‘सिंडिकेट’ से मुक्त नहीं हो रहा हावड़ा पार्सल!
नीचे से ऊपर तक सब बन गए ‘पार्सल सिंडिकेट’ का हिस्सा और हिस्सेदार!
हावड़ा पार्सल सिंडिकेट सरगना रिटायर्ड सीएस और उसके चेलों का भ्रष्टाचार तथा उगाही बदस्तूर जारी है। हावड़ा पार्सल सिंडिकेट से मुक्त नहीं हो पा रहा है, क्योंकि मंडल से लेकर वाणिज्य मुख्यालय तक सब जगह सिंडीकेट के हिस्सेदार बैठे हैं। यह सब जीएम और एसडीजीएम के रहते/देखते हुए डीआरएम एवं सीनियर डीसीएम/हावड़ा की नाक के नीचे हो रहा है, इसीलिए लंबे समय से चल रहे इस भ्रष्ट एवं धूर्त कारोबार को रोकने हेतु न तो कोई कार्रवाई हो रही है, न ही कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है, क्योंकि ऐसा लगता है कि इस हमाम में सब नंगे हैं। यह कहना है हावड़ा पार्सल के कुछ छोटे लीज होल्डर्स और तिरस्कृत कर्मचारियों का!
उन्होंने बताया कि 12345 सरायघाट एक्सप्रेस एवं 15959 कामरूप एक्सप्रेस की एसएलआर में 4 टन की जगह संबंधित लीज होल्डर द्वारा प्रत्येक सोमवार, बुधवार, शुक्रवार को हावड़ा से 7-8 टन माल लोड किया जाता है, क्योंकि चीफ पार्सल एंड लगेज इंस्पेक्टर (सीपीएलआई) और ‘बड़ा साहब’ को प्रति एसएलआर 5-5 हजार रुपया मिलता है, बदले में दोनों ट्रेनों की वीपी की प्लेटफॉर्म लोडिंग 7-8 टन होती है, यह सब सबको पता है, पर डर से कोई कुछ बोलता नहीं है!
उन्होंने बताया कि आजकल डीआरएम साहेब स्वयं हावड़ा पार्सल सिंडिकेट को हैंडल कर रहे हैं क्योंकि कुछ दिन पहले सीपीएलआई/हावड़ा दिव्येंदु बिस्वास – ये वही हैं जिसने एक रिक्वेस्ट लेटर फॉरवर्ड करने के लिए एक बुकिंग क्लर्क से 2 लाख रुपये की डिमांड की थी – का विजिलेंस केस हुआ, उसको बचाने के लिए उसके साथ दो और निर्दोष स्टाफ को जोड़ दिया गया और जून 2021 के इस केस में तीन ट्रांसफर हुए, जिसमें दो स्टाफ को उसी दिन स्पेयर कर दिया गया था, लेकिन मुख्य आरोपी दिव्येंदु बिस्वास, सीपीएलआई/हावड़ा को 28 अक्टूबर को नए सीपीएलआई/हावड़ा द्वारा स्पेयर किया गया, मगर कुछ घंटों में ही नए सीपीएलआई को आदेश मिला कि “पूर्व सीपीएलआई बिस्वास का स्पेयर लेटर वापस करो और उनको ही पूर्ववत सीपीएलआई/हावड़ा का काम करने दो।”
बताते हैं कि यह उपरोक्त आदेश मौखिक रूप से सीनियर डीसीएम/हावड़ा ने डीआरएम/हावड़ा की सहमति से तब दिया जब तत्काल स्पेयर कर दिए जाने की सूचना पर उनके आदेश पर दिव्येंदु बिस्वास नए सीपीएलआई को लेकर उनके पास पहुंचे थे। बहरहाल, #Railwhispers ने इस बारे में जब डीआरएम/हावड़ा को उनके मोबाइल पर कॉल करके पूछने का प्रयास किया तो उन्होंने व्यस्त होने का एसएमएस देते हुए कहा कि मैसेज के माध्यम से समस्या शेयर करें। जब मैसेज कर उन्हें यह पूछा गया कि रिकार्ड में हावड़ा पार्सल से स्पेयर होने पर भी सीपीएलआई/हावड़ा दिव्येंदु बिस्वास को अब तक फिजिकली रिलीज क्यों नहीं किया गया? इस पर उन्होंने लिखा, ‘he will be released soon!’ यह बात 7 नवंबर की है, मगर आज लगभग 15 दिन बाद भी उनका यह “सून” अब तक नहीं हुआ है।
डीआरएम/हावड़ा से पहले सीनियर डीसीएम/हावड़ा से उनके मोबाइल पर जब कॉल करके यही बात पूछी गई तो वह बच्चे पढ़ाने लगे, अर्थात उनका कहना था कि “पूर्व सीपीएलआई दिव्येंदु बिस्वास को इसलिए रोका गया है कि वह नए सीपीएलआई को काम बता/समझा दें।” इस पर जब उनसे यह कहा गया कि उन्हें जब यहां से ट्रांसफर किया जाएगा तब क्या उनको भी नए सीनियर डीसीएम को काम करने की ट्रेनिंग देने के लिए कहकर रोका जाएगा?
