चिकित्सा के नाम पर रेल मंत्रालय हो रहा कंगाल

रेलमंत्री के संज्ञान में पहुंचने नहीं दिया जा रहा इस प्रकार का कोई भी मामला

रेलवे बोर्ड को भी उपलब्ध कराई जा रही हैं अधूरी और गलत सूचनाएं और डाटा

जोनल एवं मंडल मुख्यालयों में वर्षों से जमे अधिकारी नीचे तक बैठा रखे हैं अपने एजेंट

किसी भी शिकायत और जांच को नीचे स्तर पर ही करा देते हैं निष्क्रिय

उमेश शर्मा, प्रयागराज ब्यूरो: उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय तथा मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय झांसी,  आगरा, प्रयागराज में वर्षों से एक ही स्थान पर टिके कुछ अधिकारी और कर्मचारी रेलवे के लिए कैंसर साबित हो रहे हैं। यह रेलवे को दीमक की तरह चाट रहे हैं। चिकित्सा विभाग में कोरोना, डेंगु आदि बीमारियों के नाम पर इतने बड़े-बड़े रेल अस्पताल मौजूद होने के बावजूद सभी प्रकार की सुविधाओं से लैस आधुनिक मशीन मंगाने की होड़, लंबे-चौड़े स्टाफ की संख्या ढ़ाई-तीन लाख प्रतिमाह वेतन पाने वाले डॉक्टर, जो रेल में आज भी मौजूद हैं, इन सभी को भ्रष्टाचार में लिप्त करके निकम्मा और कामचोर बना दिया है।

इसके कारण चिकित्सा विभाग का पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। प्राइवेट अस्पतालों का अनुबंध करके सर्दी जुकाम बुखार उल्टी दस्त के मरीजों को केवल रेफर करने का माध्यम बनकर रह गए हैं रेलवे के भारी-भरकम अस्पताल। रेलवे के अधिकांश डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करने में व्यस्त हैं और स्टाफ बहुत खुश है।

रेलवे अस्पतालों का सारा काम सीएमपी डॉक्टरों के कंधों पर है और ढ़ाई-ढ़ाई लाख के सफेद घोड़े काबुली चने खा रहे हैं। मंडल की छोटी से छोटी हेल्थ यूनिट का एक माह (अप्रैल 2021) का बिल 35 लाख रुपये है, तो ऐसी चार हेल्थ यूनिटों का बिल संभवतः कम से कम एक करोड़ रुपए के आसपास होगा। इस तरह जब एक छोटे से शहर के बिल का भुगतान 12 करोड़ रुपये वार्षिक हो रहा है तब बड़े शहरों का क्या आलम होगा?

अवैध सिक-फिट, अनावश्यक चिकित्सा परीक्षण, मिलीभगत से मेडिकल डिकैटेगराइजेशन, सीएचआई से अवैध वसूली, अच्छी-खासी मशीनों को कंडम करके नई मशीनों की अनावश्यक खरीद-फरोख्त में कुछ डॉक्टरों के लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं।

कुछ पीसीएमडी केवल काठ के उल्लू बनकर बैठे हैं। उन्हें किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि उनसे कोई पूछने वाला नहीं है। बासठ साल पार करके जो तथाकथित सीनियर डॉक्टरों को कथित विशेषज्ञ के तौर पर क्लीनिकल सेवा में लगाया गया है, वह पूरी तरह से बेकार साबित हुए हैं, क्योंकि उनमें से कुछेक अपवादों को छोड़कर बाकी कोई एक ढ़ेले भर का भी काम नहीं करता।

इसी तरह रेलवे में दवाईयों की खरीद और लोकल परचेज (एलपी) में दिन-प्रतिदिन करोड़ों का खर्च बढ़ता जा रहा है, जो रेलवे के लिए चिंता का विषय होना चाहिए । डॉक्टर अपने पेशे को छोड़कर इन्हीं सब भ्रष्ट क्रिया-कलापों में व्यस्त हैं।

अतः बीसों साल से एक ही जगह और एक ही जोनल एवं मंडल मुख्यालय में जमे अधिकारियों और कर्मचारियों का स्थानांतरण अविलंब अन्यत्र किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

इसके साथ ही बासठ साल की आयु-सीमा पार कर चुके तथाकथित डॉक्टरों की सेवाएं तुरंत समाप्त कर उन्हें अविलंब घर भेजा जाए।

अगर रेलवे चिकित्सा सेवा आगे जारी रखना है, तो सभी साठ-बासठ साल वालों को घर भेजकर उनकी जगह कांट्रैक्ट डॉक्टरों को नियुक्त किया जाना चाहिए।

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