Railgate-2: समर स्पेशल ट्रेनों का अक्षम्य देरी से चलना, कहीं कोई सोची-समझी साजिश तो नहीं!

हमने #Railgate-1 में बताया कि रेलवे में कैसे व्यवस्था से अपनी स्वयं की सुख-सुविधाओं को ऊपर रखने की प्रक्रिया आज भी पुरजोर से जारी है।

#रेलगेट पार्ट-1 में हमने ये भी बताया था कि कैसे लेवल-17 के अधिकारी, #MOBD का इंटरव्यू उनके लेवल-15 के सीधे तौर से मातहत लेते हैं और लेवल-17 की इस अधिकारी को पीपावाव रेल कारपोरेशन की #MD बनाने की संस्तुति करते हैं।

हमने उसमें ये भी बताया कि 6 मई को इंटरव्यू लेने वाले इस अधिकारी का #NFR में टेन्योर पूरा किए बिना रेल भवन में लाने का आदेश 2 अप्रैल को ही निकला था। जब पैनल के अन्य वित्त विभाग के एक अधिकारी इस कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट पर आपत्ति जताते हैं, तो उनके ऊपर मेंबर फाइनेंस का दबाव आ जाता है और 3 में से इंटरव्यू पैनल के लेवल-15 के दो रेल अधिकारी रेल की लेवल-17 की अधिकारी के नाम की संस्तुति कर देते हैं।

हमने ये भी बताया कि कैसे ये #prevention of #corruption act के सेक्शन 21 और सेक्शन 11A का सीधा उल्लंघन है।

#रेलगेट पार्ट-1 से ये तो स्पष्ट हो गया कि कैसे रेल का लेवल-17, जो सलेक्टेड है, पॉलिटिकल एग्जीक्यूटिव द्वारा केवल अपनी पोस्ट रिटायरमेंट पर फोकस्ड है – अब जब स्वयं की नौकरी में और नौकरी के बाद की प्लानिंग में व्यस्त है, तो काम या सिस्टम का क्या हो रहा है, उस पर है अब ये रेलगेट पार्ट-2:

#MOBD, जिसे पहले मेंबर ट्रैफिक कहा जाता था, का काम निर्धारित समय पर रेल चलाना, ट्रेनों की पंक्चुअलिटी मेनटेन करना, और राजस्व का अर्जन करना है। अब यदि ये मानें कि प्रभाष धनसाना ने बोर्ड में पोस्टिंग का कर्ज, अपनी सीधी बॉस का पोस्ट रिटायरमेंट नौकरी की अनुशंसा करके चुका दिया। अब देखिये कि ये लेवल-17 अर्थात् ये बोर्ड मेंबर अपने सेलेक्शन का कर्ज कैसे उतार रहा है!

इस मामले को यदि आप इस वीडियो लिंक में देखेंगे-सुनेंगे, तो आपको अधिक समझ में आएगा और आनंद भी-

स्मरण रहे कि लोकसभा के आम चुनाव चल रहे हैं।

25 मई को गोरखपुर से पुणे के लिए रात्रि 11.55 पर समर स्पेशल, स्पेशल फेयर ट्रेन चलनी थी, लेकिन यह ट्रेन पुणे से ही नहीं चली। ये पुणे से रविवार 26 मई को यानि कल चलेगी और गोरखपुर 25 मई के बजाय 27 मई की देर रात या 28 मई को पहुँचने की संभावना है। गाड़ी ज्यादा नहीं, इस चुनाव के और भीषण गर्मी के मौसम में 36 घंटे से थोड़ी ज्यादा लेट हो गई है, बस..

Only 35 hours running late..

गाड़ी संख्या 01431 समर स्पेशल स्पेशल फेयर एक्सप्रेस गोरखपुर अब 39 घंटे से ज्यादा देरी से रीशेड्यूल हुई है और यात्रियों को इसकी सूचना मात्र 3-4 घंटे पहले मिल रही है।

हमने जब रैंडम चेक किया तो करीब 25-26 लंबी दूरी की गाड़ियाँ ऐसी मिलीं, जो 10-12 घंटे तक लेट चल रही हैं।

आज जब जोनल जनरल मैनेजर्स की स्थिति बड़े डीआरएम या सीनियर डीआरएम सरीखी हो गई है, तब उनकी सुनता कौन है? तथापि रेल भवन के पास सारी जानकारी रियल टाइम में आ रही है, रेल भवन और जोनों के पास सोशल मीडिया स्कैन करने के साधन भी हैं, जिनके लिए करोड़ों का माहवार भुगतान किया जा रहा है, ऐसे में समर ट्रेनों की ये देरी, ये लेट-लतीफी अक्षम्य है।

क्या चुनाव के बीच में रेल परिचालन की चरमराई व्यवस्था रेल मंत्रालय के नेतृत्व, जो IRMS के लेवल-16/17 में निहित है और जो पूरी तरह से सलेक्टेड है, उस पर गंभीर सवाल नहीं उठ रहा?

