रेल टिकट का कारोबारी खेल, बहुत बड़ा घालमेल!

आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर में केवाईसी (#KYC) लागू क्यों नहीं की जा रही है? सॉफ्टवेयर अपडेट विंडो क्यों नहीं लगाई जा रही है? एजेंट काबू में क्यों नहीं आ रहे हैं?

रेल टिकट एजेंट्स पर बहुत सालों से रेल सुरक्षा बल (#RPF) द्वारा छापेमारी (रेड) की जा रही है। पहले रेलवे विजिलेंस और कमर्शियल विभाग के अधिकारी-कर्मचारी भी मिलकर रेड कर रहे थे, लेकिन रेल टिकट की कालाबाजारी का धंधा जैसे का तैसा ही चलता रहा।

धीरे-धीरे विजलेंस ने किनारा किया। फिर कमर्शियल विभाग ने भी इससे कन्नी काट ली। अब आरपीएफ ने कमान दिल्ली से संभाली। पूरे देश के सभी छोटे-बड़े शहरों मे रेल टिकट एजेंट्स पर आरपीएफ की छापेमारी की गई। करोड़ों की बुक्ड रेल टिकटें मिलीं। अवैध सॉफ्टवेयर मिले, फिर भी रेल टिकटों की कालाबाजारी का धंधा चलता रहा।

फिर इस धंधे में कथित इंटरनेशनल रैकेट पकड़ा गया। पुलिस, सीबीआई तथा अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियां भी इसकी जांच में शामिल हो गईं। बड़े-बड़े भी अपनी ताकत बताने लगे, लेकिन धंधा ज्यों का त्यों आज भी लगातार चल रहा है।

उल्लेखनीय बात यह है कि इस अवैध रेल टिकट कारोबार को उजागर करने के नाम पर किसी ने रिवार्ड ले लिया, तो किसी ने माल ले लिया। हर कोई अपनी उपलब्धियां गिना रहा है। रेलमंत्री तक अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। सभी खुश हैं, लेकिन रेल टिकट का अनधिकृत धंधा बदस्तूर चल रहा है, बल्कि और ज्यादा तेजी से चल रहा है।

अब मुद्दे की बात यह है कि आखिर ये क्यों और कैसे चल रहा है? किसके संरक्षण में चल रहा है? कौन है वह, जो इस अवैध टिकट कारोबार को शह दे रहा है? और क्यों वह इस काले कारोबार को जारी रखना चाहता है?

आखिर किसको धोखा दिया जा रहा है? किसका नुकसान हो रहा हे? रेल टिकट खरीदता कौन है? यात्री ही न – किससे खरीद रहा है वह यह टिकट – एजेंट या किसी दलाल से ही न – तो दलाल किसका है – रेल का – आईआरसीटीसी का – तो जिसका दलाल है, उसका उस पर कोई कंट्रोल क्यों नहीं है?

यह तो ठीक वैसी ही कहानी यहां दोहराई जा रही है कि जिस प्रकार जैसे पहले भारत में, मुंबई में बम फटे और गुहार लगाई गई अमेरिका से कि वह पाकिस्तान पर कारवाही करे!

इसी तरह टिकट आईआरसीटीसी की, मगर इसके अवैध कारोबार को रोके आरपीएफ। सभी जांच में यह स्पष्ट पता चला कि आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर की कमी के कारण सभी दलाल इसका फायदा उठा रहे हैं। दबी आवाज में बहुत से आरपीएफ कर्मी भी यही बताते हैं।

लेकिन काम कुछ नहीं, कोई कारगर कार्यवाही नहीं, विजिलेंस की भी कोई कार्यवाही नहीं। सभी बस मूकदर्शक बने हुए हैं। मौन धारण किए हुए हैं। बस केवल अपना दम भर रहे हैं। अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और आपसी बंदरबांट करके रेलयात्रियों को, जनता को तथा पूरी व्यवस्था को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।

यहां यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस सब में नुकसान गरीब, मजदूर वर्ग के रेलयात्रियों का हो रहा है। जिसको टिकट नहीं मिलती है, अधिक पैसा देकर एजेंट से लेता है। सरकार या रेल मंत्रालय अतिरिक्त ट्रेनें चलाता नहीं है।

जब यात्री गाड़ी पकड़ने आता है, तब उसे पता चलता है कि उसका टिकट जप्त हो गया है। फिर गाड़ी में दोगुना किराया और दंड भरकर यात्रा करता है। इस तरह वह गरीब-मजदूर तीन गुना किराया (एक जप्त, और दो गुना किराया) दलाली देकर यात्रा करता है।

क्या सरकार की, रेल मंत्रालय की, व्यवस्था की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? केवल गरीब यात्रियों को लूटना ही सबका एकमात्र उद्देश्य रह गया है?

