पूर्व मध्य रेलवे में पेंडिंग हो गई अधिकारियों/कर्मचारियों के रोटेशनल ट्रांसफर की फाइल!
पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक अनुपम शर्मा कठिन परिश्रम करते हुए लंबे समय से यहां की बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के लिए अपनी संपूर्ण प्रशासनिक क्षमता का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वह नियमानुसार काम करने वाले अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं। उनका मानना है कि जब बोर्ड और मंत्री उनसे सीधे जवाब-तलब करते हैं, तो वह भी अपने मातहत विभाग प्रमुखों से ही जवाब और फीडबैक की अपेक्षा रखते हैं। विभाग प्रमुखों द्वारा जूनियर अधिकारियों को जवाब देने के लिए आगे करना उन्हें कतई स्वीकार्य नहीं है।
तथापि पूर्व मध्य रेलवे में विभाग प्रमुखों द्वारा अपने मातहतों के आवधिक स्थानांतरण के मामले में कोताही बरती जा रही है। यहां एक पद पर तीन वर्ष से अधिक समय से पदस्थापित अधिकारियों-कर्मचारियों की जीरो टॉलरेंस पर पारदर्शिता के साथ स्थानांतरण की अपेक्षा सभी कर रहे थे। लेकिन जो फाइल पिछले लगभग 6 महीनों से प्रोसेस में थी और फाइनल पोजीशन में भी लगभग पहुंच गई थी, वह अचानक पेंडिंग हो गई। ऐसा क्यों हुआ, यह फिलहाल किसी को नहीं पता।
मुख्यालय बदला, कार्यालय वही रहा
बताते हैं कि रोटेशनल ट्रांसफर की इस तैयारी में जो लोग सिस्टम में अधिकांश 3-5-7-10-16 वर्षों से भी अधिक समय से एक ही कार्यालय – प्रायोजित रूप से कुछ का सिर्फ मुख्यालय बदला गया, लेकिन कार्यालय वही रहा – के अधीन अब तक वहीं पदस्थापित हैं, उन सभी का स्थानांतरण सुनिश्चित होना था, लेकिन पुनः नए सीएओ को इस संबंध में अंधेरे में रखते हुए सिर्फ एक ट्रांसफर आदेश, वह भी जिनकी 2 वर्ष भी सेवा अवधि पूरी नहीं हुई थी, निकाला गया। यह सब न्यायोचित प्रतीत नहीं हो रहा है।
जानकारों का मानना है कि महाप्रबंधक और सीएओ/सी को यदि निर्धारित समय सीमा में सभी निर्माण कार्यों का गुणवत्तापूर्ण संपादन सुनिश्चित करना है, तो सर्वप्रथम निर्धारित समय पर अधिकारियों और कर्मचारियों का रोटेशनल ट्रांसफर भी सुनिश्चित करना चाहिए।
गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन हो, तभी उद्देश्य अभिनंदनीय
जानकारों का यह भी कहना है कि राष्ट्रहित-रेलहित में गुणवत्ता के साथ-साथ कार्य पद्धतियों की पक्षधरता वाले सभी अधिकारियों और मातहतों को यह उम्मीद है कि चूँकि वर्तमान महाप्रबंधक एवं प्रशासनिक अधिकारियों का मूलमंत्र गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य संपादन करना है, और उनमें सतत प्रगति भी सुनिश्चित करनी है, लेकिन प्रोजेक्ट्स के अनुमोदित ‘एल’ सेक्शन के ही अनुरूप गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन सुनिश्चित हो, तभी उनका उद्देश्य अभिनंदनीय होगा।
