गुणवत्ताविहीन निर्माण करने वाले अधिकारियों को पुनः संवेदनशील कार्य आवंटन उचित नहीं
संरक्षा और सुरक्षा की अनदेखी कर ‘पेड सीआरएस अनुमोदन’ से खोली जा रही हैं नई लाइनें
ऊपर के आदेश पर जोनल सतर्कता संगठन चले गए हैं साइलेंट मोड में !
कुछ मुखियाओं के बजाय उनकी मुखियाईनों के इशारों पर चल रहा है जोनल प्रशासनिक कामकाज
सहयोगी भूमिका में रहने वाले विभागों को आगे करने का दुष्परिणाम भुगत रही है भारतीय रेल
एक यात्री ने कहा कि जिस तरह एक किसान अपने खेत और फसल की देखभाल करता है, काश उसी तरह सरकारी अधिकारी-इंजीनियर भी मेहनत करें, तो यह देश बहुत तरक्की कर सकता है, लेकिन हम लोग घर बनाते हैं तो वह 100 वर्ष खड़ा रहता है और ये लोग बनवाते हैं तो वह 30 से 40 वर्ष में ही खंडहर हो जाता है। फिर तो मोदी जी को इन सभी पर जिम्मेदारी फिक्स करनी ही चाहिए।
पीरियोडिकल ट्रांसफर की सिर्फ प्रायोजित खानापूरी
पूरी भारतीय रेल में, निर्माण संगठनों सहित, रेलवे बोर्ड के कई-कई बार के आदेशों के बावजूद पीरियोडिकल ट्रांसफर की सिर्फ प्रायोजित खानापूरी हुई है। पूर्व मध्य रेलवे, पूर्व रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे, दक्षिण रेलवे यानि लगभग सभी जोनल रेलों में अधिकांश अधिकारियों एवं कर्मचारियों का फील्ड ऑफिस वही, ड्यूटी वही, सिर्फ हेडक्वार्टर बदल दिए गए। यहां तक कि पदोन्नति करके भी वहीं पदस्थ कर दिया गया है।
यहां बतौर उदाहरण यदि सिर्फ ईसीआर की बात की जाए, तो जिनको जातिगत या ठेकेदारों की ग्रुपिंग का साथ नहीं मिला, सिर्फ उनका ट्रांसफर दूसरी यूनिट में किया गया। अभी भी बहुत सारे ऐसे बचाए रखे गए हैं जिनकी सेवा उक्त ऑफिस में 6-12 वर्ष से अधिक हो चुकी है। डिप्टी चीफ इंजीनियर भी 3-4 वर्ष से अधिक अवधि वाले बचाए गए हैं। एईएन-एक्सईएन भी उसी फील्ड ऑफिस में 4-10 वर्ष से लगातार पदस्थ, सिर्फ सेक्शन बदल दिए गए।
प्रायोजित लूट
झूठ इसलिए बिक जाता है, क्योंकि सच को खरीदने की, सबकी औकात नहीं होती। कुछ भी करके या बहुरूपिया बनकर गलत बिलिंग या जी-हुजूरी करते हुए कुछ दिनों के लिए अपना सितारा बुलंद किया जा सकता है, लेकिन अंततः जीत तो सदैव सच्चाई की ही होती है। अब आगे से ऐसा ही कुछ करना उचित होगा।
इसी तरह इलेक्ट्रिफिकेशन के लिए रेलवे ट्रैक की गिट्टी का उपयोग ओएचई खम्भे खड़े करने के लिए फाउंडेशन बनाने के क्रम में किया जा रहा है। इसमें निर्माण विभाग से जुड़े कई पीडब्ल्यूआई की भी अधिकांश मामलों में संलिप्तता है। हेक्टोमीटर पोस्ट लगाने में भी मुफ्त में रखी गिट्टी का भरपूर उपयोग किया गया है। इस तरह यह एक प्रायोजित लूट है।
नई लाइनों का मैनेज्ड सीआरएस अनुमोदन
गुणवत्ताविहीन निर्माण कार्य के साथ कुछ अधिकारियों द्वारा जैसे-तैसे सीआरएस को मैनेज करके नई लाइनों का अनुमोदन करवाकर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है। इसमें जो जितना निम्न स्तर तक जाकर ठेकेदारों के पक्ष में कार्य सम्पादन और अर्द्धनिर्मित कार्यों का पूर्ण भुगतान कर सकता है, उसे पुरस्कृत किया जा रहा है।
