Mr RailMinister, “how many days in a month are your employees permitted to spend on Union activities?”
“मंडलों में अनधिकृत – औसत से अधिक, नियम विरुद्ध – ‘यूनियन शाखाओं’ की भरमार है। इसके लिए पूरी तरह से कार्मिक विभाग जिम्मेदार है, क्योंकि वही इन मुफ्तखोरों अथवा कामचोरों का पालनहार है!”
A retired General Manager writes to #Railwhispers – when he was ED/Safety in Railway Board, a Japanese Railway Safety Team had come for a visit.
During discussions, he asked them, “how many days in a month are your employees permitted to spend on Union activities?”
“Two days in a month only”, was their instant reply.
No humming and hawing, no vague reply saying that they’ll have to check up, no attempt to avoid giving a reply.
Straight answer.
That’s what is required in Indian Railways.
The number of days for Indian Railways can be debatable; whether it should be 2 or 3, or maximum 4-5. But there must be an upper limit.
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उत्तर रेलवे के एक अधिकारी का कहना है, “इसकी समीक्षा करना समय की मांग है और आवश्यकता भी, क्योंकि जहां जहां-जहां यूनियन के पदाधिकारी पोस्टेड हैं, वहां-वहां के डिपो इंचार्ज इन कामचोरों से बुरी तरह त्रस्त रहते हैं, क्योंकि काम तो ये ढ़ेले भर का भी नहीं करते, दूसरे सामान्य कामों में अड़चन अवश्य पैदा करते हैं। उधर मीटिंग के नाम पर न जाने कितने स्पेशल लीव (एससीएल) लेते हैं जिनका कोई रिकॉर्ड तक नहीं रखा जाता है।”
इस अधिकारी का यह भी कहना था कि “इन यूनियन पदाधिकारियों से खासतौर पर वे अधिकारी तथा कर्मचारी ज्यादा परेशान रहते हैं, ब्लैकमेल होते हैं, जो अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करते हैं, ड्यूटी के पाबंद होते हैं। अतः रेलमंत्री को इस विषय पर अवश्य विचार करना चाहिए, क्योंकि प्रशासन से प्रोटेक्शन की कोई उम्मीद नहीं बची है।”
पूर्व मध्य रेलवे कर्मचारी यूनियन (ईसीआरकेयू) के एक सक्रिय कार्यकर्ता ने लिखकर भेजा है कि, “हमारे यहां तो केंद्रीय पदाधिकारी से लेकर शाखा तक के पदाधिकारी भी कार्यालय तो आते तक नहीं। साल के 365 दिन बिना रत्ती भर भी कोई काम किए एक तरफ पूरी सैलरी लेते हैं, तो दूसरी तरफ रेलकर्मियों को भ्रष्ट अधिकारियों और प्रशासन का सहारा लेकर दंड दिलाना यही उनका एकमात्र काम रह गया है।”
उसने आगे लिखा है कि “पूरी भारतीय रेल में यूनियन पदाधिकारियों का यही हाल है और इस तरह रेल में लगभग 25-30 हजार कर्मचारी ‘यूनियन पदाधिकारी’ होने की आड़ में बिना कोई काम किए वेतन ले रहे हैं। इसीलिए मंडलों में अनधिकृत – औसत से अधिक, नियम विरुद्ध – ‘यूनियन शाखाओं’ की भरमार है और इसके लिए पूरी तरह से कार्मिक विभाग जिम्मेदार है, क्योंकि वही इन मुफ्तखोरों अथवा कामचोरों का पालनहार है। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और सरकार तथा रेल प्रशासन को ‘यूनियन’ विषय पर समग्रता से विचार करना चाहिए।”
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