नीचे के कर्मचारियों का कहना है कि हम सभी को इस बात की प्रतीक्षा है कि कब दीमक रूपी लंबे समय से एक ही जगह पदस्थापित इंजीनियरों और कार्यालय के टेंडर डीलिंग और बिल बनाने/पास करने वाले बाबुओं का भी रोटेशन ट्रांसफर भौतिक रूप में देखने-सुनने को मिलेगा? चूंकि एक ही कार्यालय में पदस्थापित होकर इन सभी की व्यवहार्यता हिटलरशाही वाली है। इसमें अधिकांश ठेकेदारों के पक्षधर प्रायोजित कार्यपद्धति में ठेकेदारों के हितैषी के रूप में कार्य कर रहे हैं। इसलिए इन सभी का स्थानांतरण तुरंत और अनिवार्य रूप से सुनिश्चित होना चाहिए।
उनका कहना है कि यह सब सिस्टम में बरबादी और करप्शन फैला रहे हैं और अफवाह फैला रहे हैं कि उक्त अधिकारियों के स्थानांतरण से चल रहे प्रोजेक्ट्स और कार्यों में गतिरोध आ जाएगा। जबकि वास्तविकता यह है कि ऐसे अधिकांश लोगों का स्थानांतरण हो जाने से गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन सुनिश्चित होगा और ठेकेदारों के साथ इनका भ्रष्ट गठजोड़ खत्म हो जाएगा। यही सच है, बाकी प्रशासन मर्जी!
क्षेत्राधिकार का अजीबो-गरीब बंटवारा
पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में अधिकारियों के बीच कार्य क्षेत्राधिकार का बंटवारा भी अजीबो-गरीब तरीके से चल रहा है। इसमें कोई सामानता और निष्पक्षता नहीं है। किसी के पास 2-3 प्रोजेक्ट्स का कार्यभार है, तो किसी के अधिकार में कुछ भी नहीं। जबकि भौतिक रूप से एक प्रोजेक्ट से अधिक के कार्यभार का निर्वहन अधिकांश से नियमों के अधीन नहीं हो पाता है। लेकिन प्रायोजित रूप से उच्च अधिकारियों के जातिगत ग्रुप या उनके चाटुकारों के रूप में चल रहा है।
इसके अलावा राजशाही आवभगत (चाटुकारिता) के सभी प्रचलित तौर-तरीके अपनाकर वह अपनी कार्य क्षमताओं से अधिक कार्यभार लेने में सफल हो रहे हैं। ऐसे में जब देने वालों का स्थानांतरण होगा, तभी यह सब रुक सकता है। फिलहाल तो कार्य क्षेत्राधिकार का बंटवारा और नए टेंडर की भी मनमानी तरीके से स्वीकार्यता हो रही है।
स्थानांतरण की खबर आते ही चीजों का घालमेल
स्थानांतरण होने की स्थिति में चार्ज मुक्त करने से पहले कमीशन के लालच में देर तक कार्यालय में बैठकर सब फाइनल किया जाता है। इसके चलते जिन अधिकारियों की पदस्थापना होती है, उन्हें अगले 6-8 माह उन सभी चीजों को सुधारने और समझने में ही निकल जाते हैं। तब कहीं जाकर आगे उनका कार्य शुरू हो पाता है।
अधिकारियों के स्थानांतरण आदेश के संज्ञान के बाद चार्ज छोड़ने के दिन या एक सप्ताह पूर्व तक अनुशंसा पर सीएओ/सी द्वारा पुनर्विचार या समीक्षा क्यों नहीं की जाती? आखिर यह क्यों नहीं सोचा जाता कि इसके पीछे उद्देश्य क्या है? क्या ऐसा अन्य के लिए परेशानी पैदा हो, यह सोचकर किया जाता है?
दंड भुगत रहे लोग उसी कार्य पर पदस्थापित
आश्चर्य इस बात का है कि जांच एजेंसियों से दंड भुगत रहे लोग वर्षों से भी अधिक समय से पुनः उसी कार्य में पदस्थापित हैं! यह जांच का विषय है कि ऐसे लोगों के पदस्थापित रहने से वह कौन लोग हैं जो इससे लाभान्वित हो रहे हैं?