लखनऊ-बाराबंकी – 24km – 3 घंटे!

क्यों ये लेवल-17 अर्थात् बोर्ड मेंबर स्तर का अधिकारी इस बात से उदासीन है, लापरवाह है कि जिस राजनैतिक नेतृत्व ने उसे बाकी सीनियर अधिकारियों को साइडलाइन करके, बाइपास करके चुना है, उनके ‘कृपा प्रसाद’ को ये मेंबर ऐसे चुका रहा है?

वैसे ये बात तो है कि जब नेतृत्व ऐसा चुना गया है कि इनके जूनियर अधिकारी उनसे प्रेरित नहीं होते हैं और ये मेसेज नीचे तक जा चुका है कि काम करने की कोई आवश्यकता नहीं, तब व्यवस्था उदासीन तो हो ही जाएगी।

लेकिन लेवल-16/17 के #IRMS का इस तरह आम चुनावों के बीच औंधे मुँह गिरना, रेल मंत्रालय की यह बहुत बड़ी विफलता है।

रेल अधिकारियों के सोशल मीडिया ग्रुप्स में ये मजाक चल रहा है कि प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना में मात्र 75,000 करोड़ रुपये से एक करोड़ घरों पर सोलर पैनल लग जाएँगे और वहीं रेल में 8-10 लाख करोड़ खर्च करके गाड़ियों के लेट होने के, भीड़-भाड़ और गंदगी के रिकॉर्ड बन रहे हैं!

निश्चित रूप से ऐसे में #MOBD और #CRB की प्रशासनिक क्षमता और कॉम्पिटेंस पर बड़े सवाल उठ गए हैं। और इसके साथ ही इन्हें बोर्ड मेंबर बनाने वालों की भी कॉम्पिटेंस पर प्रश्नचिन्ह तो है ही?

अब आज की अराजक स्थिति में वह निर्णय, जो रेल भवन में अपनी रिटायरमेंट के बाद की नौकरियों की जुगाड़ में व्यस्त अधिकारी ले सकते थे और जनसामान्य को चुनाव और भीषण गर्मी के इस मौसम में मदद कर सकते थे, वह निम्न हैं-

  1. जिन ट्रेनों की रनिंग 12-14 घण्टे से अधिक विलंबित हो रही है उनके रेक से जुड़ी वापसी और आगे की ट्रेन के स्थान पर जोनल रेलवे में खाली खड़े कन्वेंशनल कोचों को जोड़कर अगली ट्रेन चलाई जा सकती है, जिससे यात्रियों को निर्धारित समय पर गंतव्य तक पहुँचाया जा सके।
  2. सभी समर स्पेशल गाड़ियाँ लेट-लतीफी की वजह से लगभग खाली चल रही हैं अथवा उनकी ऑक्युपेंसी अपेक्षा से बहुत कम है, जिनसे रेलवे को रेल राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है, और सारा लोड रेगुलर यानि नियमित चलने वाली ट्रेनों पर है।
  3. यदि समर स्पेशल के स्थान पर नियमित चलने वाली ट्रेनों के दो से तीन घण्टे के अंदर क्लोन ट्रेनों को चलाया जाए, तो नियमित चलने वाली गाड़ियों में लंबी वेटिंग के यात्री क्लोन ट्रेनों की सुविधा से यात्रा का लाभ ले सकेंगे।⁩
  4. अनुभवी रेल अधिकारी ये बताते हैं कि #ICF रेक पूरे सिस्टम में खड़ी हैं और रेक तथा डिब्बों की कोई कमी नहीं। क्या केंद्र सरकार को चुनाव में नुकसान पहुँचाने की यह कोई सोची-समझी साजिश तो नहीं है?
  5. रेलमंत्री जी थोड़ा सजग हो जाइए। लोग कह रहे हैं कि यदि इस चिलचिलाती गर्मी में इस भीषण लेट-लतीफी में उलझे यात्री का सारा तेल आपकी ट्रेन में निकल गया तो वह भाजपा को वोट देने से पहले बहुत बार सोचेगा। याद रहे कि अभी चुनाव का अंतिम चरण बाकी है! जिसमें प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र भी है और हाँ उसी क्षेत्र की जनता सबसे अधिक आपकी अक्षम्य देरी से चल रही ट्रेनों में अटकी पड़ी है! क्रमशः जारी..