तो क्या मैनेज की जाती है प्रतिनियुक्ति भी?

सीबीआई को अपनी छवि बचाने के लिए इसमें संशोधन करना चाहिए, क्योंकि सीबीआई को अपनी साख को बचाने के लिए भी और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भी ऐसा करना आवश्यक है!

क्या भारतीय रेल में कोई भी स्टोर अथवा एसएंडटी का ब्रांच अफसर या ब्रांच ऑफीसरी किया व्यक्ति कसम खाने के लिए भी ईमानदार होगा? और बिना फील्ड में काम किए उसे फील्ड की कितनी व्यवहारिक जानकारी होगी, वह भी “खेल” की? तो क्या इस तरह से भी प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) मैनेज की जाती है?

अगर ऐसा वास्तव में नहीं है, तो फिर सीबीआई को ऐसा कौन सलाहकार मिला, जो एक पोस्ट विशेष के लिए, जिसमें सिर्फ “आईटी और प्रोक्योरमेंट मैटर” लग जाने से, स्टोर अफसर या एसएंडटी अफसर को ही इसके लायक समझा गया?

इससे सीबीआई की भी काम और जिम्मेदारी के प्रति गंभीरता समझ में आती है। कम से कम वे यही आंकड़े देख लेते कि बतौर विजिलेंस अफसर ये स्टोर अफसर या एसएंडटी अफसर अपने विभाग के कितने केस बनाते है?

सिस्टम में लीकेज के लूपहोल डिटेक्ट करना और विजिलेंस केस बनाना तो दूर ये लोग अपने विभाग के माफियाओं, बड़ी कंपनियों और भ्रष्ट अधिकारियों को कवर प्रोवाइड करते हैं, और उनके लिए “स्लीपर सेल” की तरह काम करते हैं।

अगर रेलवे से “सीबीआई के खेल” यही लोग जाएंगे तो अभी तक जो सीबीआई  इन भ्रष्ट अधिकारियों को रंगेहाथ या आय से अधिक संपत्ति के मामले में पकड़ पाती थी, वे भी पकड़ में नहीं आ पाएंगे, बल्कि उसके हाथ से निकल जाएंगे। इसके उलट और बड़ा वसूली रैकेट शुरू हो सकता है और टारगेट कर केस बनाए जाएंगे।

एक रिटायर्ड मेंबर इंजीनियरिंग ने सीबीआई के इस तरह के नोटिफिकेशन को आश्चर्यजनक बताया। उनका कहना था कि यह बताता है कि देश की सबसे बड़ी एजेंसी की रेल के विषय मे कितनी छिछली/उथली जानकारी है। उनको कोई सर्विस स्पेसिफाई नहीं करना चाहिए। इस काम की स्टोर संबंधित और प्रोक्योरमेंट की जानकारी सिविल इंजीनियर को स्टोर वाले से ज्यादा होती है, और इलेक्ट्रिकल वाले को भी स्टोर और एसएंडटी से कम नहीं होती ।

उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि बदनाम भले ही सिविल इंजीनियर ज्यादा है, लेकिन आज की तारीख में सबसे ज्यादा भ्रस्टाचार और खेला सिगनल एंड टेलिकॉम डिपार्टमेंट में है।

उन्होंने साथ में यह भी जोड़ा की आईटी की फील्ड में सबसे बड़ा और क्रांतिकारी काम किसी एस एंड टी वाले ने नहीं किया, बल्कि ट्रैफिक ऑफिसरों ने किया – जैसे पीआरएस सिस्टम और क्रिस, जो रेलवे का सारा आईटी सॉफ्टवेयर डेवलप करता है और स्टोर पर्चेज से लेकर एक्जीक्यूशन तक का सारा काम वही करते हैं, इसलिए किसी डिपार्टमेंट विशेष के नाम से सीबीआई का नोटिफिकेशन निकलना यह बताता है कि सीबीआई ने अपनी आवश्यकता का भी गंभीरता से आकलन नहीं किया है।

सीबीआई को अपनी छवि बचाने के लिए इसमें संशोधन करना चाहिए, क्योंकि सीबीआई को अपनी साख को बचाने के लिए भी और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भी ऐसा करना आवश्यक है।

#CBI #Store #Signal #IndianRailway #Deputation