भारतीय रेल के नर्सिंग कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार

उम्मीद है कि रेल प्रशासन विषय की गंभीरता को समझेगा और रेलवे के नर्सिंग कर्मियों के पदनामों में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेश के अनुरूप बदलाव करने की यथाशीघ्र कार्यवाही करेगा!

हाल ही में मनाए गए “इंटरनेशनल नर्सेज डे” पर पूरी दुनिया नर्सों के हितों और उसके सम्मान में आदरभाव व्यक्त कर रही थी। हर साल की भांति 12 मई को इंटरनेशनल नर्सेज दिवस के रूप में फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान महामारी में सारी दुनिया ने नर्सों की भूमिका को सराहा है। चाहे अमेरिका के प्रेसिडेंट हों या भारत के प्रधानमंत्री, सबने इस दिवस पर नर्सों को शुभकामनाएं देने और उनका हौंसला बढ़ाने में सबसे आगे रहे है।

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 9 मार्च 2016 को नर्सों का पदनाम बदल दिया था। उसके अनुसार सभी स्टाफ नर्स को नर्सिंग ऑफिसर और नर्सिंग सिस्टर को सीनियर नर्सिंग ऑफिसर का पदनाम दिया गया था।

इसके बाद एम्स के सभी इंस्टिट्यूट्स, दिल्ली, उत्तराखंड सरकार, जिप्मर संस्थान, केरल एवं कई अन्य राज्यों सहित पीजीआई चंडीगढ़, एसजीपीजीआई लखनऊ, ईएसआई अस्पतालों और उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार के सभी अस्पतालों ने नर्सों के पदनाम बदल कर स्वास्थ्य मंत्रालय के ऑर्डर के अनुसार कर दिया गया था।

रेलवे में भी नर्सों के पदनाम बदलने के लिए रेलवे बोर्ड और डीजी/हेल्थ को लिखा गया था। 2016 से लेकर 2018 तक रेलवे बोर्ड ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं किया। बाद में रेलवे बोर्ड में बैठे डॉक्टर अफसरों ने नर्सों के लिए निकले ऑर्डर से अलग जाकर एक तीसरे नामकरण का ऑर्डर जारी कर दिया जो केंद्र सरकार के ऑर्डर से एकदम विपरीत था।

जहां एक तरफ भारत सरकार नर्सेज के पदों और नियमों में समानता लाने के लिए काम कर रही थी वहीं रेलवे बोर्ड में बैठे डॉक्टर अफसरों को नर्सों के लिए नर्सिंग ऑफिसर का नाम चुभ रहा था।

जहां स्टाफ नर्स के लिए नर्सिंग ऑफिसर का पदनाम दिया गया था, जो कि 7वें वेतन आयोग के अनुसार लेवल 7 में था। रेलवे ने जो उसके लिए पदनाम दिया वह नर्सिंग अधीक्षक था, जो कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के ऑर्डर के अनुसार लेवल 11 में होना चाहिए था, मगर रेलवे बोर्ड ने इसे लेवल 7 में लाकर रख दिया।

उल्लेखनीय है कि 12 मई को राजस्थान सरकार ने भी राज्य की नर्सों का पदनाम बदलकर भारत सरकार के आदेश के अनुसार कर दिया है। लेकिन रेलवे बोर्ड अभी भी अपने डॉक्टर अफसरों की कुटिल चालों में आकर आज भी वही नाम रखे हुए है।

ऑल इंडिया रेलवे नर्सेस एसोसिएशन द्वारा इस विषय पर कई बार पत्र लिखने के बाद भी रेलवे बोर्ड नर्सों की इस मांग पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है।

नर्सेज दिवस पर जहां सभी अस्पताल, सरकारें, ओर मंत्रालय नर्सों के हितों में कसीदे पढ़ रहे हैं, वहीं रेलवे बोर्ड ने नर्सों को हासिए पर छोड़ रखा है।

नए अथवा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए पदनामों से न तो रेलवे पर किसी तरह का कोई आर्थिक भार पड़ने वाला है, और न ही किसी और तरह के नियमों की आवश्यकता है। जरूरत है तो सिर्फ इच्छाशक्ति और नर्सों को सम्मान देने के लिए साफ नीयत की।

आज इस कोविड नामक वैश्विक महामारी में नर्सों की भूमिका किसी से छिपी हुई नहीं है। वे दिन-रात अपनी ड्यूटी और कर्तव्य के निर्वाह में लगी हुई हैं।

भारतीय रेल की नर्सों ने भी रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड में बैठे उच्च अधिकारियों से इस मौके पर आग्रह किया है कि उन्हें भी अन्य विभागों और मंत्रालयों की नर्सों की भांति समान पदनाम दिया जाए और पदनाम के कन्फ्यूजन को अविलंब इस त्रुटि को दूर करके केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेश का पालन किया जाए।

उनका कहना है कि साधारण सी बात यह है कि केंद्र सरकार के आदेश को लागू कर देने भर से भी नर्सेज के मॉरल को बढ़ाया जा सकता है। तब वह और जोश तथा तन्मयता से अपने रेलवे मरीजों की सेवा के लिए काम करेंगी।

उम्मीद है कि रेल प्रशासन इस बात को समझेगा और भारतीय रेल के नर्सिंग कर्मियों के पदनाम में पहले जो गलत ऑर्डर जारी किया गया था, उसे रद्द कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेश के अनुरूप यथाशीघ्र समान पदनाम कर दिए जाएंगे।