सीबीआई ने जारी की संशोधित विज्ञप्ति, फिलहाल फेल हुई जुगाड़ियों की जुगुति

#Railwhispers द्वारा 24 अगस्त को “तो क्या मैनेज की जाती है प्रतिनियुक्ति भी?” शीर्षक से प्रकाशित खबर का फौरन संज्ञान लेते हुए सीबीआई ने बहुत सराहनीय कदम उठाया है और अपनी प्रतिनियुक्ति वाली विज्ञप्ति में संशोधन किया है।

लगता है सीबीआई अब सही नेतृत्व के हाथों में है, और यह ऐसे कर्तव्यनिष्ठ, निष्ठावान तथा संवेदनशील अधिकारी हैं, जो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त तथ्यों का संज्ञान लेकर त्रुटि को सुधारने में हिचकते नहीं हैं। इसका उदाहरण यह एसपी/सीबीआई के लिए फिर से निकाली गई विज्ञप्ति है, जो पहले रेलवे के टिपिकल तरीके से निकाली गई थी, जिसमें मात्र दो कैडर स्टोर (#IRSS) और एसएंडटी (#IRSSE) के अफसरों को ही एलिजिबल माना गया था।

जिस तरह से रेलवे के प्रायः सभी पीएसयू में उच्च पदों पर प्रतिनियुक्ति के लिए कैडर विशेष की ही एलिजिबिलिटी सुनिश्चित कर दी जाती है, उसी तरह भ्रष्टाचार से रेलवे को खोखला कर चुके विभागों का माफिया तंत्र एक और खुला चारागाह तैयार करके रखता है, जिसमें फिर वे छक कर चरते हैं। यही नीति और जाल सीबीआई के साथ भी बिछाया जा चुका था, लेकिन उनके दुर्भाग्य से यह खेल अभी तो फेल हो गया, जिसके लिये सीबीआई को बहुत-बहुत साधुवाद है!

फिर भी सीबीआई से आग्रह है कि रेलवे के अफसरशाही वाले माफिया तंत्र को कम न समझे, क्योंकि ये इतने घाघ होते हैं कि अंत तक अपना खेल खेलना नहीं छोड़ते हैं, और अपने आदमी को ही प्लांट करके मानते हैं। इसलिए सीबीआई को प्रतिनियुक्तियों के मामलों में, खासतौर पर रेलवे वालों से, अंत तक चौकन्ना रहना चाहिए।

बेहतर तो यह होता कि रेलवे के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा केवल नोटिफिकेशन कराया जाता, लेकिन आवेदन कैंडिडेट से सीधे मंगाया जाता और शॉर्ट लिस्टिंग करने के बाद या फिर सीधे 8-10 कैंडिडेट्स की सारी चयन प्रक्रिया, साक्षात्कार आदि पूरा कर लेने के बाद उनमें से किसी एक का, जिसको लेना होता, उसका रेलवे से क्लीयरेंस ले लिया जाता।

जहां तक विजिलेंस क्लीयरेंस की बात है, वह भी बाद में देखी जा सकती है, और 8-10 चयनित में जो हर तरह से क्लीयर लगता, उसमें से एक को चुनना सीबीआई जैसी घाघ संस्था के लिए कोई मुश्किल काम नहीं होता।

ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि वर्तमान में रेलवे बोर्ड विजिलेंस का जो मुखिया है, वह सीबीआई में अपने एक इंस्पेक्टर को प्लांट करने के लिए इतना जुनूनी है कि किसी भी सीमा तक जा सकता है।

दिल्ली में उत्तर रेलवे से इसकी दाल नहीं गल पाई, तो अब पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर/बरेली मंडल में अपनी ब्रांच अफसरी के दिनों के अपने उसी उगाही एजेंट को आरएसओ लखनऊ बनाने के लिए बुरी तरह बेचैन है।

तो इस तरह के अफसर, जो खुद सीबीआई के लिए एक इंटरेस्टिंग केस हो सकते हैं, जब अपने खासमखास को आरएसओ बनाने के लिए किसी भी तरह का प्रयास कर, किसी भी स्तर तक जा सकते हैं, तो आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एसपी/सीबीआई के लिए पीईडी, विजिलेंस रेलवे बोर्ड और इन सरीखे अन्य रिंग लीडर क्या-क्या प्रयास करेंगे!

ऐसे में हो सकता है कि जो कैंडिडेट अप्लाई करें, उनके ऊपर ये कुछ ऐसा कर दें कि वह या तो अप्लाई ही न कर पाए, और इनके इशारे पर उसका इंचार्ज/सीनियर अफसर उसकी अप्लीकेशन फारवर्ड ही न करे, या फिर ये और इनकी तरह के दूसरे रिंग लीडर उसको निशाने पर लेकर उस पर कोई कंप्लेंट करवाकर केस बना दें, या उसे क्लीयरेंस न देने का कोई बहाना बना लें, या फिर ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनका सर्विस रिकॉर्ड ही खराब करवा दें, जिससे भविष्य में इन लोगो के आदमी के अलावा कोई सचमुच का ईमानदार और तेजतर्रार अधिकारी  सीबीआई में जा ही न पाए। इन जैसों के पास संभावनाएं बहुत सारी तैयार रहती हैं।

ये बातें अतिरंजित उनको लग सकती हैं, जो अति घाघ और अति भ्रष्ट रेल अधिकारियों को ठीक से पहचानते नहीं हैं। पर शायद सीबीआई को यह अति न लगे, क्योंकि सीबीआई इनमें से शतांश को आए दिन लाखों-करोड़ों रुपये घूस लेते रंगे हाथ पकड़ती है और कई बार तो 23 किलो सोना के साथ भी ऐसे अधिकारी को पकड़ती है, जो विवाहित भी नहीं है, लेकिन यह सब कलयुग के कौतुक रेल अधिकारियों में सामान्य बात है।

विज्ञप्ति में अविलंब संशोधन के लिए सीबीआई को एक बार पुनः साधुवाद!

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