सुधीर-सेंस के चलते बेपटरी हुई रेल व्यवस्था
रेल में सुधार के नाम से #सुधीरकुमार ने खान मार्केट गैंग (#KMG) का नया गढ़ बनाया, जिसे #ट्रांसफॉर्मेशन-डायरेक्टोरेट का नाम दिया। सुधीर कुमार की होशियारी इसमें रही कि हवाओं के रुख और बदलते मौसम को भाँपने में वह हमेशा अचूक रहे।
Episode-33: #रेलमंत्री जी, इतना गुस्से में क्यों हैं!
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कांग्रेस की #UPA सरकार के समय भी सुधीर कुमार बड़े निवेशों के प्रोजेक्ट्स में रहे और मोदी सरकार आने के बाद उन्होंने तुरंत आकलन किया कि मोदी सरकार की प्राथमिकता व्यवस्था सुधार की है। बात भी सही थी, 2014 में मोदी जी के नेतृत्व वाली #NDA सरकार पारदर्शिता, रिफार्म और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के वायदों पर ही सत्ता में आई थी।
यहीं मोदी जी ने पहली गलती की। मल्लिकार्जुन खरगे की मेहरबानी से स्टोरकीपर #AKMital साहब #CRB की कुर्सी पर विराजमान थे, जिन्हें रेल चलाने का कोई औपचारिक अनुभव नहीं था। ऐसे ही बॉसेस सुधीर कुमार और उनके गैंग #KMG के लिए सर्वोत्तम माने जाते रहे हैं। एक तो उन्हें काम नहीं आता था और मोदी जी का व्यवस्था ‘ट्रांसफॉर्म’ करने का निर्देश। बहुत जल्द, सुधीर कुमार जैसे अधिकारियों ने मितल साहब को शीशे में उतार लिया। मंत्री जी का #खास एक पुराना जमालपुरिया अधिकारी बन गया और उसके जरिए इस गिरोह की पहुँच सीधे मंत्री तक भी हो गई।
सुधीर कुमार ने “ट्रांसफॉर्मेशन निदेशालय” बना डाला, और इसको रेलवे बोर्ड में एक समानांतर सत्ता और पूरी तरह से रेलवे बोर्ड के सभी सदस्यों और निदेशालयों से ऊपर का दर्जा दे दिया। मंत्री और बोर्ड अध्यक्ष पूरी तरह से ट्रांसफॉर्मेशन निदेशालय के अधीन हो गए।
अब चालू हुए रेल के आधार पर #KMG के वार।
यदि मोदी सरकार के पिछले दस सालों के रिकॉर्ड को देखेंगे, तो आप पाएँगे कि इन पूरे दस सालों में चार मंत्री तो बदले, लेकिन सुधीर कुमार और उनके चेलों ने ही पूरे दस साल रेल व्यवस्था को अपने हिसाब से चलाया।
परिणाम क्या रहे-
- #IRMS नाम का कैंसर व्यवस्था में डाल दिया गया!
- रेल के वरिष्ठतम लेवल-15 के अधिकारियों को बाईपास करके – यह संख्या 300 से अधिक है – अपनी मर्जी से लेवल-16 में महाप्रबंधक और लेवल-17 में बोर्ड मेंबर बनाए गए!
- UPSC से इंजीनियरों का रिक्रूटमेंट पूरी तरह से बंद कर दिया गया पिछले पाँच सालों से, और सिविल सर्विसेस से तीन साल के अंतर के बाद एकीकृत सर्विस की भर्ती की गई!
