भारतीय रेल में संरक्षा-सुरक्षा, पोस्टर-बैनर की शोभा बढ़ाने तक सीमित
स्टाफ के सही नियोजन से खत्म किया जा सकता है अनावश्यक ओवर टाइम/इंसेंटिव
भारतीय रेल में संरक्षा और सुरक्षा की बात पोस्टर-बैनर की शोभा बढ़ाने तक ही सीमित है। पूर्व मध्य रेलवे के समस्तीपुर और सोनपुर मंडल में वास्तविकता में जमीन-आसमान जितनी गहरी खाई है, जिसे कम करने के बजाय बढ़ाने में रेल प्रशासन द्वारा प्रोत्साहित किया जाता रहा है।
ओवर टाइम बंद है। नहीं दिया जा रहा। लेकिन ‘ओवर द टाइम’ काम बदस्तूर लिया जा रहा है। रनिंग स्टाफ को 72 से 96 घंटे तक हेडक्वार्टर से बाहर रखा जाता है। फिर भी अधिकारीगण ओवर टाइम कंट्रोल करने की बेमानी बात करते हैं।
रनिंग स्टाफ को घर-परिवार से दूर मिनिमम 72 घंटे से भी अधिक बाहर रोककर काम करवाया जाता है। लेकिन काम के नाम पर सिर्फ क्रू की बरबादी की जाती है। ऑपरेटिंग और अन्य किसी विभाग के कार्य की मॉनिटरिंग एवं ऑडिटिंग नहीं कराई जाती है।
इस सबके बावजूद काम होना चाहिए। फिर वह चाहे जैसे भी हो, पर होना चाहिए। फिर भी ऑपरेटिंग रेश्यो अधिक होने का बेसुरा राग अलापा जाता है।
जो काम 72 घंटे में (3 ट्रेन वर्किंग) में नहीं होता, वह औसतन 36 घंटे (2 ट्रेन वर्किंग) में होता है। इस प्रकार 72 घंटे में 4 ट्रेन वर्किंग हो जाती है। हेडक्वार्टर वापसी होने से होगा। लेकिन फिर भी जानबूझकर 72 घंटे हेडक्वार्टर से बाहर रखकर स्टाफ के मनोबल को तोड़ा जाता है। इससे बेहतर तो उन रेलवे जोनों का राजस्व लाभ है, जो अपने क्रू की 24 से 36 घंटे में हेडक्वार्टर वापसी करवा लेते हैं।
पर्याप्त संख्या में चालक दल होने के बावजूद भी रनिंग स्टाफ को सीएल में अब्सेंट कर बुक कर दिया जाता है। दिन-दिन भर खड़ा कर प्रताड़ित किया जाता है।
चीफ क्रू कंट्रोलर (सीसीसी) को कठपुतली के रूप में प्रयोग कर रनिंग स्टाफ को परेशान किया जाना कौन सी प्रशासनिक कार्य कुशलता है? सीसीसी के कार्य क्षेत्र को सीमित कर देना किस कार्य-कुशलता का प्रदर्शन होता है? यह समझ से सरे है।
रनिंग स्टाफ का कहना है कि पर्याप्त काम करने के बावजूद भी रनिंग कर्मियों को समय से छुटटी नहीं दी जाती। ऐसा करके कौन सी आदर्श कार्यशैली विकसित करना चाह रहे हैं अधिकारीगण?
भाजपा की अंधी आंधी में तमाम रेलवे यूनियन धराशाई हो चुकी हैं। इसके साथ ही ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (एआईएलआरएसए) ने भी अपनी मुख्य मांग – 36 घंटे में क्रू वापसी – को आउट कर दिया, जो कर्मचारी हित में सही नहीं है, क्योकि आज भी अनेक मंडलों में 72 घंटे में क्रू की हेडक्वार्टर वापसी का सख्ती से पालन किया जा रहा है। ऐसे कुछ मंडलों में पूर्व मध्य रेलवे का समस्तीपुर मंडल भी शामिल है।
रनिंग स्टाफ सहित अन्य सभी स्टाफ का ओवर टाइम और इंसेंटिव बंद हो सकता है, बशर्ते कि मैनपावर का सही नियोजन किया जाए। कोई स्टाफ ओवर टाइम नहीं करना चाहता। ओवर टाइम करना कुछ स्टाफ की स्वैच्छिक मजबूरी हो सकती है, परंतु अधिकतर ओवर टाइम अधिकारियों की नासमझी और स्टाफ के गलत नियोजन तथा कुछ स्टाफ का स्वार्थपूर्ण फेवर एवं उसका अनुत्पादक कार्यों में कार्यालयीन इस्तेमाल के कारण ही होता है। इसे मैनपावर के उचित नियोजन से ठीक करने की जरूरत है।