एल-सेक्शन की एलाइनमेंट सेंटर से भिन्नता
पूर्व अनुमोदित एल-सेक्शन की एलाइनमेंट के सेंटर से भिन्नता कई स्थानों पर पाई गई है। जिस एलाइनमेंट पर ठेकेदारों के द्वारा मिट्टी भराई या छोटे पुलों का निर्माण कर दिया जा रहा है, उसी को सही मानकर ट्रैक बिछाकर रेल लाइनों का शुभारंभ किया गया है। यही प्रचलित कार्यपद्धति जो राष्ट्र एवं रेलवे के लिए कोढ़ साबित हो रही है। इसका उचित इलाज करना बहुत जरूरी हो गया है।
हर नई लाइन, जिसकी ओपनिंग हुई है, या होने वाली है, उसमें बनाई गई अधिकांश गोलाई प्रस्तावित अप्रूव्ड एल-सेक्शन में डाली गई गोलाई की डेटा से अलग है, जो गलत मिट्टी भराई या अथवा छोटे पुलों की सीधी लाइन के बदले सेंटर लाइन से भिन्न है, जो ठेकेदारों के पक्ष में है। उसे मिलाने के लिए नई गोलाई इंट्रोड्यूस करते हुए रेल लाइन बिछाकर निर्माण कार्य पूरा कर दिया गया। जबकि अप्रूव्ड एल-सेक्शन की सेंटर लाइन के अनुरूप ही निर्माण कार्य सुनिश्चत करने की अनिवार्यता होती है। जिसे ये सभी संबंधित अधिकारी ठेकेदारों के पक्ष में या उन्हें फायदा पहुंचाने के चक्कर में भूल गए हैं।
नए-नए अनुभवहीन निरीक्षकों और अधिकारियों को महत्वपूर्ण निर्माण कार्यों में पदस्थापना मुख्य रूप से सिर्फ धनार्जन के उद्देश्य से ही की गई है, ताकि तकनीकी बातों की समझ उन्हें नहीं हो और इस तरह वह ठेकेदारों के पक्ष में हर निर्माण कार्य को स्वीकृत करते हुए उस पर हस्ताक्षर करते जाएं।
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं!
साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं!! #PMinLokSabha
दोहरी प्रशासनिक नीति
नई लाइनों के निर्माण के दौरान ही यदि कर्तव्यनिष्ठता एवं ईमानदारी की थोड़ी भी चिंता राष्ट्रहित में होती, तो जीरो टॉलरेंस पर रिवर्स गोलाई का फंडा खत्म करवा दिया गया होता। हालात यह है कि पिछले पांच वर्षों में अथवा उससे पहले भी अधिकांश नई लाइनों का निर्माण पूरा किए जाने वाले या प्रारम्भ होने वाले प्रोजेक्ट्स में रिवर्स गोलाई लगाकर, ठेकेदारों द्वारा प्रस्तावित/अनुमोदित फार्मेशन या ब्रिज के ट्रैक सेंटर से बाहर निर्माण को मेड-गुड करने का सबसे सरल उपाय रिवर्स गोलाई मान लिया गया है।
नियमानुसार और रेल परिचालन की संरक्षा और सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी इसे हटाना जरूरी है। जबकि 5-10 से अधिक हर नई लाइन में रिवर्स गोलाई लगाकर ट्रेन परिचालन की शुरुआत कर दी जा रही है। यह अत्यंत खतरनाक स्थिति है। इसकी जमीनी जांच आवश्यक है। इसके साथ ही संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सीआरएस निरीक्षण और अनुमोदन