- रेल का पूरा ध्यान एकमात्र वन्दे भारत जैसी बहुप्रचारित ट्रेन पर लग गया और गरीब को रेल के बदबूदार शौचालयों में भी स्थान नहीं मिल रहा। रेल के दोमुहे एक्सपर्ट्स इस ट्विट को देखें:
- रेल अधिकारियों की राष्ट्रीय प्रशिक्षण अकादमी – जिसे नेशनल अकादमी ऑफ इंडियन रेलवे (#NAIR) के नाम से जाना जाता है – में अधिकारियों का प्रशिक्षण बंद कर दिया गया। यह अलग बात है कि #CRB मैडम द्वारा 5 जुलाई को मासिक सेफ्टी मीटिंग में सेफ्टी सुधार के लिए ट्रेनिंग पर अधिक ध्यान देने की बात की गई। लेकिन स्वयं रेलवे की इस अकादमी से प्रशिक्षित जया वर्मा सिन्हा अपने आधीन #NAIR को बचाने में उदासीन हैं। आज पूरी अकादमी यथाकथित गतिशक्ति विश्वविद्यालय के पास चली गई है। रेल की इस अकादमी को बंद करने से रेल अधिकारियों के प्रशिक्षण और मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है!
- रेलवे बोर्ड के सदस्य, अपर सदस्य, महाप्रबंधक अब दिनों और महीनों के हिसाब से बनाए जा रहे हैं। दिसंबर 2024 में रिटायर हो रहे रविंद्र गोयल अभी कुछ दिन पहले मात्र छह महीने के लिए #MOBD बनाए गए हैं। इससे पहले सीमा कुमार को भी मात्र पाँच महीने के लिए MOBD बनाया गया था। इसके दुष्परिणाम फील्ड में दिखाई दे रहे हैं। इसीलिए रेल की सेफ्टी के हाल बहुत लचर है!
- मोबिलिटी निदेशालय को “गतिशक्ति निदेशालय” बना दिया गया। इस नए निदेशालय को कॉर्पोरेट तरीके से बने रेल भवन के तीसरे फ्लोर पर रखा गया, जहां सुधीर कुमार बतौर रेलमंत्री के सलाहकार और मेंटर तथा “डिफैक्टो रेलमंत्री” बनकर बैठा करते थे!
- DRM-जो कभी केवल सेफ्टी, सिक्योरिटी, पंक्चुअलिटी, पैसेंजर एमिनिटी और ट्रेन ऑपरेशन के लिए ही जिम्मेदार थे, उनको गति शक्ति प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी सौंपकर टेंडरिंग और कमीशनखोरी में लगा दिया गया। पहले लगभग सभी #DRM टेंडर जैसे काम #ADRM को दे देते थे, ताकि रेल परिचालन पर उनका पूरा ध्यान रहे। अब इसका ठीक उलटा हो गया है!
- डिवीजन की गति शक्ति ब्रांच वही काम कर रही है, जिसके लिए कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशन पहले से स्थापित है और #CAO/कंस्ट्रक्शन हेड क्वार्टर में बैठते हैं। #DRM पहले कंस्ट्रक्शन के काम को एक्सेप्ट करने से पहले पूरे काम को डिवीजन के हिसाब से चेक करवाते थे, लेकिन अब डीआरएम स्वयं कंस्ट्रक्शन करवा रहे हैं!
- सुधीर कुमार ने रेल को जो सुधार चाहिए थे उन पर ध्यान न देकर, केवल टेंडर, प्रोजेक्ट्स और व्यवस्था को तोड़ने में मंत्री और बोर्ड को लगा दिया। इस पर हम विस्तार से बाद में फिर लिखेंगे!
- रेलवे का विजिलेंस प्रकोष्ठ, जो पहले से ही कुछ अपवादों को छोड़कर करप्ट लोगों का अड्डा था, उसे और परिमार्जित कर दिया गया!
- रेलवे बोर्ड में अधिकारियों की संख्या घटाने का निर्णय पलट दिया गया। चेयरमैन वीके त्रिपाठी द्वारा #SECR में ट्रांसफर किए गए सदैव दिल्ली में रहे अशोक नाकरा को रेल के सेफ्टी निदेशालय में ले आया गया। अर्थात् सेफ्टी डायरेक्टोरेट को नाकारा लोगों का अड्डा बना दिया गया। इसको जस्टिफाई करने के लिए सभी विभागों के #SAG स्तर के अधिकारी रेल भवन में ले आए गए। जहाँ सेफ्टी फील्ड में बिगड़ रही है, उसको मॉनिटर करने की व्यवस्था बढ़ाई जा रही है, वहीं रेलवे बोर्ड का रेल परिचालन से कोई लेना देना नहीं रह गया!
