दिल्ली में हो रही रेलमंत्री की ‘परिवर्तन संगोष्ठी’ में भाग ले रहे हैं सभी जीएम/डीआरएम

संगोष्ठी में एसएजी से ऊपर के ग्रेड्स को आपस में मर्ज करने पर हो सकती है सहमति

सभी जोनल/डिवीजनल अधिकारी भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए दो दिवसीय संगोष्ठी में होंगे शामिल

आज शनिवार, 7 दिसंबर को दिल्ली में उत्तर रेलवे मुख्यालय बड़ौदा हाउस के कांफ्रेंस हाल में रेलमंत्री पीयूष गोयल की दो दिवसीय ‘परिवर्तन संगोष्ठी’ शुरू हुई है। यह संगोष्ठी कल रविवार, 8 दिसंबर को भी जारी रहेगी। संगोष्ठी में सभी जोनों और मंडलों के महाप्रबंधक एवं मंडल रेल प्रबंधकों को भी बुलाया गया है।

जबकि सभी जोनल एवं डिवीजनल अधिकारियों को अपने-अपने कार्यालयों में आज शनिवार को सुबह 9.30 बजे से दोपहर 14.30 बजे तक और रविवार को 14.30 बजे से संगोष्ठी के समापन तक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संगोष्ठी में सम्मिलित होने और वहां हो रही बातचीत को सुनने का निर्देश दिया गया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार संगोष्ठी में रेल राज्यमंत्री सुरेश आंगड़ी भी उपस्थित रहेंगे। पता चला है कि इस संगोष्ठी में एसएजी से ऊपर तक के सभी ग्रेड्स को आपस में मर्ज करने पर भी विचार किया जाएगा और इस पर रेलवे की आठों संगठित सेवाओं के अधिकारियों की सामूहिक सहमति बनाने पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

यह भी बताया गया कि संगोष्ठी में अधिकारियों के विचार जानने का प्रयास किया जाएगा और रेलवे के सुधार के लिए नए इन्नोवेटिव विचार आमंत्रित किए जाएंगे। हालांकि कई अधिकारियों का कहना है कि रेलवे में प्रशासनिक एवं कामकाज के तौर-तरीकों में सुधार की ऐसी कोशिशें पहले भी कई बार की गई हैं, मगर उनका कोई खास निष्कर्ष आजतक सामने नहीं आया है, क्योंकि सुधार के बजाय यहां बने-बनाए ढ़ांचे में अनावश्यक तोड़फोड़ की कोशिश ज्यादा नजर आ रही है।

इसके अलावा कुछ अधिकारी इस बात से भी असंतुष्ट हैं कि इस तरह के कार्यक्रमों से कोई खास निष्कर्ष तो निकलने वाला नहीं है, मगर इस बहाने उनकी दो दिनों की छुट्टी बरबाद करने की बाध्यता कर दी गई है, जो कि उनके परिवार का खास समय होता है, जिसे सप्ताह भर की व्यस्तता के बाद वे अपने परिवार और परिजनों को बमुश्किल दे पाते हैं।

अधिकारियों का मानना था कि रेलवे में आवश्यक सुधार की भरपूर राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है, जबकि दिखावा ज्यादा हो रहा है। इससे कुछ नहीं होने वाला है। उनका कहना था कि रेलवे के कामकाज और प्रशासन में शिथिलता आने का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण लंबे समय तक एक ही जगह, एक ही शहर में अधिकांश अधिकारियों की लगातार तैनाती रही है। इससे रेलवे में भारी भ्रष्टाचार, कदाचार और कामचोरी को बढ़ावा मिला है।

उनका कहना था कि हायर ग्रेड मर्जर के विवादास्पद चक्कर में पड़ने के बजाय जरूरत इस बात की है कि सबसे पहले अधिकारियों और कर्मचारियों के आवधिक स्थानांतरण पर उचित ध्यान दिया जाए और आवधिक स्थानांतरण की नीति को बिना भेदभाव या पक्षपात के कारगर तरीके से लागू किया जाए। इससे रेलकर्मियों और अधिकारियों के कामकाज एवं प्रशासन में पारदर्शिता के साथ ही पर्याप्त सक्रियता आ जाएगी। इसके अलावा भ्रष्टाचार और कदाचार पर आवश्यक लगाम लग जाएगी।

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों, जो पदोन्नत होकर ग्रुप ‘ए’ में आ चुके हैं, का भी अन्य जगहों पर जोनल ट्रांसफर सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि रेलवे में भर्ती होने से लेकर क्लास-2 एवं क्लास-1 अधिकारी बनने तक उनके एक मंडल/जोन अथवा एक ही शहर में लगातार बने रहने से न सिर्फ उनको अनुभव कम मिल पाता है, बल्कि उनमें कदाचार के मामले भी ज्यादा देखने में आए हैं। इससे उनका और उनके परिवार का भविष्य दोनों खराब होते देखा गया है। इसके अलावा क्लास-1 होने के बावजूद उनका अन्य जोनों में ट्रांसफर नहीं होने से यहां भेदभाव और पक्षपात भी होता नजर आता है।

उनका सुझाव है कि रेलकर्मियों और अधिकारियों के आवधिक ट्रांसफर के मामले में ‘पद और कार्यालय’ को इकाई मानने के बजाय ‘शहर’ को इकाई माना जाए, तभी प्राशासनिक कामकाज में आवश्यक सुधार और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की कोई उम्मीद की जा सकती है। उनका यह भी कहना था कि इसका न सिर्फ कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए, बल्कि इस मामले में किसी प्रकार की सोर्स-सिफिरिश को सख्ती से दरकिनार करके ऐसा कोई दबाव बनाने वालों पर सख्त अनुशासनिक कार्रवाई भी सुनिश्चित की जाए।

उन्होंने कहा कि ढ़ांचागत एवं बुनियादी योजनाओं को निर्धारित समय पर पूरा न करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही और उत्तरदायित्व तय किया जाना चाहिए। तभी ऐसी योजनाओं की अनावश्यक बढ़ती लागत को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कम्पलसरी रिटायरमेंट का नियम बहुत पहले से ही रहा है, परंतु सरकार द्वारा अब उसे लागू किया गया है। उसी तरह उत्तरदायित्व और जवाबदेही सुनिश्चित करने का नियम भी बहुत पहले से ही मौजूद है, मगर आज तक कोई सरकार अपनी मातहत नौकरशाही पर इसे लागू करने की पर्याप्त इच्छाशक्ति नहीं बना पाई।

इसके परिणामस्वरूप योजनाओं की लागत लगातार अरबों-खरबों रुपये तक बढ़ती रही है और देश की गाढ़ी कमाई अनावश्यक रूप से नौकरशाही की लापरवाही एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही है। अब समय आ गया है कि इस पर पर्याप्त लगाम लाई जाए और देश को विकासशील से बढ़ाकर विकसित देश के रास्ते पर लाया जाए। इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है।