कुछ ऐसे अधिकारी भी यहां मौजूद हैं जो 12-15 साल बाद निर्माण संगठन से निकलकर यहीं मुख्यालय में बैठ गए हैं और कभी बाहर नहीं गए हैं, मगर मुख्यालय में बैठकर चीजों को आज भी नियंत्रित करके लाभान्वित हो रहे हैं और अपनी जाति दिखाते हुए अपने बिरादर कांट्रेक्टरों एवं कर्मचारियों को भी लाभान्वित कर रहे हैं।
जातिगत आधार पर अधिक कार्य आवंटन
जातिगत ग्रुप बनाकर नए अधिकारियों को अधिक कार्य आवंटन किया जाता है। जबकि अनुभवी वरिष्ठ अधिकारियों को कम कार्य आवंटन करने का औचित्य क्या है? इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं है। जब फंड नहीं है, या प्रोजेक्ट कम हैं, तो पुराने कार्यालयों को अन्य में मर्ज करने में आखिर विलंब क्यों किया जा रहा है?
एक अधिकारी विशेष को अतिरिक्त कार्यालय का कार्य प्रभारी क्यों बनाकर रखा गया है? और जब यह सही है, तो उक्त कार्यालयों को आपस में मर्ज कर देना ही राष्ट्र और रेल हित में है।
गैर-अनुभवी कर्मचारी बनते हैं अधिकारी
यहां एक एईएन 60-100 किमी के कार्यक्षेत्र का प्रभारी है। वह 6 कार्य निरीक्षकों का इंचार्ज भी है। मगर उसके पास न तो आईओडब्ल्यू या पीडब्ल्यूआई के पद पर डिपार्टमेंटल पदोन्नति से पूर्व कार्य संपादन का अनुभव है, और न ही 2 या 3 वर्ष का एईएन में कार्य करने का कोई अनुभव है। ऐसे लोगों को यहां विस्तृत कार्य क्षेत्राधिकार सौंपा गया है।
जबकि दूसरी तरफ यूपीएससी से नियुक्त सिविल इंजीनियरिंग अधिकारियों, जिसमें एक्सईएन या सीनियर एक्सईएन, जिनका जाति आधारित जुगाड़ नहीं होता, या जान-पहचान वाले सगे-संबंधी रेलवे में उच्च पदों पर नहीं हैं, या जो गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन में निष्ठा रखते हुए निर्माण कार्य पूरा करने वाले होते हैं, उनको कार्यालय में पदस्थापित किया जाता है, और उनका कार्य क्षेत्राधिकार बहुत सीमित रखा जाता है।
गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन के लिए आवश्यक है अनुभव
प्रशासनिक दृष्टि से इस सब पर महाप्रबंधक और मंत्री महोदय को अवश्य विचार करना चाहिए। कार्य आवंटन के समय पूर्व कार्य अनुभव के आधार पर ही इंचार्ज कार्य निरीक्षकों एवं पी-वे निरीक्षकों को पदस्थापित किया जाना चाहिए। इससे रेलवे का गुणवत्तापूर्ण कार्य सुनिश्चित हो सकेगा। इस पर महाप्रबंधक और अन्य संबंधित अधिकारियों को अवश्य विचार करना चाहिए।
इसके साथ ही अन्य जोनल रेलों और डिवीजनों में भी जो अधिकारी-कर्मचारी लंबे समय अथवा 3-4 साल से अधिक समय से एक ही पद पर पदस्थापित हैं, उन्हें अविलंब दर-बदर किया जाना चाहिए। जब तक यह प्रक्रिया हर साल निर्धारित समय पर अमल में नहीं लाई जाएगी, तब तक न तो भ्रष्टाचार पर अपेक्षित लगाम कसी जा सकेगी, और न ही प्रधानमंत्री के कथनानुरूप भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था बनाई जा सकती है। क्रमशः
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