उत्तर रेलवे निर्माण संगठन: बिना माल सप्लाई, बिना बैंक गारंटी, डिप्टी सीई/सी ने ठेकेदार को किया बड़ा भुगतान

उत्तर रेलवे निर्माण संगठन के डिप्टी चीफ इंजीनियर/ कंस्ट्रक्शन-2, शिवाजी ब्रिज, दिल्ली के कार्यालय में बड़ा घोटाला हुआ है। रोड ओवर ब्रिज (आरओबी) 524, चोड़ियाला के ठेकेदार को करीब डेढ़ करोड़ का भुगतान बिना किसी काम के और बिना कोई बैंक गारंटी जमा कराए किया गया है।

140 मीट्रिक टन मेटीरियल का 55% भुगतान ठेकेदार को किया गया, जबकि माल उक्त ठेकेदार के नाम पर नहीं था। यह माल आरडीएसओ वर्कशॉप द्वारा किसी अन्य ठेकेदार के लिए की गई खरीद पर ही भुगतान दे दिया गया।

जिन बिलों के आधार पर ठेकेदार को भुगतान किया गया, वह बिल उक्त ठेकेदार के नाम पर नहीं हैं। 55% का सारा भुगतान, शियर स्टड, मेटालाइजिंग के लिए कोई बैंक गारंटी भी नहीं ली गई, जबकि कांट्रैक्ट एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार बैंक गारंटी पहले जमा कराना अनिवार्य था।

अब अगर ठेकेदार रेलवे को माल सप्लाई न करे, तो इस डेढ़ करोड़ रुपये के भुगतान का जिम्मेदार कौन होगा? क्या संबंधित अधिकारी कमीशन के लालच में सभी नियमों को ताक पर रखकर इतना बड़ा भुगतान कर सकता है?

कांट्रैक्ट एग्रीमेंट के अनुसार ठेकेदार के नाम पर ही माल की खरीद पर और बैंक गारंटी जमा कराने के बाद ही ठेकेदार को भुगतान करने का प्रावधान था। जबकि यहां संबंधित अधिकारी ने बिना आरडीएसओ इंस्पेक्शन और बिना बैंक गारंटी जमा कराए ही 55% भुगतान कर दिया।

जानकारों के अनुसार ठेकेदार को किया गया भुगतान प्रयोग में आने वाले माल से बहुत अधिक है, क्योंकि इसमें केवल 5% वेस्टेज ली गई है, जबकि मौके पर यह वेस्टेज 15% से भी अधिक है। ऐसे में यह पूरा प्रोजेक्ट या तो भगवान भरोसे है, या फिर ठेकेदार के भरोसे पर रहेगा।

जीएसटी बिल, ई-वे बिल और कांटा पर्ची की वेरीफिकेशन होने पर इस सारे मामले की पोल खुल जाएगी।

इस मेजरमेंट बुक (एमबी) के पेज नं. 4 और 5
में बिल नंबर ठेकेदार के नहीं हैं। जबकि मेटीरियल की बिलिंग भी आरडीएसओ वर्कशॉप के नाम पर है। ठेकेदार के नाम पर कुछ भी नहीं है, यह निश्चित तौर पर बताया जा रहा है।

इससे जाहिर होता है कि माल “पेसिफिक” के नाम खरीदा गया। ऐसे में जो माल ठेकेदार के नाम हुआ ही नहीं, उसका भुगतान ठेकेदार को कैसे दिया जाता जा सकता है?

जानकारों का कहना है कि इस मामले में जीएसटी का भी घोटाला हुआ है। एक तरह से यह फाइनेंशियल फ्राड भी है, क्योंकि जब माल ठेकेदार के नाम खरीदा ही नहीं गया, तो कमीशन के चक्कर में डिप्टी सीई/सी शिवाजी ब्रिज ने डेढ़ करोड़ का भुगतान किस आधार पर किया?

आरडीएसओ इंस्पेक्शन कब हुआ? और फैब्रिकेशन का भुगतान पहले ही कर दिया गया? जानकारों का कहना है कि सुनने वालों के कान में रूई नहीं ठूंस सकते, क्योंकि बताते हैं कि 12% कमीशन/रिश्वत के आगे कांट्रैक्ट की सभी कंडीशंस ताक पर रख दी गईं।

उनका यह भी कहना है कि जब बिल में ठेकेदार का नाम नहीं है, तो मेजरमेंट बुक में इस बिल की एंट्री कैसे की गई?

Fabrication payment release on December 2020 and RDSO inspection in May 2021.

जानकारों का कहना है कि विजिलेंस टीम को जल्द से जल्द साइट का निरीक्षण करना चाहिए, क्योंकि साइट पर अभी तक मेटीरियल पहुचा नहीं है। ट्रांसपोर्टेशन बिल सहित सभी बिलों को हस्तगत करके पूरे मामले की गहराई से जांच की जानी चाहिए। उनका यह भी कहना है कि 3-12-2020 तक कोई भी बो-स्टिंग गर्डर का मेटीरियल साइट पर नहीं आया था।

जानकारों ने बताया कि यह बो-स्टिंग गर्डर का मेटीरियल आज 11 नवंबर की तारीख तक फैक्ट्री में ही पड़ा हुआ है। किस लोभ-लालच में संबंधित अधिकारी ने बिना बैंक गारंटी के भुगतान रिलीज कर दिया?

फैक्ट्री में पड़ा हुआ माल

खेल समझिए – डिप्टी सीई/सी-2, शिवाजी ब्रिज ने उस कंपनी के बिल के आधार पर ठेकेदार को भुगतान किया, जिसका रेलवे से कोई सीधा संबंध नहीं था। यदि इस प्रकार के भुगतान को जायज ठहराया जाता है, तो कल सभी ठेकेदार उन बिल पर भुगतान मांगेंगे, जो सप्लायर और मैन्युफैक्चरर से माल खरीदते हैं!

#Railwhispers की ट्वीट्स के बाद रेलवे साइट पर आनन-फानन में अधिकारी द्वारा 20 टन माल मंगवाया गया। अर्थात जब पोल खुलते देखा तब यह मेटीरियल साइट पर आनन-फानन में मंगवाया गया। उत्तर रेलवे और रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा इस पूरे मामले की निष्पक्ष जाँच किए जाने की अपेक्षा की जा रही है।

रेल प्रशासन से यह भी अपेक्षा की जाती है कि निष्पक्ष जांच के लिए यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी को अविलंब अन्यत्र ट्रांसफर किया जाए।

सभी संबंधित डाक्यूमेंट्स #Railwhispers के पास सुरक्षित हैं!

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