भारतीय रेल ने पुनः रचा इतिहास

मेडिकल स्टाफ के लिए पीपीई बनाया और मल्टीनेशनल कंपनियों के एकाधिकार और अहंकार को तोड़कर घरेलू तकनीक से बेहद सस्ता वेंटिलेटर बनाकर भारतीय रेल तथा देश का सिर गर्व से ऊंचा किया

देश को विश्वस्तरीय की सुविधाएं देने के नाम पर भारतीय रेल के निजीकरण की दुहाई देने वालों को आज मुंह छुपाने की जगह नहीं मिल रही है। भारतीय रेल के कर्मचारियों ने करोना वायरस की महामारी के समय अपनी सीमाओं से बाहर जाकर न सिर्फ रेलवे कोचों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया, बल्कि आज और भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर कोचों को सैनिटाइजर टनल में बदला है, जिसको जरूरत के समय कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसके साथ ही मेडिकल स्टाफ के लिए पर्सनल प्रोटेक्टर इक्विपमेंट (पीपीई) बनाकर दिया है। यहां तक कि बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के एकाधिकार और अहंकार को तोड़कर घरेलू तकनीक से बेहद सस्ता वेंटिलेटर बनाकर भारतीय रेल सहित देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है।

आज जहां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में वेंटिलेटर की कीमत 2.5 लाख रुपए से 40 लाख रुपए पड़ती है, वहीं भारतीय रेल ने मात्र 18 हजार में वेंटिलेटर तैयार किया है। अगर भारत सरकार द्वारा रेलवे को बड़ी संख्या में वेंटिलेटर का उत्पादन करने को कहा जाता है, तो यह यकीनन और भी सस्ता पड़ेगा।

रेलवे के पास इतने संसाधन तथा वेस्ट मटेरियल पड़ा है और जब रेलवे उत्पादन बंद है, ऐसे समय में केवल कुछ कर्मचारी न सिर्फ देश की, बल्कि अन्य देशों की जरूरतों को भी पूरा करने में सक्षम हैं।

इस समय जब पूरा देश घरों में बंद है, ठीक उसी समय रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला, रेल व्हील फैक्ट्री बैंगलोर, रेलवे वर्कशॉप जगाधरी और हरनौत के रेलकर्मियों ने स्वास्थ विभाग, सुरक्षा विभाग, सफाई कर्मचारियों आदि का साथ देते हुए यह उपलब्धि हासिल की है।

कपूरथला में बनाए गए वेंटिलेटर को आरसीएफ के डॉक्टरों तथा स्टाफ ने मेडिकल जरूरतों के पैमाने पर बिल्कुल योग्य बताया बताया है। परंतु शंका है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (#ICMR) इसको बहुराष्ट्रीय कंपनियों, जिनके एकाधिकार को चुनौती मिली है, के दबाव में इसको पास नहीं करेगी।

यह भी संभव है कि मोदी सरकार, जो इन कंपनियों की ही कठपुतली है, भारतीय रेल की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को इन्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले दे। ऐसा अक्सर होता है कि डेवलपमेंट के बाद उत्पादन के लिए वह तकनीक/कम्पोनेंट्स निजी कंपनी के हवाले कर दिए जातें हैं।

जैसे आरसीएफ कपूरथला ने विगत में अत्याधुनिक बायो टॉयलेट का निर्माण किया था, परंतु जैसे ही उसके डेवेलपमेंट का काम पूरा हुआ, उस सारी तकनीक को निजी कंपनियों के सुपुर्द कर दिया गया।

रेल कर्मचारी और रेलवे संगठन भारतीय रेल की इस उपलब्धि को देश के लोगों तक ले जाएं, ताकि भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी कर्मचारियों को बदनाम करने की राजनीति को उजागर किया जा सके। यही समय है जब सभी रेलकर्मी एकजुट होकर भारत सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों का वाजिब जवाब दे सकते हैं।

जारीकर्ता सर्वजीत सिंह, महासचिव, इंडियन रेलवे एम्पलाइज फेडरेशन, आरसीएफ, कपूरथला, पंजाब