नई लाइन, गेज कन्वर्जन या डबलिंग के एल-सेक्शन का अप्रूवल और बाद में वर्क एक्जीक्यूशन में अधिकारियों के बार-बार निरीक्षण के दौरान तथा अंत में सीआरएस निरीक्षण और अनुमति प्रदान किए जाने से पूर्व, उक्त समय पर उपलब्ध सभी डाक्यूमेंट्स के अवलोकन में ही ऐसी सभी विसंगतियों की जांच और सुधार किया जा सकता है, लेकिन यह सब सोचने और देखने वालों की बहुत कमी है।
पिछले पांच वर्षों में ओपेन की गई नई लाइनें, डबलिंग के ट्रैक डाटा की मांग कर रिवर्स गोलाई की संख्या और उसे दिए जाने के वास्तविक कारण पूछ लिए जाएं, तो इसकी सारी सच्चाई खुलकर सबके सामने आ जाएगी, क्योंकि यहां सिर्फ अपने लिए धनार्जन ही मुख्य उद्देश्य रह गया है और इसके लिए सभी एकजुट हो जाते हैं।
सीआरएस की असीम कृपादृष्टि
सीआरएस महोदय की असीम कृपादृष्टि से सभी अर्द्धनिर्मित गुणवत्ताविहीन नई लाइनों पर निरीक्षण की खानापूर्ति-दिखावा करते हुए परिचालन के लिए फिट सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया है। वस्तुतः सीआरएस अपनी इच्छाओं को पूरा करवाने के बाद ही अपने निरीक्षण की तिथि निर्धारित करते हैं।
दरअसल सीआरएस महोदय अधिकारियों-ठेकेदारों के बीच ‘लतीफा’ बनकर रह गए हैं। यह लतीफा कुछ इस तरह है- “कि इनकी तकनीकी क्षमताओं की कमी का फायदा उठाते हुए सिर्फ इनकी आकांक्षाओं की पूर्ति करते जाओ और इनसे नई लाइनों एवं सभी छोटे-बड़े पुलों तथा अन्य निर्माणों का सीआरएस निरीक्षण करवाकर उनसे सिर्फ एक गवाह के तौर पर हस्ताक्षर ले लो, ताकि भविष्य में कुछ भी घटित होने पर गुणवत्ता पर अंगुली न उठाई जा सके।”
अधिकारियों-ठेकेदारों द्वारा अपनी-अपनी कमाई से थोड़ा-थोड़ा कंट्रीब्यूशन करके एक पोटली सीआरएस महोदय को डाक्यूमेंट्स के साथ सौंप दी जाती है और फिर निरीक्षण के दिन उनकी राजसी सेवा करके और कीमती गिफ्ट्स थमाकर संबंधित अधिकारियों – ठेकेदारों द्वारा उनसे अपनी मनचाही मुराद पूरी करवा ली जाती, बस इतनी सी बात है!
अपनी-अपनी पीठ थपथपाने की होड़
उपरोक्त पद्धति से सीआरएस अनुमोदन प्राप्त करके रेल मंत्रालय के सामने जीएम और सीएओ/कंस्ट्रक्शन भी अपनी-अपनी पीठ थपथपाने के लिए हाजिर हो जाते हैं, जबकि पीठ तो सिर्फ सीआरएस की ही थपथपाई जानी चाहिए, जो सब कुछ जानते-बूझते हुए भी जिंदा मछली निगले जा रहे हैं।
क्वालिटी नहीं प्रोडक्शन चाहिए
फील्ड कर्मचारियों की आपसी बातचीत और हंसी-मजाक में एक जुमला अक्सर सुना जाता है – “क्वालिटी नहीं, प्रोडक्शन चाहिए”! बताते हैं कि यह जुमला अधिकारियों की साप्ताहिक/मासिक बैठकों में अक्सर जोनल मुखिया द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालांकि इसके पीछे उनका अभिप्राय प्रशासनिक है, तथापि इसे उनके मातहत फील्ड अधिकारियों द्वारा कर्मचारियों के बीच उसी अंदाज में प्रयोग किए जाने से इसका अर्थ बदल जाता है।
इंजीनियरिंग वर्किंग के जानकारों और खुद कंस्ट्रक्शन में कार्यरत तमाम रेलकर्मियों का भी यही कहना है कि जोन के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को शर्म आनी चाहिए, जो अर्धनिर्मित नई लाइनों को पूरा करवाए बिना ही उन्हें “जुगाड़” टेक्नोलॉजी लगाकर सिर्फ उदघाटन करवाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। जबकि उनकी यह लापरवाही पैसेंजर सेफ्टी और रेलवे हित में नहीं है।
