लुधियाना जंक्शन पर चल रहा रिटायरिंग रूम घोटाला
निजी तौर पर रिटायरिंग रूम बुक करके मालामाल हो रहे कुछ वाणिज्य कर्मी
ग्राहकों को बताते हैं जीएम, डीआरएम तथा सीसीएम का रिश्तेदार, स्थानीय अधिकारी बने रहे अनजान
ड्यूटी के दौरान शराब, कबाब और शबाब आदि ऐश-ओ-आराम के लिए भी हो रहे इस्तेमाल रिटायरिंग रूम
उत्तर रेलवे के फिरोजपुर मंडल में भ्रष्टाचार तथा अनियमितताओं के मामलों में सबसे आगे रहने वाले लुधियाना जंक्शन स्टेशन के चेकिंग स्टाफ ने कोरोना काल में ऊपरी कमाई का एक नया रास्ता खोज लिया है। इस जंक्शन स्टेशन पर कोरोना काल में यात्रियों के लिए अधिकृत रूप से बंद किए गए रिटायरिंग रूम को निजी तौर पर किराए पर दिए जा रहे हैं। रिटायरिंग रूम को सीधे किराए पर चढ़ाने का ये गोरखधंधा यहां पिछले लगभग डेढ़ साल से चल रहा है।
हालांकि इसका खुलासा होने पर स्थानीय अधिकारी इस घोटाले से संबंधित कोई जानकारी न होने तथा सब कुछ ठीक-ठाक होने का तर्क देंगे, लेकिन अंदरखाते वे इस गड़बड़झाले से भली-भांति परिचित हैं और बराबर के हिस्सेदार भी बताए जाते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि कोरोना काल के समय यात्रियों के लिए रिटायरिंग रूम की सुविधा रेलवे द्वारा अधिकृत रूप से बंद की गई थी, जिसके बाद संबंधित स्टाफ के लिए यह ऊपरी कमाई का अच्छा खासा साधन बन गए और इन्हें ग्रुप टूरिस्ट तथा बाहरी लोगों को अनधिकृत रूप से किराए पर दिया जाने लगा।
कहने को तो रिटायरिंग रूम के ये कमरे बंद रहते हैं, लेकिन इनकी साफ-सफाई, तकिए, चादर की धुलाई तथा टॉयलेट, बाथरूम की सफाई नियमित रूप से इसलिए जारी रही, क्योंकि इनका अनधिकृत उपयोग लगातार हो रहा था और आज भी हो रहा है।
लुधियाना स्टेशन पर बने रिटायरिंग रूम की चाबियां आमतौर पर स्टेशन ड्यूटी पर तैनात चेकिंग स्टाफ के पास होती हैं, जो कि स्टेशन पर घूमते दलालों के संपर्क में रहते हैं और सौदा तय होते ही कमरे की चाबियां थमा देते हैं।
वहीं स्टेशन के बाहर कुछ होटल वाले भी “नो रूम” की स्थिति में अपने ग्राहकों को रिटायरिंग रूम में ठहराते हैं और उनसे मिलने वाला किराया ऑन ड्यूटी स्टेशन स्टाफ के साथ बांट लेते हैं।
अगर कोई आम यात्री इस संबंध में पूछताछ करता है, तो ग्राहक को जीएम, डीआरएम, सीसीएम या सीनिसर डीसीएम का रिश्तेदार बता देते हैं, जिसके चलते वह रिटायरिंग रूम में मौज-मस्ती करते अनधिकृत लोगों को उच्च अधिकारियों का रिश्तेदार समझते हैं और चुपचाप वहां से चले जाते हैं।
हालांकि हालात सामान्य होने के चलते इन कमरों की ऑफलाइन बुकिंग शुरू हो गई है, लेकिन बावजूद इसके नियमानुसार बुकिंग के लिए आने वाले यात्रियों को कोरोना का हवाला देकर वापस भेजा जा रहा है, क्योंकि स्टाफ की अधिक से अधिक कोशिश यह रहती है कि इन कमरों को निजी तौर पर किराए पर चढ़ाया जाए।
इसके अलावा ड्यूटी के दौरान शराब, शबाब और कबाब इत्यादि हर तरह के ऐश-ओ-आराम के लिए भी रिटायरिंग रूम ही इस्तेमाल हो रहे हैं। इनमें चेकिंग स्टाफ तथा सफाई कर्मियों को आराम फरमाते कभी भी देखा जा सकता है।
नाइट ड्यूटी पर तैनात चेकिंग स्टाफ तो रात के समय यहां नजर आता ही है, दिन ड्यूटी में भी इन कमरों का उपयोग स्टेशन स्टाफ द्वारा टॉयलेट तथा बाथरूम जाने के लिए किया जाता है। करीब पांच महीने पहले यहां के एक टिकट चेकर को जब उसके पारिवारिक सदस्यों ने घर से निकाल दिया था, तब वह लगातार 78 दिनों तक रिटायरिंग रूम नंबर 3 में अपना डेरा डाले हुए था।
आश्चर्य इस बात का है कि रेलवे के सरकारी रिटायरिंग रूम पर 78 दिनों तक लगातार निजी ताला लटकता रहा मगर स्थानीय अधिकारी यथा चीफ एरिया मैनेजर तथा स्टेशन डायरेक्टर सब कुछ जानते हुए भी इससे अनजान बने रहे।
जबकि लुधियाना से लगभग दो-ढ़ाई सौ किमी दूर मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय, फिरोजपुर में बैठे अधिकारियों को इस सबकी भनक भी नहीं लगी। हालांकि संपर्क किए जाने पर किसी अधिकारी का रेस्पॉन्स नहीं मिला। तथापि पता चला कि चूंकि 17 दिसंबर को पठानकोट सेक्शन का जीएम इंस्पेक्शन है, इसलिए सभी मंडल अधिकारी उसकी तैयारी में लगे हुए हैं।
जानकारों का कहना है कि “नियमानुसार किसी भी बिल्डिंग के “नॉट इन यूज” होने पर उसे सील करना आवश्यक होता है। लेकिन यहां पर ऐसा न करके रेल अधिकारियों ने कहीं न कहीं बड़ी गलती की है। इससे जहां रेलवे को राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ, वहीं कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों तथा स्थानीय अधिकारियों ने मोटा माल कमाया है और आज तक कमा रहे हैं। लेकिन जोनल विजिलेंस सहित रेलवे बोर्ड विजीलेंस और रेलवे इंटेलिजेंस को इस तरह के घोटालों/गड़बड़झालों की भनक न लगना उनकी योग्यता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।”
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