उन्होंने इस बात का उत्तर टालते हुए एक सरासर झूठ और कहा कि “दिव्येंदु बिस्वास को अभी तक रिलीज नहीं किया गया है।” इतना झूठा सीनियर डीसीएम शायद ही भारतीय रेल के अन्य किसी डिवीजन में होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दिव्येंदु बिस्वास का वर्षों बाद हावड़ा पार्सल से बाहर ट्रांसफर जीएम/विजिलेंस अर्थात एसडीजीएम/सीवीओ/पू.रे. की सिफारिश पर ही किया गया है, परंतु अन्य तमाम मामलों की तरह ही यह भी केवल दिखावा है!
छोटे लीज होल्डर्स और तिरस्कृत कर्मचारियों का कहना है कि “वास्तव में यह झूठ डीआरएम और सीनियर डीसीएम/हावड़ा स्वयं नहीं बोल रहे हैं, बल्कि हावड़ा पार्सल से मिलने वाला मोटा पैसा उनसे यह झूठ बोलवा रहा है सारी लाज-शरम और पद की गरिमा को ताक पर रखकर!” उन्होंने यह भी कहा कि सिंडीकेट द्वारा संचालित हावड़ा पार्सल से विजिलेंस सहित ऊपर तक सभी संबंधित वाणिज्य अधिकारी उपकृत हैं।
यही कारण है कि कथित जीएम/विजिलेंस यानि एसडीजीएम/ सीवीओ/पूर्व रेलवे द्वारा ट्रांसफर का लिखित आदेश देने के बावजूद दिव्येंदु बिस्वास को हावड़ा पार्सल से फिजिकली स्पेयर नहीं किया गया, और कथित जीएम/विजिलेंस (एसडीजीएम/सीवीओ) डीआरएम एवं सीनियर डीसीएम का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं, जबकि यही एसडीजीएम तब पुराने बंद हो चुके मामलों की फाइल लेकर जीएम के पास जा धमके थे जब एक वाणिज्य कर्मचारी हावड़ा में अपनी नियुक्ति का आवेदन लेकर जीएम के पास चला गया था। यह काम वे हावड़ा के पार्सल माफिया/सिंडीकेट के निर्देश पर कर रहे थे, उसके उपकार की चाकरी के तौर पर!
उपरोक्त प्रकरण से एक बार फिर यह बात प्रमाणित होती है कि कुछ प्रतिशत कर्मचारियों/अधिकारियों को छोड़कर अधिकांश कर्मचारी/अधिकारी रेल के लिए नहीं बल्कि रेल में अपने पद का उपयोग अपने निजी स्वार्थ/हित और लाभ के लिए कर रहे हैं, रेल का काम तो वे केवल खानापूरी के लिए करते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार हावड़ा, सियालदाह और चितपुर का समस्त पार्सल बिजनेस एक निजी पार्टी को सालाना ₹160 करोड़ में सौंपा जा चुका है, परंतु इस पार्सल माफिया/सिंडीकेट के दबाव में डीआरएम सहित मंडल से लेकर मुख्यालय तक के वाणिज्य अधिकारी इसे उक्त पार्टी को सौंपने में टालमटोल कर रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि “रेलवे का पार्सल बिजनेस न केवल संरक्षा के लिए बड़ा खतरा है, बल्कि भ्रष्टाचार और यूनियनबाजी का सबसे बड़ा अड्डा भी है। इसी की बदौलत यूनियन/फेडरेशन के कुछ पदाधिकारी पार्सल पोर्टर से धन्नासेठ होकर मर्सिडीज बेंज जैसी आलीशान महंगी कारों में चल रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि “यूरोप, जापान, कोरिया, चीन, उत्तर अमेरिका कहीं भी यात्री गाड़ियों में पार्सल का लदान नहीं होता है। भारत में भी वंदे भारत एक्सप्रेस में पार्सल लदान का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। एक न एक दिन तो पार्सल का व्यापार बंद होना ही है, तो आज क्यों नहीं!”
उनका कहना है कि “पार्सल बिजनेस में क्या लागत लगती है, और उससे कितनी आय होती है, इसका लेखा-जोखा किया जाए तथा यूनियनबाजी और भ्रष्टाचार के दुर्गुण देखे जाएं, तो पैसेंजर ट्रेनों में पार्सल ढ़ोना हर तरह से घाटे का ही सौदा है। इसलिए भारतीय रेल को भी पैसेंजर ट्रेनों से पार्सल हटाकर अपने समस्त पार्सल कारोबार को अविलंब निजी हाथों में सौंप देना चाहिए!”
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