जोनल मुखिया की तथाकथित कुशाग्र बुद्धि के अधीन और उनके निर्देशानुसार सीएओ एवं अन्य सभी मातहत पीएचओडी नतमस्तक हैं। नई लाइन-डबलिंग का दनादन सीआरएस निरीक्षण और प्रायोजित अनुमोदन हो रहा है। “अधिकारी-ठेकेदार सिंडिकेट” के तहत ‘बैग दो-सीआरएस अनुमोदन लो’ वाली नीति का सीधा-सरल अनुसरण किया जा रहा है।
गांव में मुखिया से अधिक रुतबा मुखियाईन का होता है, यह तो सब जानते-मानते ही हैं कि यदि वहां से सिफारिश लगाई जाए, तो मुखिया साहब अपनी मुखियाईन की बात कभी नहीं टालेंगे। इसी आधार पर अधिकारियों की प्रशासनिक खनक से ज्यादा उनकी मैडमों की प्रशासनिक धमक उनके मातहतों में होती है। कुछ भी हो, यदि मैडम चाह लें, तो उनकी मर्जी, साहब के आदेश के रूप में परिणत हो जाती है।
गुणवत्तापूर्ण कार्य सम्पादन की सोच अब पुरानी बातें हो चुकी हैं। सीआरएस निरीक्षण के लिए तभी आएंगे, जब साहब के निर्देश पर उनके मातहत सीएओ उनके कार्यालय में हाजिरी लगा देंगे। तब मनचाही डेट मिल जाएगी। डाक्यूमेंट्स इत्यादि की स्क्रुटनी तो सिर्फ दिखावा मात्र रह जाती है। मंत्रालय से धोखेबाजी करते हुए सिर्फ लाइन ओपनिंग की वाहवाही के लिए सभी मिलकर धूर्ततापूर्ण सोच से गतिमानता बनाए हुए हैं।
जब तक ‘गुणवत्ता सहित उत्पादकता’ के बजाय ‘गुतवत्ता नहीं, प्रोडक्शन चाहिए’ का निर्देश है, तब तक सतर्कता संगठन को रीढ़विहीन बनकर साइलेंट मोड में ही रहने का कड़ा आदेश है। इस दरम्यान वह जांच के प्रति अपनी कोई सक्रियता नहीं दिखा सकता। इसके परिणामस्वरूप घटिया निर्माण की अधिकता और पूरा निर्माण संगठन तथा इसके सुप्रीमों भी ठेकेदारों की मुठ्ठी में समा गए हैं।
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना है तो..
निर्माण संगठनों के ठेकेदारों द्वारा गुणवत्ताविहीन कार्य सम्पादन का संरक्षण मुखियाओं के वरदहस्त से ही संभव हो पा रहा है। सोशल मीडिया में प्रगति का बखान करने के अलावा कुछ नहीं हो रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि मुखिया के निर्देश एवं चाहत से ही निर्माण संगठन में 4 वर्ष से अधिक और 10-15 वर्षों से लगातार एक ही कार्यालय या डिपो में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पदस्थापना है।पदोन्नति के बाद भी उच्च पदों पर पुनः उसी कार्यालय और कार्यभार पर पदस्थापना बरकरार है।
गुणवत्तापूर्ण कार्य की बात करने अथवा सुझाव देने वाले मातहतों की कोई सुनवाई नहीं है, बल्कि ऐसे सभी योग्य रेलकर्मी एवं अधिकारी प्रयोजित दमन झेलने को विवश हैं। अब समय आ चुका है कि मुखियाईन के निर्देश पर निर्णय लेने वाले ऐसे सभी मुखियाओं सहित चार साल से अधिक एक ही कार्यालय में पदस्थ सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का स्थानांतरण सुनिश्चित किया जाए।