- सुधीर कुमार, जिसके गाइडेंस में कथित तौर पर #PhD कर रहे हैं, ने अपने उसी गाइड को सिंगल टेंडर देकर सारे रेल अधिकारियों को गैर-मानक मनोवैज्ञानिक टेस्ट के लिए मजबूर कर दिया। और आश्चर्य तो यह कि सरकार के स्पष्ट निर्देशों के खिलाफ – कि टेंडर होने के बाद सारी जानकारी सार्वजनिक की जाएगी – #RTI तक में यह जानकारी नहीं दी जा रही है!
- पूरी व्यवस्था को तोड़-मरोड़कर एक अपने वास्तविक कार्य से अक्षरशः अनभिज्ञ व्यक्ति को एस्टेब्लिशमेंट अधिकारी बनाया गया, जो #IRMS में भर्ती और लेवल 16/17 को देखता था, और उसके द्वारा किए गए रेल अधिकारियों के कैरियर के कत्लेआम की एवज में उत्तर प्रदेश मेट्रो का निदेशक बनवा दिया गया, जबकि इस अधिकारी ने पाँच मिनट भी कभी बिजली के किसी रोलिंग स्टॉक पर काम नहीं किया। वहीं जितेंद्र सिंह को बड़ौदा का DRM बना दिया गया!
- विजिलेंस की त्रिमूर्ति में #RKJha और #RKRai को रिटायरमेंट के बाद पुनः नौकरी में लगा दिया गया है, जबकि इनके महाभ्रष्ट आचरण के किस्से पूरे सिस्टम को पता हैं। वहीं त्रिमूर्ति के तीसरे सदस्य अशोक कुमार को लगातार चौथी बार मंत्री जी के मातहत दूसरे मंत्रालय टेलीकॉम में विजिलेंस के पद पर लगा दिया गया है। इसी त्रिमूर्ति ने वन्दे भारत की पूरी टीम को टारगेट किया था!
मोदी जी, यदि आप अपने ईमानदार अधिकारियों को शोषण से नहीं बचा सकते, तो कौन आपके साथ खड़ा होगा? वहीं हमने बताया कि कैसे #RCF और #BLW में विजिलेंस का रैकेट चल रहा है। #BLW के #CVO को भी टेलीकॉम के #PSU में सीवीओ लगा दिया गया और जाने से पहले उन्होंने #NCR के नंबरी अधिकारी को लगातार दूसरी बार विजिलेंस का पद दे गए, वह भी मोदी जी आपके संसदीय क्षेत्र में! एक तो #रोटेशन का अभाव और विजिलेंस में लगातार दी जा रही पोस्टिंग – रेल में एक बहुत मजबूत विजिलेंस का करप्शन रैकेट बन गया है पिछले 10 सालों में!
DRM की गिरफ्तारी
जो खबर हमने ब्रेक किया – गुंटकल डिवीजन में 4 जुलाई से #CBI की रेड चल रही हैं और #DRM के गिरफ्तार होने के आसार हैं – वैसा ही हुआ। जानकार ऐसा कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं बता पा रहे हैं, कि जहाँ कुर्सी पर बैठे DRM को CBI ने अरेस्ट किया हो। समय-समय पर हमने चेताया भी था, और मंत्री जी को बताया कि कैसे DRM की रेलवे बोर्ड को सीधे कंस्ट्रक्शन के काम में जवाबदेही बना देना व्यवस्था के लिए कितना घातक है। हमने ये भी बताया कि कैसे एक ट्रैफिक के DRM, इंजीनियरिंग के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।
सोचिए, डिवीजन के काम पर कितना खराब प्रभाव पड़ा होगा, कि DRM अरेस्ट हो गया? और यह भी सोचिए कि डीआरएम की इस गिरफ्तारी का अन्य अधिकारियों के मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ेगा? पूरी रेल व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा? एक डीआरएम की करतूत पर सभी डीआरएम और वरिष्ठ रेल अधिकारियों का सिर शर्म से झुक गया है! बेशर्म-बेधड़क केवल वही हैं, जिन्हें किसी न किसी का संरक्षण प्राप्त है!
