प्राइवेटाइजेशन का परिणाम

“रेल आज की तारीख में गंदी सोच वाले असामाजिक और आपराधिक मानसिकता के लोगों के लिए महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुराचार करने का सबसे सेफ और सॉफ्ट माध्यम बन चुकी है!”

प्राइवेटाइजेशन या निजीकरण कुछ अर्थों में होना चाहिए, फिर यह अपने कार्मिकों की कामचोरी और हरामखोरी रोकने के लिए हो, अथवा खर्चे कम करने के लिए हो, या फिर रोजगार देने के दायरे को बढ़ाने के लिए हो, यह सही है। परंतु यह करते समय इसके पॉजिटिव और निगेटिव परिणामों को भी व्यवस्था (सिस्टम) को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

4 अगस्त 2021 दिल्ली-अहमदाबाद राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन में एक अकेली लड़की के साथ कोच अटेंडेंट द्वारा किए गए दुराचार की घटना को रेल के निजीकरण के संभावित दुष्परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। पटना से दिल्ली, दिल्ली से जयपुर और फिर अहमदाबाद, तीन ट्रेनों में कहीं भी आरपीएफ एस्कार्ट अथवा उसकी आरपीएफ की ‘सहेली’ टीम, जिसका खूब ढ़िंढ़ोरा पीटा गया था, लड़की को ट्रैप नहीं कर पाई। ऐसे में सवाल उठता है कि कहां थी आरपीएफ की सहेली टीम? #पिगो के तदर्थवाद और पूर्व #DGRPF को दिए गए फ्री-हैंड का ही दुष्परिणाम रेल और आरपीएफ दोनों को ही भुगतना पड़ रहा है।

जानकारों का मानना है कि यह #Privatisation का परिणाम है। अब कोच अटेंडेंट/बेडरोल देने वाला, सफाईवाला, कई ट्रेनों में एसी अटेंडेंट, मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन इत्यादि सब प्राइवेट आदमी हैं, क्योंकि कैटरिंग की तर्ज पर यह सब काम ठेकेदारों को दे दिया गया है। यह सर्वज्ञात है कि इन अटेंडेंट में से अधिकांश आपराधिक प्रवृत्ति के और नशेबाज होते हैं। इनमें बहुतायत में रोहिंग्या/बांग्लादेशी भी नाम बदलकर फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर काम कर रहें हैं।

उनका कहना है कि यह लोग अवैध सामानों के कूरियर का भी काम धड़ल्ले से करते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हर दिन कई ट्रेनों में ये लोग इस तरह की हरकतें करते हैं, लेकिन लोक-लाज के चलते कई यात्रियों द्वारा इन घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती है और कई घटनाएं आरपीएफ और जीआरपी के संरक्षण के कारण दब जाती हैं।

सच्चाई यह है कि रेल में लगातार यात्रा करने वाला यात्री यह सब देखकर अपने घर की महिलाओं को ट्रेन में अकेले भेजने से कतराता है।

किसी प्राइवेट अटेंडेंट के पकड़े जाने पर उसका मालिक बड़ी आसानी से माफी मांगकर बच जाता है और यह कहकर बरी हो जाता है कि “सर, उसको निकाल दिया।” लेकिन उसके बाद उससे भी बड़ा शैतान बहाल कर लेता है या फिर उस आदमी को अपनी दूसरे रूट की गाड़ी में भेज देता है।

जब से प्राइवेट आदमी चलती ट्रेनों में काम करने लगें है, तब से रेल खासतौर पर अकेली लड़कियों, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित ट्रांसपोर्ट हो गया है, यह सत्य है।

थ्री एसी से लेकर फर्स्ट एसी तक के इन कोच अटेंडेंट्स के बर्ताव व्यवहार आदि को देखकर आज डर लगता है। ये लोग महिलाओं को जिस तरह से घूरते हैं और निशाने पर रखते हैं, उससे महिलाएं सकुशल यात्रा कर घर पहुंच जाएं, यह आज बड़ी बात होती है।

इसका उपाय एक यह भी है कि एक ट्रेन में कैटरिंग से लेकर बेडरॉल, सफाई आदि सारा काम एक ही एजेंसी को दिया जाए, जो इन लोगों को प्रॉपर वेरिफिकेशन और कम से कम एक माह की कठिन ट्रेनिंग के बाद ही ट्रेन पर चढ़ाए और उस कोच के सभी यात्रियों से फीड बैक लेना आवश्यक कर दिया जाए।

छोटी से छोटी किसी भी गलती पर मालिक/ठेकेदार और उस ट्रेन में उसके सुपरवाइजर पर भारी आर्थिक दंड के साथ सुनिश्चित दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान भी होना चाहिए।

इसके बाद ट्रेन में चल रहे आरपीएफ/जीआरपी एस्कॉर्ट तथा टीटीई को भी सीधे बर्खास्त किया जाए। उन्हें हमेशा के लिए ऑनबोर्ड ड्यूटी तथा पब्लिक डीलिंग वाले काम से तब तक के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया जाए, जब तक कि समस्त प्रक्रिया पूरी करके उन्हें नौकरी से नहीं हटा दिया जाता। इतनी सख्ती करने और इतने कड़े मापदंड निर्धारित करने पर ही शायद कुछ सुधार संभव हो पाएगा।

वरना रेल आज की तारीख में गंदी सोच वाले असामाजिक और आपराधिक मानसिकता के लोगों के लिए महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुराचार करने का सबसे सेफ और सॉफ्ट माध्यम बन चुकी है। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को भी टाइट करना पड़ेगा, क्योंकि वे जब पावर कार में सबोटेज के लिए न तो एफआईआर दर्ज कराते हैं, न ही जांच के लिए आरपीएफ को मेमो देते हैं, जबकि यह पैसेंजर सेफ्टी से जुड़ा गंभीर मामला है, तब उम्मीद या भरोसा किससे किया जाए?

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