दिल्ली में हिंदी के डूबने की दास्तां

पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में छठवीं से बारहवीं कक्षा की एनसीईआरटी की हिंदी माध्यम की किताबें ढूंढ़े नहीं मिलतीं!

कनॉट प्लेस और साउथ दिल्ली के पॉश इलाकों में तो वर्षों से दूकानदारों ने हिंदी की पुस्तकें रखना बंद कर दिया है।

दिल्ली के बाहर के शहरों में भी हिंदी माध्यम वाली किताबें नहीं मिलेंगी।

मयूर विहार के इस इलाके त्रिलोकपुरी चिल्ला, कल्याणपुरी जैसी सैकड़ों गरीब बस्तियां हैं। इन सब बस्तियों के हजारों बच्चे शत-प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।

सरकारी स्कूलों में किताबें सरकार देती है। वहां भी वे हिंदी के साथ-साथ जबरन अंग्रेजी माध्यम की किताबें देने लगे हैं।

दूकानदार कहता है कि हमारे पास निजी यानि पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही किताबें खरीदने आते हैं, और वह सब अंग्रेजी की ही पुस्तकें लेते हैं स्कूली दबाव के तहत!

हंस, कथादेश, पहल, समयांतर, उपन्यास कहानी आदि पढ़ने की पगडंडियां हिंदी माध्यम की इन्हीं किताबों ने हमारे लिए बनाई थीं।

दिल्ली मे वातानुकूल कक्ष में बैठे बुद्धिजीवियों की चिंता इराक, इजराइल, अमेरिका में नस्लभेद, वियतनाम से लेकर जातियों की शिनाख्त, मंदिरों के पुरातत्व, वैदिक सभ्यता इत्यादि सब कुछ है।

हिंदी के पुरस्कार, पत्रिकाओं के बंद होने पर प्यालों के साथ सिसकियां भी!

बच्चों, विद्यार्थियों के बीच हिंदी की गायब होती बस किताब नहीं है!

#प्रेमपाल_शर्मा, दिल्ली, 12 अप्रैल 2021.

#हिंदी