5 जुलाई को CRB का सेफ्टी रिव्यू
रेल की दुर्दशा का तमाशा #CRB की सेफ्टी रिव्यू में हर महीने पूरी रेल व्यवस्था को पिछले कुछ सालों से लाइव दिखाया जाता है।
5 जुलाई की मीटिंग को ही देखिए-
उत्तर पश्चिम रेलवे में एक ठेकेदार ने कोच में आग डिटेक्ट करने का सिस्टम ऐसे लगाया कि उसी से आग लग गई। सीआरबी की सेफ्टी रिव्यू मीटिंग में करीब आधे घंटे तक इसकी चर्चा हुई। पता चला कि इसमें बिना किसी मानक पर अमल किए यह काम किया गया था। पूरे बोर्ड के सामने, यह निकलकर आया कि जिम्मेदारी #SSE और #JE के स्तर पर निपटाकर छुट्टी पा ली गई। और तो और, कॉंट्रैक्ट वाले कोच अटेंडेंट को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया गया। क्या मजाक बना दिया है सिस्टम का! तथापि उत्तर पश्चिम रेलवे मुख्यालय के किसी सीनियर अधिकारी ने मुँह नहीं खोला, और बोर्ड यानि सीआरबी ने भी सवाल नहीं किए-कि किसने गैर-मानक की वायरिंग अप्रूव किया? कैसे किसी अधिकारी ने बिना सैंपल चेक के बिल पास किया? कैसे कोई ठेकेदार रोलिंग स्टॉक पर नॉन-स्टैण्डर्ड वायरिंग कर सकता है?
लेकिन आधे घंटे चले इस डिस्कशन में रेल के कथित इमोशनली इंटेलीजेंट लेवल-16 और लेवल-17 की पूरी कलई खुल गई।
#RDSO को तो कॉर्पोरेट मंत्रियों ने सुधारने के बजाय पूरा खत्म कर दिया, रेल अधिकारियों के पास वेंडरों से डरने और उनके अनुसार काम करने के अलावा कोई और तरीका नहीं बचा। वैसे भी इंजीनियरों की भर्ती बंद कर दी गई है और हर एक्टिविटी ठेके पर ही देने पर पूरा जोर है। डीजल इंजन परिचालन बंद हो गया, लेकिन बहुत बड़ा ऑर्गेनाइजेशन #EnHM में लगा दिया गया, मतलब, झाड़ू-पोंछा लगाने पर ज्यादा रिसोर्स हैं, बनिस्बत लोको परिचालन के! #EnHM की गतिविधि पर हमने हाल ही में लिखा है:
“EnHM: Mechanical Engineers have to do cleaning, so why become engineers?”
क्या रेल के मैकेनिकल इंजीनियर कोचों की टूटी हुई खिड़कियों को ठीक करना, कोच में गिरते पानी, और अब तो वन्दे भारत ट्रेन की छत से कोच में टपकते पानी को रोकना या उनका उचित रखरखाव करना अपनी प्राथमिकता नहीं मानते? ट्रेनों के शौचालयों की बदबू अब भारतीय रेल की सभी यात्री गाड़ियों का हस्ताक्षर बन गई है!
मोदी जी, अभी भी समय है, विचार करें, क्योंकि किसी आईएएस बाबू के वश का नहीं है रेल चलाना, अन्यथा अगली बार यह रेल मंत्रालय ही आपकी चुनावी नैया डुबाने में प्रमुख भूमिका निभाएगा! जो इस बार कमोबेश डूबते-डूबते बची है!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी