डीआरएम – अगर प्रमोशन नहीं है, तो क्या है!
डीआरएम के बाद ही संबंधित अधिकारियों को सीएसओ, एसडीजीएम बनाया जाता है, और बाद में जीएम, बोर्ड मेंबर और सीआरबी के लिए एलिजिबल माना जाता है! इसलिए डीआरएमशिप को एक प्रमोशन के रूप में ही नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा माना जाना चाहिए!
खबर है कि पूरे बैच का इंटरव्यू लेकर डीआरएम में योग्य और सक्षम अधिकारियों का चयन करने की नीति पर बोर्ड ने यह कहकर मंत्री को गुमराह किया है कि यह प्रमोशन नहीं है! इस तरह बड़ी चालाकी से चालबाजों के गुट विशेष द्वारा चयन नीति को दरकिनार करने की बड़ी गहरी चाल चली गई है। तब सवाल यह उठता है कि डीआरएम अगर प्रमोशन नहीं है, तो क्या है?
अगर थोड़ी देर के लिए ये मान भी लिया जाए कि यह प्रमोशन नहीं है, मगर डीआरएम के बाद ही संबंधित अधिकारियों को चीफ सेफ्टी ऑफीसर (सीएसओ), वरिष्ठ उप महाप्रबंधक (एसडीजीएम) बनाया जाता है, और बाद में महाप्रबंधक (जीएम), बोर्ड मेंबर और सीआरबी के लिए एलिजिबल माना जाता है! यह नहीं भूलना चाहिए और इसलिए डीआरएमशिप को एक प्रमोशन के रूप में ही नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा माना जाना चाहिए!
जानकारों का कहना है कि “अगर यह प्रमोशन नहीं है तब उसी तर्क के आधार पर सबको अर्थात पूरे बैच को बराबर का अवसर देने में क्या हर्ज है? एक ही बैच में उम्र को आधार बनाने की जगह पूरे बैच के एसएजी प्राप्त लोगों को डीआरएम पद के लिए अपनी पात्रता/योग्यता सिद्ध करने का मौका मिलना चाहिए।”
उनका यह भी कहना है कि “रेलमंत्री को बोर्ड यह भी कहकर भरमा सकता है कि कुछ सर्विसेस में बैच बहुत बड़े हैं। लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है, क्योंकि तब भी डीआरएम के चयन की प्रक्रिया उतने ही दिनों में होगी, जितने दिनों में आज कल होती है।”
हाँ, इसके लिए होने वाले इंटरव्यू में एक दो दिन ज्यादा और लग जाएगा लेकिन तब फिर जो लोग डीआरएम के लिए मिलेंगे, वही लोग भारतीय रेल का कायाकल्प करने में रेलमंत्री की ताकत बनेंगे; वरना 52 साल के क्राइटेरिया से जिस तरह के अक्षम, महातिकड़मी, शातिर और समय काटने वाले भ्रष्ट प्रोडक्ट डीआरएम के रूप में मिलते रहे हैं, और फिर वही लोग आगे जीएम, बोर्ड मेंबर तथा सीआरबी भी बनते रहें हैं।
इसका अनुभव प्रायः सभी पूर्व रेलमंत्री कर चुके हैं। और अब तंग आकर मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक राहुल जैन को जबरन छुट्टी पर भेजने की मजबूरी के चलते वर्तमान रेलमंत्री को भी इनकी पात्रता, क्षमता और इच्छाशक्ति का अहसास भली-भांति हो चुका होगा कि इनके भरोसे रेल को कितना खींचा जा सकता है!
उल्लेखनीय है कि एक बार इसी सरकार के एक रेलमंत्री ने अपनी व्यथा किसी से व्यक्त करते हुए कही थी कि “मेरे अधिकांश जीएम/डीआरएम तो कुली बनने लायक भी नहीं हैं, लेकिन मैं क्या करूँ रेल को इन्हीं से चलाना है।”
कमोबेश यही अनुभव वर्तमान रेलमंत्री को भी देर-सबेर होंगे, लेकिन वह इसको इसी तरह से सुधार सकते हैं, अगर जीएम, बोर्ड मेंबर और सीआरबी की क्वालिटी इनके डीआरएम के एंट्री लेवल पर ही सुधार दें। और मंत्री जी यह काम 52 साल की क्राइटेरिया को हटाकर पूरे बैच को अपनी योग्यता/पात्रता चयन बोर्ड के सामने सिद्ध करने का अवसर देकर कर सकते हैं।
यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तब एक तरफ रेल को योग्य और सक्षम नेतृत्व कभी नहीं मिल पाएगा, तो दूसरी तरफ “एज-प्रोफाइल” के चलते सारे अक्षम, अयोग्य, भ्रष्ट, अकर्मण्य, निकम्मे और ऐरोगेंट्स लोग ही डीआरएम बनते रहेंगे और रेल का भला कभी नहीं हो पाएगा।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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