यही वास्तव में बुरे और पूर्वाग्रही कर्मों का प्रायश्चित है।

इन सब का एक ही गुनाह था, वह ये कि इन्होंने दो नितांत बेगुनाह अधिकारियों को ढ़केलकर मौत के दरवाजे पर खड़ा कर दिया था। उनका जीवन और सर्विस जीरो कर दी थी। जेल भेजवा दिया था बिना किसी गुनाह के। सब कुछ शीशे की तरह साफ होने के बावजूद इनका सब कुछ तबाह कर दिया गया था। इतनी अधिक मानसिक प्रताड़ना दी थी कि इन्हें आत्महत्या के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। इनके परिवारों की शांति भंग कर दी थी। बरसों की मेहनत से अर्जित उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बरबाद कर दिया गया था। 

इस सबका नतीजा क्या हुआ? तीन लोगों की असमय मौत! इसका जिम्मेदार कौन होना चाहिए? निश्चित रूप से सेक्रेटरी/रे.बो. सह एएम/टी, जो डीओपीटी सेक्रेटेरी से अपनी नजदीकी बताकर और सीआरबी महोदय को गुमराह करके उनसे जो चाहे लिखवा रहे हैं। एकसाथ एक समय में दो पदों पर कुंडली मारकर विराजमान हैं।

जुलाई 2016 में अगर तत्कालीन रेलमंत्री की क्लियरेंस मिल गई होती तो एम. एस. चालिया, एडीशनल मेंबर कमर्शियल, एमडी/सीडब्ल्यूसी अथवा मेंबर टेक्निकल – रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल से अगले महीने अक्टूबर 2020 में रिटायर होते। उनका कहना है कि अब उनके नुकसान की भरपाई वर्तमान रेलमंत्री भी नहीं कर पाएंगे, लेकिन संदीप साइलस को तो मंत्री जी सम्मानपूर्वक एडीशनल मेंबर ट्रैफिक की पोस्ट से रिटायर करवा ही सकते हैं!

“कानाफूसी.कॉम” से कई वरिष्ठ रेल अधिकारियों ने बात करते हुए इस पर अपनी खुशी जाहिर की है कि रेलमंत्री पीयूष गोयल ने न्याय करके अपना कर्म समय रहते साफ कर लिया। हालांकि उन्होंने बिना किसी का नाम लिए आगे यह भी कहा कि जिसने भी अब तक “उसका” साथ दिया, उसने भुगता है और वह असमय चला भी गया, यह बात सही है। अतः वर्तमान सीआरबी/सीईओ को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि हम सबकी औकात सिर्फ चंद सांसों की ही तो है!

“CRB did nothing on the Legal Advisor/Railway’s letter dtd. 29.08.2019 on this case and allowed Secretary/RlyBd to continue to handle this file to further his own interests. PMO should immediately suspend Secretary for direct involvement in ruining the life and career of a brother officer for his own professional interests. In fact he should be arrested. CRB who has allowed all this to happen is party to it. This is behaviour unlike an officer”, said a senior officer working with the Railway Board.

नोट: उपरोक्त मामले से संबंधित समस्त कागजात और पत्राचार “कानाफूसी.कॉम” के पास सुरक्षित है।

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