जब गलती और फर्जीवाड़ा आईआरसीटीसी के टिकट एजेंट करते हैं, तो उनका सामान और धनराशि जप्त होनी चाहिए। गलती जब आईआरसीटीसी की है और खामी जब आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर में है, तब यात्रियों की टिकट राशि जप्त करने का क्या औचित्य है? और उनकी क्या गलती होती है? वह तो अधिकृत टिकट एजेंट से अपनी टिकट खरीदे होते हैं। फिर उनका पैसा किस अधिकार से रेलवे द्वारा जप्त किया जाता है?

सरकार और रेलमंत्री तथा रेलवे बोर्ड के अधिकारी इस रेल टिकट के अवैध कारोबार के मद्देनजर एक जवाब दें कि जब बैंक और शेयर मार्केट के सॉफ्टवेयर में कोई सेंध नहीं लगा पाता है, तब आपके आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर पर ही यह घालमेल क्यों और कैसे हो रहा है?

आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर में केवाईसी (#KYC) लागू क्यों नहीं की जा रही है? सॉफ्टवेयर अपडेट विंडो क्यों नहीं लगाई जा रही है? आपके एजेंट क्यों काबू में नहीं आ रहे हैं? जबकि यह सबको पता है कि “एक अनार सौ बीमार” जैसा रेल टिकट, सीट/बर्थ का हाल है।

रेलवे के समस्त रेल सुरक्षा बल (#RPF) को इसी धंधे में लगा दिया गया है। जहां उसने कुछ मांग की, वह भी आधी-अधूरी पूरी की। “प्रबल” नाम “प्रबल दुर्बल” साबित हुआ।

जून में रिटायर हो रहे महानिदेशक/आरपीएफ (#DGRPF) भी इसलिए चुप हैं, क्योंकि उनका पूरा ध्यान अपनी सर्विस के एक्सटेंशन या रिएंगेजमेंट की तरफ लगा हुआ है। वैसे भी वह रेल टिकट के अवैध कारोबार का भंडाफोड़ करने का श्रेय लेकर मंत्री से अपनी पीठ पहले ही थपथपवा चुके हैं, पर यह “धंधा” तो अब भी बदस्तूर जारी है।

अब तक हुई सभी जांचें यह बता रही हैं कि आईआरसीटीसी के सॉफ्टवेयर में ही भारी दोष है, आईआरसीटीसी की ही सारी गड़बड़ी है, लेकिन इसका खामियाजा भुगत रहे हैं गरीब, कमजोर, मजबूर, मजदूर रेलयात्री। इस करोना काल में भी जिनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है।

जहां पैसे को लेकर हर व्यक्ति मोहताज है, वहां सरकार की इस कमी को झेल रहा है गरीब यात्री। वह कोर्ट मे चक्कर लगा रहा है। आईआरसीटीसी का बहुत अच्छा फायदा लालू यादव ने उठाया था, आज भी यह उससे ज्यादा उठाया जा रहा है।

देखने में आ रहा है और तमाम रेलकर्मी ही बता रहे हैं कि इस भीषण भीड़-भाड़ वाले सीजन में भी अधिकांश ट्रेनें वस्तुत: खाली हैं, जबकि ऑनलाइन और पीआरएस विंडो पर सारी ट्रेनें फुल हैं। कई ट्रेनों में तो वेटिंग टिकट भी नहीं मिल रही है। ये कौन सा जादू हो रहा? किसी की समझ में नहीं आ रहा।

वह कौन सी ताकत है, जो केवाईसी नहीं लगने दे रही है? कौन-कौन लोग अपनी कुर्सियों पर सालों से जमे हैं? क्यों हटाए नहीं जा रहे यह लोग? क्यों सारी फोर्स धंधे पर लगी है? यात्री सुरक्षा पर किसी का कोई ध्यान क्यों नहीं है?

एक छोटे से बदलाव से आधी फोर्स को इस धंधे से अलग किया जा सकता है। भारी भ्रष्टाचार और अफ़रा-तफ़री पर अंकुश लगाया जा सकता है। परंतु यह नहीं किया जा रहा है। एक कहावत है, चोर से कहो चोरी करे, साहूकार से कहो जागता रहे! यह कहावत रेलवे में पूरी तरह सिद्ध हो रही है।

यात्रियों की सुविधा का दम भरने वाले पैसेंजर एसोसिएशनों, यात्री संगठनों का भी मुह बंद है, आखिर क्यों बोलेंगे सरकार के आदमी जो हैं, या बन गए हैं! या फिर उनका भी मुंह बंद करा दिया गया है, अथवा उनकी भी कोई सुनवाई नहीं है।

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